SRK Patriotic Films: लम्बे अर्से के बाद किंग खान की बडे पर्दे पर वापसी ‘पठान’ की देशभक्ति के साथ हुई है। उसपर सोने पे सुहागा वाली बात ये कि फिल्म गणतंत्र दिवस से ठीक एक दिन पहले रिलीज हुई है। इस फिल्म को देख शाहरूख के फैंस उनकी वापसी से जितने खुश हैं। उससे कहीं ज्यादा खुश हैं बादशाह की एक दमदार एक्शन से परिपूर्ण देशभक्ति वाली फिल्म के साथ वापसी करने से। भले ही शाहरूख ने इस फिल्म में रॉ एजेंट बन देश के लिए अपने जज्बात और जी जान से सेवा भाव को दिखाया है। लेकिन ऐसा पहली बार नहीं है जब उन्होंने देशभक्ति पर आधारित फिल्म की है। बल्कि शाहरूख ने देश के प्रति सम्मान और देश के सम्मान के लिए लडने के जज्बे को अलग अलग रूप और रंग में अपनी कई फिल्मों के जरिए दिखाया है। आइए जानते हैं शाहरूख की उन अलग देशभक्ति के रंग से भरी फिल्मों के बारे में।
SRK Patriotic Films: स्वदेश

आशुतोष गोवरिकर के द्वारा निर्देशित स्वदेश 2004 में रिलीज हुई थी। इस फिल्म में शाहरूख ने एक विदेश में रहने वाले एक साइंटिस्ट का किरदार निभाया था। जो नासा में काम करता है। अपनी जडों और भारत रह रहे अपनों को साथ विदेश ले जाने के उद्देश्य से भारत आने के बाद उसका देश के प्रति नजरिया बदलता है। जिस गांव में वो रहता है उसकी समस्याओं को सुलझाते सुलझाते वो कब वापस अपनी मिट्टी से जुड जाता है उसे खुद भी पता ही नहीं चलता। तो ये बात तो कहीं न कहीं सच ही है कि देशभक्ति के जज्बे के लिए किसी का सोल्जर या सरहद पर ही देश के लिए कुर्बानी देना जरूरी नहीं है। ‘पठान’ का एक डायलॉग कि ‘एक सोल्जर ये नहीं सोचता कि देश ने उसे क्या दिया है वो ये सोचता है कि वो देश के लिए क्या कर सकता है’। ये जज्बा हर देशभक्त में होता है चाहे वो कोई साइंटिस्ट हो या खिलाडी या कोई आम आदमी। स्वदेश की देशभक्ति इस भावना को दर्शाती है।
चक दे इंडिया

एक हॉकी प्लेयर जो गोल्ड मैडल जीत देश का गौरव पूरी दुनिया में बढाना चाहता है। उसकी कहानी के जरिए खिलाडियों के देशभक्ति के जज्बातों के रंग को इस फिल्म के जरिए शाहरूख ने बखूबी दिखाया था। उन्होंने एक खिलाडी भी कभी हार नहीं मानता इस जिद को इस फिल्म के जरिए लोगों तक पहुंचाने का प्रयास किया। देश की हॉकी टीम के पूर्व कप्तान कबीर खान के जीवन पर आधारित ‘चक दे इंडिया’ 2007 में रिलीज हुई थी। वो खिलाडी जो देश के लिए खुद मैडल नहीं ला पाया और लोगों के द्वारा अपमानित हुआ। उसके बाद भी देश के लिए उसका वो सपना टूटा नहीं। 2002 में कॉमन वेल्थ गेम में वुमंस हॉकी टीम को दुनिया की बेहतरीन टीमों के सामने अच्छा प्रदर्शन करने के लिए तैयार कर उन्हें देश के गौरव के लिए लडना सिखाया। इस देशभक्ति के अंदाज को शाहरूख ने ‘चक दे इंडिया’ में बखूबी पेश किया।
मैं हूं न

इस फिल्म में भी शाहरूख ने अंडरकवर एजेंट की भूमिका निभाई थी। कैसे एक अंडरकवर एजेंट टेरेरिस्ट्स के मंसूबों के लिए किसी भी रूप में आम आदमी के बीच पहुंच सबकी सुरक्षा के लिए जान पर खेलते हैं। ये इस फिल्म में दिखाने का प्रयास किया गया। कोई भी सोल्जर सिर्फ अपने परिवार के लिए नहीं बल्कि अपने देश के लिए पहले जीता है। इस रंग को भी फिल्म में दिखाने का प्रयास किया गया था। अपने परिवार के आस पास होने के बाद भी वो उन्हें नहीं बताता और किसी और पहचान के साथ उनके बीच रहता है। एक अंडर कवर एजेंट कॉलेज का स्टूडेंट बन आर्मी के उसके सीनियर जनरल की बेटी को बचाने के लिए लोगों के बीच मजाक तक बनने को तैयार हो जाता है।
दिल से

जाने माने फिल्म मेकर मणि रत्नम की फिल्म दिल से में भी देश के प्रति अपनी जिम्मेदारी के अलग रंग को दिखाया गया है। देश के उत्तर पूर्वी हिस्से में विद्रोह और काउंटर इनसर्जेंट हिंसा में किस तरह एक पत्रकार अहम भूमिका निभा हिंसा को रोकने का प्रयास करता है। ये इस फिल्म में दर्शाया गया था। हिंसा की घटनाओं के बीच एक लड़की से मिल उसे चाहने लगना। उसकी सच्चाई जानने के बाद की वो टेरेरिस्ट ग्रुप से जुडी है उसे उस गतिविधि से रोकने के प्रयासों में अपनी जान की परवाह न करना ये एक पत्रकार के जज्बातों और देश के प्रति उसकी जिम्मेदारी को दर्शाता है।