नादिरशाह जब करनाल के मैदान में मुहम्मदशाह की सेना को परास्त करके दिल्ली पहुँचा, तब दोनों बादशाह एक ही साथ सिंहासन पर बैठे। नादिरशाह को प्यास लगी और उसने मुहम्मदशाह से कहा कि पानी मंगवा दो। मुगल सम्राटों का आडंबर प्रसिद्ध ही है। तुरंत नगाड़ा बजने लगा और ऐसा जान पड़ा कि कोई बड़ा उत्सव होनेवाला है। दस-बारह सेवक हाजिर हुए।
किसी के हाथ में रूमाल था, किसी के हाथ में खासदान। दो-तीन सेवक एक बड़े चांदी के थाल में, एक मानिक के कटोरे में जल भरे ऊपर से एक गंगा-जमुनी सरपोश से ढांके ले आये। नादिर घबराया और उसने पूछा कि यह सब क्या है। मुहम्मदशाह ने उत्तर दिया कि आपके लिए पानी आ रहा है। नादिर बोला- हम ऐसा पानी नहीं पीते। और उसने तुरंत चिल्लाकर अपने भिश्ती को बुलाया और लोहे का टोप उतारकर उसमें पानी भरवा- कर वह पी गया। फिर उसने कहा- “अगर हम भी तुम्हारी भांति पानी पीते, तो ईरान से हिन्दुस्तान न आते।”
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