पिछले दिनों स्वतंत्रता दिवस पर फोन पर एक मैसेज मिला-
सो गई लिपटकर तिरंगे
के साथ अलमारी में,
देशभक्ति है,
तारीखों पर जागती है।
इसी तरह का एक और व्हाट्सएप मैसेज है-
रात भर की जगी हूं। खूब नौटंकी भी हो गई है।
छुट्टी का आनंद भी उठा लिया है।
अब वापस सोने जा रही हूं।
मिलती हूं, 26 जनवरी 2016 को।
आपकी, देशभक्ति
पढ़कर दिल दुख गया। हालांकि इन दोनों ही मैसेज में जो लिखा था, वह कटु सत्य था। क्या हम वाकई अपने देश के हित के लिए कुछ सोचते हैं, कुछ करते हैं? देश में बड़ी-बड़ी समस्याएं हैं, लेकिन हर नागरिक सिर्फ अपनी-अपनी ही सोचता है। जो करता है, अपने और अपने परिवार के लिए ही करता है। दूसरी समस्याओं को छोड़ भी दें तो दूषित पर्यावरण एक ऐसी समस्या है जिसके घेरे में सभी आते हैं। इससे सभी का स्वास्थ्य प्रभावित होता है। लेकिन इस ओर कोई न सोचना चाहता है और न ही देखना चाहता है। जब तक इसका असर प्रत्यक्ष रूप से अपने परिवार के किसी सदस्य पर न हो, कुछ इक्का दुक्का लोगों, निजी संगठनों को छोड़कर कोई इस ओर ध्यान ही नहीं देना चाहता।
प्रगति और बढ़ते विकास के साथ ही देश के शहरों में प्रदूषण भी तेजी से बढ़ रहा है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की ओर से जारी दुनिया के सबसे प्रदूषित शहरों की सूची में राजधानी दिल्ली समेत सबसे ज्यादा 13 शहर भारत के हैं। वायु प्रदूषण ने भारत के शहरों में रहने वाले 66 करोड़ लोगों के लिए जीवन की आशा 3.2 साल घटा दी है। हमारी पूजनीय नदियों गंगा और यमुना को दुनिया की दस सबसे अधिक प्रदूषित नदियों की सूची में शामिल किया गया है। गुजरात का वापी और उड़ीसा का सुकिंदा दुनिया के सबसे प्रदूषित क्षेत्र में हैं। विकास की दौड़ में हमारा देश इतना अंधा हो गया कि उसे अपने देशवासियों के स्वास्थ्य से कोई सरोकार ही नहीं रहा। करीब एक दशक में भारत में वायु प्रदूषण 20 प्रतिशत बढ़ गया है। देश में सिर्फ एक कोयम्बटूर ही ऐसा शहर है जहां की वायु को सांस लेने लायक माना गया है।
दिल्ली दुनिया का सबसे प्रदूषित शहर माना जा रहा है। दिल्ली सरकार व दिल्ली में नागरिक सुविधा देने वाली अन्य एजेंसियां राजधानी को प्रदूषण मुक्त करने की बातें तो करती हैं, लेकिन ऐसा हो नहीं पा रहा है। उधर सरकार के सूत्रों के अनुसार वायु प्रदूषण से पैदा हुई बीमारियों के कारण ही पिछले एक दशक में 37 हजार लोगों की मौत हुई है। केंद्रीय पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने भी स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा उपलब्ध आंकड़ों का हवाला देते हुए कहा कि वायु प्रदूषण की वजह से सांस और हृदय संबंधी रोगों में बढ़ोतरी हो रही है। 1990 से 2010 के बीच ग्लोबल बर्डन ऑफ डिजीज द्वारा किए गए अध्ययन में मौत के कारणों की पड़ताल के अनुसार भारत में बाहरी सूक्ष्म कणों से होने वाली असमय सालाना मौतें छह लाख 27 हजार थीं। ये महीन कण श्वास नली को बाधित करके या रक्त प्रवाह में शामिल होकर शरीर के कई अंगों को प्रभावित करते हैं।
दिल्ली के लोग हवा में घुलते इस जहर को रोजाना महसूस करते हैं लेकिन क्या इसे सुधारने के लिए कोई वास्तविक कोशिश भी की जाती है। ऐसा नहीं है कि पर्यावरण में सुधार के लिए कुछ भी नहीं हो रहा। देश में बहुत से लोग इस ओर प्रयास कर रहे हैं। दिल्ली में तो नहीं लेकिन कुछ शहरों में लोगों ने साइकिल क्लब बनाए हैं। सरकार की ओर से ही नहीं बल्कि बहुत से स्थानों पर लोग स्वयं भी जैविक खाद और जैविक खेती को प्रोत्साहित कर रहे हैं। वायु प्रदूषण से आगाह करने के लिए सरकार की ओर से वायु गुणवत्ता सूचकांक के तौर पर दिल्ली समेत दस शहरों में डिस्प्ले बोर्ड पर वायु प्रदूषण का स्तर प्रदर्शित करने की व्यवस्था है। लेकिन जाहिर है कि हमारे यह प्रयास पर्याप्त नहीं हैं, हमें अभी इसके लिए बहुत कुछ करने की जरूरत है।
देश में खासतौर पर दिल्ली में बढ़ते प्रदूषण की एक प्रमुख वजह वाहनों की लगातार बढ़ती संख्या है। अध्ययन बताते हैं कि दिल्ली की जहरीली हवा के पीछे 70 फीसद कारण वाहनों से निकलने वाला धुआं है। डीजल चालित वाहन तो पर्यावरण के लिए सबसे बड़ा खतरा हैं। दरकार है कि देश के नागरिक अपने-अपने शहर के पर्यावरण के प्रति अपनी जिम्मेदारी समझें और इसे बचाने के लिए तत्पर रहें।
दरकार है दिल्ली की सड़कों पर सार्वजनिक परिवहन बढ़ाए जाने की, जिससे लोग अपने निजी वाहनों का प्रयोग कम से कम करें। दिल्ली सरकार द्वारा सार्वजनिक वाहनों के उपयोग को लेकर एक विशेष अभियान चलाया जाए। इसके अलावा दिल्ली मेट्रो को और तेजी से बढ़ाने के साथ-साथ रैपिड मेट्रो की योजनाओं को भी जल्द मूर्त रूप दिया जाए।
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