ek deshabhakt kee khushi
ek deshabhakt kee khushi

Hindi Story: पीछे से गोलियों की बौछार हो रही थी। हिंदुस्तानी फौज ने आतंकवादियों के ठिकाने पर हमला बोल दिया
था। इधर आतंकवादियों का लीडर सेवक के ऊपर बंदूक ताने खड़ा था और उसको धमकी दे रहा था, “ बहुत
देशभक्ति सूझ रही थी ना तुझे, तूने अच्छा नहीं करा। तेरी वजह से हमारा मिशन बर्बाद हो गया। तुझे तो मैं
तड़पा तड़पा कर मारता लेकिन तेरी किस्मत से तुझे आसान मौत मिल रही है।” यूं तो आतंकवादी उसको
धमका रहा था पर साथ में सेवक के चेहरे की खुशी देखकर सोच में भी पड़ गया था।
मधु गांव का रहने वाला 22 साल की उम्र का सेवक पैदाइश से ही अपाहिज था। उसका दायां पैर पूरे तरीके से
काम नहीं करता था। सेवक अपाहिज ज़रूर था पर हिम्मत और मेहनत में किसी आम आदमी से आगे ही था।
सुबह जल्दी उठकर कुएं से पानी लाना, घर के काम में अपनी मां सरला की मदद करना, बाज़ार से सब्ज़ी
और राशन लाना, वह यह सब काम करता था। उसके बाद अपनी नौकरी पर भी जाता था।
सेवक के पिता देश की सेवा करते हुए दुश्मनों के हाथों शहीद हो गए थे। उस वक्त सेवक केवल 12 साल का
था। उसके पिता की दिलेरी और देशप्रेम की हर कोई तारीफ़ और इज्ज़त करता था। पहले भी सेवक के पिता
ने दो गोलियां खाई थीं। दुश्मनों ने अचानक से हमला बोल दिया था। सेवक के पिता ने अपने साहब को
बचाने के लिए खुद आगे आकर अपने सीने पर गोलियां खाई थीं। प्रभु की कृपा से समय रहते इलाज मिल
गया था और कुछ दिन बाद अस्पताल में बिता कर वह सही सलामत घर लौट आए थे। उस दिलेरी के लिए
उन्हें सम्मानित भी किया गया था, परंतु दूसरी जंग लड़ते वक्त दुश्मनों ने अपनी कायरता दिखाई और सेवक
के पिता पर पीछे से गोलियां बरसा दीं। वह उसी वक्त अपने देश के लिए शहीद हो गए थे। उनकी पत्नी ने
उनके नाम का वीरता पुरस्कार स्वीकार किया। सरला को सरकार की तरफ से सुविधा दी गईं और साथ में
अपनी हिम्मत से उसने सेवक को पढ़ा लिखा कर पाला।
पढ़ाई खत्म होती ही सरकार की तरफ़ से सेवक को फ़ौज के एक कर्नल शर्मा जी के यहां नौकरी मिल गई
थी। वैसे तो सेवक अपने पिता की तरह देश सेवा करना चाहता था परंतु यह तो वह भी जानता था कि उसके
पैर की कमी की वजह से वह फ़ौज में भर्ती नहीं हो सकता। उसके मन में दुख ज़रूर था पर इस बात की खुशी
भी थी कि वह देश के एक सच्चे और होनहार कर्नल शर्मा जी के यहां नौकरी करता था। सेवक पूरे कायदे
कानून से साहब के ऑर्डर लेता और उनके मन माफ़िक पूरा करता। साहब भी उससे बहुत खुश रहते थे। जब
कभी उन्हें वक्त मिलता तो सेवक को कोई ना कोई किस्सा सुनाते, खासकर के वह किस्से जिसमें सेवक के
पिता और कर्नल शर्मा दोनों होते थे।
एक दिन कर्नल साहब सेवक को बता रहे थे, “ तुम्हें मालूम है सेवक, एक दिन मैं और तुम्हारे पिता पहाड़ी के
रास्ते से जा रहे थे कि हमारे ऊपर हमला हुआ। हमलावर घने पेड़ों के ऊपर और पीछे छिपे थे। तुम्हारे पिता

