पेन और पेंसिल का झगड़ा-21 श्रेष्ठ बालमन की कहानियां गुजरात
Pen and Pencil's Fight-Balman ki Kahaniya

भारत कथा माला

उन अनाम वैरागी-मिरासी व भांड नाम से जाने जाने वाले लोक गायकों, घुमक्कड़  साधुओं  और हमारे समाज परिवार के अनेक पुरखों को जिनकी बदौलत ये अनमोल कथाएँ पीढ़ी दर पीढ़ी होती हुई हम तक पहुँची हैं

येली और जॉय दो भाई-बहन थे। येली बड़ी और जॉय छोटा था। जॉय बहुत जबरा था। येली जो-जो करे वह उसको करना होता। एक बार येली अपना होमवर्क करने बैठी थी। जॉय भी पास आकर बैठ गयाः “दीदी! मुझे भी होमवर्क करना है” -जॉय बोला। येली ने ऊँची आवाज में कहाः “ले… यह पेन और कागज।”

जॉय ने पेन हाथ में लिया। इधर-उधर देखकर फिर उसकी दीदी के हाथ में पेंसिल को देखकर सोचा। उसने पेन को दीदी के स्कूल बैग पर फेंक दिया। और पेंसिल लेने के लिए वह उछल पड़ा। दीदी ने पेंसिल मुट्ठी में कसकर पकड़ ली। जॉय कहने लगाः “मुझे यह पेंसिल चाहिए, यह पेन नहीं।”

“नहीं…मैं नहीं दूंगी…नहीं दूंगी और नहीं दूंगी। तुझे मेरी हर चीजें चाहिए होती हैं। “दीदी ने स्पष्ट ‘ना’ कह दी।

इससे जॉय को और गुस्सा आया। उसने हाथापाई शुरू कर दी। पेंसिल की खींचा-तानी होने लगी।

दीदी के स्कूल बैग पर पड़ा हुआ पेन सोचने लगाः “इस पेंसिल में ऐसा क्या है कि जॉय मुझे यहां पटककर उसे लेने के लिए हंगामा कर रहा है?”

दोनों की खींचा-तानी में पेंसिल छटक गई और गिर पड़ी पेन के बगल में। उस ओर उनकी मम्मी ने उन दोनों को नाश्ता करने के लिए बुलाया। इसलिए दोनों पंछी की तरह उड़ गए।

पेन के निकट पड़ी हुई पेंसिल ने रुआब से कहाः “क्यों तुझे मेरी जलन हो रही है? मुझे लेने के लिए दोनों कैसी खींचा-तानी कर रहे थे? और तुझे तो यहीं पड़ा रहने aदिया। अब पड़ा रह यहां और एक बात कान खोलकर सुन ले, कुछ खास बात है मुझमें! “उसने फिर से रोब जमाते हुए कहा।

इसलिए पेन से रहा न गया। “चल जा…हट…खास बातवाली देखी ना हो तो। मुझमें जो है वह तुझमें नहीं है, सुन लेना तू भी।”

अब उन दोनों के बीच में जमी।

पेंसिल उद्धताई से बोलीः “बहुत डींग मत मार…ऐसा क्या है जो तुझमें है और मुझमें नहीं है? तुझसे लिखा जाता है तो मुझसे भी लिखा जाता है।”

“हां…यही बात है। “पेन ने मुद्दा उठायाः “तो बोल, तुझसे किस-किस पर लिखा जाता है?”

“क्यों कागज पर, कार्टन पर… “पेंसिल ने उत्साह से जवाब दिया।

“कागज, कार्टन… बस थक गई? तो अब तू भी कान खोलकर सुन ले। कागज, कार्टन पर तो मुझसे भी लिखा जाता है। पर कह देता हूँ, मुझसे तो हथेली पर भी लिखा जाता है “पेन ने रुआब से कहा।

“ओहो… इसमें कौन-सा पराक्रम कर दिया…ले बोल, तूने शार्पनर की गुफा देखी है? “पेंसिल ने जोरदार सवाल उठाया।

बेचारा पेन तो जैसे गूंगा हो गया। उसको उदास देखकर पेंसिल बोली: “यह बात है… मैंने एकबार नहीं, कई बार देखी है लिसी-लिसी धारवाली।”

“क्या बात करती हो तुम! “पेन से पेंसिल की तारीफ हो गई। पर पेन तुरंत सावधान हो गया, फिर बोलाः “एक गुफा न देखी हो तो इसमें क्या बिगड़ गया? पर देख… मेरा सिर दबाने से नीचे की ओर मेरे पैर बाहर निकलते है। है तेरे पास ऐसी ताकत? मैं तो अंदर भी घुस जाता हूँ और जरूरत पड़ने पर बाहर आ जाता हूँ।”

“कमाल है यार तू तो! पेंसिल से सहज ही तारीफ हो गई पर वह तुरंत ही सावधान हो गई : “इसमें क्या? मेरे जैसी पतली रेखा तू कभी दोड़ न सके… कभी भी नहीं। “पेन को हताश देखकर वह उत्साह से बोली: “और भी सुन ले… मेरी एक खास बात। मैं तो गुफा में जाकर मेरे शरीर में से गोल-गोल गोले निकालती हूँ कि बच्चे उनकी नोटबुक में संभाल के रखते हैं। बड़े लड़के तो इनमें से रंगोली भी बनाते हैं। तेरे में से ऐसा कुछ निकलता है क्या? “तिरछी नजर से उसने पेन की ओर देखा।

“ओके, ओके… तेरे में से तो गोलें निकलते हैं लेकिन तुझे कह देता हूँ कि मुझमें से तो ब्ल्यु, लाल, हरी स्याही निकलती है…थ्री इन वन! तू तो काली… सिर्फ काली” पेन हंसने लगा।

पेंसिल सोच में पड़ गई। अब उसके सामने कौन-सा तर्क लड़ाना चाहिए? ऐसे हारना तो नहीं ही है। उसको सोच में डूबी हुई देखकर पास में पड़ा कलर बॉक्स बोलाः “बहना, ओ बहना! तू ऐसी चुप क्यों हो गई? कह दे तेरे पास तो तीन ही रंग है, मेरे पास तो नौ-नौ रंग है… जो चाहिए सो इस्तेमाल कीजिए।”

यह सुनकर पेंसिल का उत्साह बढ़ा पर वह खामोश रही। वह ऐसी बात करना चाहती थी कि जिसका जवाब पेन के पास न हो, ऐसा सोचकर वह बोली: “सुन भैया! हम दोनों से लिखा तो जाता है न, पर तुझसे लिखा हुआ मिटाया जा सकता है क्या?”

“नहीं बहना… नहीं मुझसे लिखा हुआ मिटाया नहीं जाता है।”

“तो मुझसे लिखा हुआ तो मिटाया जा सकता है? बोल भैया, तुझे कुछ कहना है?”

“नहीं बहना…नहीं! तुम तो मेरी बड़ी बहन हो, क्या तुम मुझे माफ नहीं करोगी?”

उसी वक्त येली और जॉय आ गए। येली ने पेंसिल ली और जॉय ने पेन। एक ने लिखना शुरू किया और दूसरे ने आड़ी टेढी रेखाएं…

भारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा मालाभारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा माला’ का अद्भुत प्रकाशन।’

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