एक हाथ से गाड़ी चलाते रहे और दूसरे हाथ से दुश्मनों को भी घायल किया। हम दोनों बिना एक खरोंच के
दुश्मनों को हरा कर निकल आए थे।”
कर्नल साहब के साथ-साथ सेवक अपनी मां से भी अपने पिता के बारे में बहुत अच्छी बातें सुनता था। उसे
अपने आप पर बहुत गर्व होता कि वह इतने बहादुर और अच्छे इंसान का बेटा है। उनके बारे में बातें सुनकर
उसके अंदर देशसेवा की भावना और बढ़ जाती।
सेवक को खाना पकाने का भी बहुत शौक था और हमेशा कुछ ना कुछ नया देखता रहता और बनाता
था। पूरे मन से खाना बनाता तो सबको बहुत पसंद भी आता था। ना जाने कहां-कहां भटकता फिरता कुछ
नया लाने के लिए; कभी कोई पत्ता, कोई सब्ज़ी या फिर कोई मसाला क्यों ना हो। ऐसे ही एक दिन उसने
अपने फोन पर एक नए तरीके की सब्ज़ी देखी। उस सब्ज़ी के लिए एक अलग तरीके की घास चाहिए थी।
सेवक को पता था कि वैसी खास तरीके की घास दूर पहाड़ी पर मिलेगी। अपने साहब से अगले दिन देर से
आने के लिए बात कर वह घर चला गया।
अगले दिन बहुत ही सवेरे उठकर मां ने थोड़ा गुड़ चना और दो रोटी सब्ज़ी के साथ बांध दी। वह जानती थी कि
वहां से आने में सेवक को देर हो जाएगी। सुबह की धुंधली सी रोशनी में जब पंछी अपने घर से निकल रहे थे
तभी सेवक भी अपनी मां के चरण स्पर्श करके चला। उस दिन ना जाने क्यों पर पहली बार मां को ज़ोर से
गले लगाया। सरला का भी मन बेचैन था। काफ़ी दूर चलने पर वह ऊंची पहाड़ी पर पहुंचा। वैसे तो वह पहाड़ी
घने पेड़ों से ढकी थी पर सेवक को वहां पहुंचने के बहुत से रास्ते पता थे। वहां पहुंचकर उसने मां का दिया हुआ
खाना खाया और पानी पीकर थोड़ी थकान दूर करी। एक पेड़ के खोल में अपना सामान संभाल कर वह घास
तोड़ने के लिए आगे बढ़ा।
सेवक घास तोड़ ही रहा था कि उसे कुछ आवाज़ें सुनाई दीं। उसने पेड़ के पीछे छुप कर देखा तो वहां पांच
आदमी दिखाई दिए और एक बहुत बड़ी सी मशीन जैसी चीज़ थी। सेवक को पहले तो कुछ समझ नहीं
आया, तभी वहां एक छठा आदमी आया और उन लोगों से बोला, “ आज वह दिन आ गया जिसका हमें
इंतज़ार था। इतनी मेहनत से यह मिसाइल दागने वाली मशीन बनाई और खतरा मोल लेकर यहां तक लाए।
तुम सबको बहुत इनाम मिलेगा। इस मशीन का एक मिसाइल हिंदुस्तान के जिस शहर पर गिरेगा वहां तबाही
मचा देगा। बस अब थोड़ी देर में पीछे से आर्डर आना है और फिर यह मिसाइल छोड़ देंगे।”
सेवक ने सुना तो उसके पैरों तले ज़मीन खिसक गई। वह दो मिनट तक वहीं बैठा रह गया। फिर जैसे कि उसे
होश आया, वह चुपके से उठा और जहां अपना सामान रखा था वहां जाकर मोबाइल उठाया और कर्नल शर्मा
को मैसेज करके सारी जानकारी दी। बाद में कॉल करके फोन भी काट दिया ताकि वह उसी वक्त उसका
मैसेज पढ़ सकें। उसने यह भी लिखा कि जहां उसके फ़ोन की जगह है आतंकवादीयों ने मशीन उसके थोड़ी

दूर छिपाई है। ऐसा करके उसने फोन पेड़ के खोल में आवाज़ बंद करके छुपा दिया। वहां से बचकर निकलने
की सोचकर आगे बढ़ ही रहा था तभी एक आतंकवादी ने उसे देख लिया और पकड़कर मारपीट शुरू कर दी।
“ बता तू कौन है और यहां क्या कर रहा है?” आतंकवादी ने गरज कर पूछा। सेवक ने घबरा कर जवाब
दिया, “ मैं! मैं! जी मैं गरीब किसान का बेटा हूं। मेरी मां ने यह खास तरीके की घास मंगवाई थी इसलिए यहां
आया।” कहते कहते सेवक ने अपनी जेब से घास निकाल कर उन्हें दिखाई। उन लोगों ने उसकी बात पर
विश्वास नहीं किया और एक पेड़ से उसको बांध दिया। आतंकवादियों ने उसको बहुत मारा। पिटते पिटते
सेवक बेहोश सा होने लगा। सबसे अच्छी और बड़ी बात यह थी कि उसने आतंकवादियों को अपने मोबाइल
फोन का पता नहीं चलने दिया। वो यही सोच रहे थे कि वह गरीब आदमी है और उसके पास और कोई
सामान नहीं है। सेवक को अधमरा सा पेड़ से बंधा छोड़कर वह वहीं अपने साहब के आर्डर का इंतजार करने
लगे।
आतंकवादियों में से कोई सो रहा था, कोई खा रहा था तो दो पहरा दे रहे थे। वह सब तसल्ली से अपने मिशन
के पूरे होने का इंतजार कर रहे थे कि पहरे पर खड़े दोनों आतंकवादियों में से एक ज़मीन पर गिर पड़ा, उसके
सीने में गोली लगी थी और वह उसी वक्त मर गया। बाकी के आतंकी घबराकर उसके पास आए। इससे
पहले कि वह कुछ समझ पाते के दूसरे आतंकवादी को गोली लगी और वह भी वही धराशाही हो गया। चारों
आतंकियों ने तुरंत अपनी अपनी बंदूक उठाई और जिस तरफ से गोली चली थी उस तरफ़ गोली बरसाना
शुरू कर दिया। उनकी समझ में नहीं आ रहा था कि अचानक से उन पर हमला कैसे हो गया। पहाड़ी के पीछे
से जब हिंदुस्तानी सैनिक नज़र आए तो वह चौंक गए कि उन्हें उनके बारे में उन्हें कैसे पता चला।
तभी उनका सरदार सेवक के पास गया। उसके मुंह पर पानी मार कर पूछा, “हिंदुस्तानी फौजी यहां तक कैसे
आए? कौन है तू?” सेवक ने मुस्कुराकर कहा, “मैं हिंदुस्तानी शहीद का एक देश प्रेमी बेटा हूं। मैंने ही उनको
खबर दी थी। मुझे बहुत खुशी हो रही है कि तुम्हारा मिशन बर्बाद हो गया। देखो तुम्हारे बाकी के तीनों साथी भी
मारे गए, तुम भी मरोगे जो मेरे देश को तबाह करने चले थे।” “ मरूंगा तो मैं हूं ही पर पहले तुझे
मारूंगा।”आतंकी गरजा। उसने सेवक के ऊपर बंदूक तानी और धमका कर मारने ही वाला था कि उसके
ऊपर हिंदुस्तानी गोलियां बरस पड़ीं। लेकिन मरते मरते उसने सेवक के ऊपर बंदूक चला दी। सेवक के चेहरे
पर गोली लगने का डर नहीं था बल्कि इस बात की खुशी थी कि आज अपने देश के लिए मर मिटने का
उसका सपना पूरा हुआ।
जब सेवक को होश आया तो वह अस्पताल में था। कर्नल शर्मा ने बताया, “गोली तुम्हारे हाथ में लगी थी।
डॉक्टर ने वह निकाल दी है और तुम अब खतरे से बाहर हो। वह मिसाइल वाली मशीन भी अब हमारे कब्ज़े में
है। तुमने देश को बहुत बड़े खतरे से बचाया है। उसके लिए सरकार की तरफ से तुम्हें बहादुरी का इनाम भी

दिया जाएगा।” सेवक की मां सरला को अपने बेटे पर उस दिन बहुत गर्व महसूस हो रहा था और साथ-साथ
उसके बेटे को सम्मान मिलने की खुशी भी थी।