मणिमहेश झील और उसके आसपास घूमने की जगहें
मणिमहेश झील समुद्र तल से लगभग चार हज़ार मीटर की ऊंचाई पर स्थित है और इसे तिब्बत में स्थित मानसरोवर झील के महत्व का माना जाता है।
Manimahesh Yatra: हिमाचल की डल झील के रूप में प्रसिद्ध मणिमहेश झील देश के प्रमुख पर्यटन स्थलों में गिनी जाती है। यह झील हिमालय के पीर पंजाल रेंज में आती है। यह झील समुद्र तल से लगभग चार हज़ार मीटर की ऊंचाई पर स्थित है और इसे तिब्बत में स्थित मानसरोवर झील के महत्व का माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि इस झील का उतना ही महत्व है, जितना की मानसरोवर का है। यही वजह है कि इस जगह पर लोगों की भीड़ लगी रहती है।
Manimahesh Yatra: शिव का आभूषण

मणि का अर्थ होता है आभूषण और महेश का संदर्भ भगवान शिव से लिया जाता है। इस तरह से देखा जाए तो मणिमहेश का शाब्दिक अर्थ शिव का आभूषण है। स्थानीय किंवदंतियों ऐसा कई जगहों पर बताया गया है कि जब पूर्णिमा की रात हो तो कोई भी को इस झील में उन आभूषणों का प्रतिबिंब देख सकता है। यह जगह काफ़ी ऊँचाई पर है जिसकी वजह से ज्यादातर समय बर्फबारी जमने के कारण झील बंद रहती है। बावजूद इसके इस जगह पर लोग ट्रेक करके पहुंचते हैं। यदि आप भी मणिमहेश यात्रा का प्लान बना रहे हैं तो अप्रैल से नवंबर के के बीच यात्रा करें यह समय ज़्यादा उपयुक्त रहेगा।
भगवान शिव कनेक्शन

मणिमहेश झील से जुड़ी कई किंवदंतियाँ और लोक कथायें प्रचलित हैं। लोककथाओं में बताया गया है कि पार्वती से विवाह के उपरांत भगवान शिव ने इस झील का निर्माण किया था। स्थानीय लोगों की यह भी मान्यता है कि इस झील और आसपास के क्षेत्रों में किसी प्रकार का हिमस्खलन या तूफ़ान की स्थिति बनाती है तो वह भगवान शिव के क्रोध के कारण बनती है। इस जगह पर होने वाली प्राकृतिक घटनाओं को शिव का प्रकोप कहा जाता है।
दिव्य त्रिमूर्ति का निवास

मणिमहेश झील को लेकर कई तरह की पौराणिक कथाएं हैं। एक कथा में बताया गया है कि यह जगह ही दिव्य त्रिमूर्ति का निवास है। यही वह जगह है जहां पर ब्रह्मा, विष्णु और महेश रहते हैं। स्थानीय लोग बताते हैं कि भगवान शिव इस जगह पर छह महीने तक रहते हैं, फिर उसके बाद भगवान विष्णु को सौंपते हैं। जिस दिन अथवा घड़ी में देवताओं के बीच इस आदान-प्रदान का योग बनता है, उसी दिन को जन्माष्टमी मनाया जाता है। इसी क्रम में भगवान शिव छह महीने बाद दोबारा जब मणिमहेश लौटते हैं तो उस दिन को शिवरात्रि होती है।
लक्ष्मी नारायण मंदिर

मणिमहेश झील और उसके आसपास घूमने के लिए कई जगहें हैं। लक्ष्मी नारायण मंदिर भी उन्हीं में से एक है और यहाँ के सबसे पुराने मंदिरों में गिना जाता है। स्थानीय लोगों में इस मंदिर की बहुत ज़्यादा मान्यता है। मणिमहेश यात्रा पर आने वाले लोग इस मंदिर में दर्शन के लिए जाते हैं। इस मंदिर में भगवान विष्णु और भगवान शिव की आराधना की जाती है और इसके अंदर का दृश्य काफ़ी ख़ूबसूरत और दर्शनीय है।
चमेरा झील
मणिमहेश में एक और झील है जिसे लोग चमेरा झील के नाम से जानते हैं। यह मणिमहेश के आसपास के क्षेत्रों में घूमने के लिहाज़ से काफ़ी अच्छी और ख़ूबसूरत है। इस जगह पर जाने पर मन पूरी तरह से श्रद्धा भाव से भरा हुआ होता है। ऐसा लगता है कि किसी राजसी जगह पर आ गए। यह झील अपनी प्राकृतिक सुंदरता के साथ साथ अपनी स्वच्छता के लिए भी जानी जाती है। इस जगह पर अगर आप आते हैं तो आपको अच्छा लगेगा।
अखंड चंडी पैलेस
मणिमहेश में अखंड चंडी पैलेस नाम से एक और दर्शनीय स्थल है जो लोगों के बीच अपनी ख़ूबसूरती और वास्तुकला के लिए जाना जाता है। यह एक महल है जिसका निर्माण राजा उम्मेद सिंह ने कराया था। इस जगह को लोग देखने आते हैं और इसके साथ अपनी तस्वीरें खिचवाना पसंद करते हैं। यह जगह शुरू में ही आती है इसलिए इसे मणिमहेश यात्रा का गेटवे भी कहा जाता है।
मणिमहेश यात्रा

मणिमहेश यात्रा देश ही नहीं बल्कि दुनिया भर में प्रसिद्ध है। यह विशाल यात्रा भोलेनाथ को समर्पित है और हर साल अगस्त और सितंबर के महीने में आयोजित की जाती है। मणिमहेश यात्रा के दौरान एक साथ बहुत बड़ी संख्या में लोग यात्रा कर रहे होते हैं जिसकी वजह से सुविधायें बढ़ जाती हैं और इस कठिन यात्रा को करने में थोड़ी बहुत सहूलियत मिल जाती है। इसलिए इसमें अधिक से अधिक लोग शामिल होते हैं।
मणिमहेश शिखर
मणिमहेश यात्रा के दौरान आपको तरह-तरह के अनुभवों से होकर गुज़रना पड़ता है। मन में साहस होता है और श्रद्धा भी शायद इसीलिए यह यात्रा सम्भव भी हो पाती है। कुछ लोगों का साहस इतने उच्चतम स्तर पर होता है कि वह मणिमहेश शिखर तक जाते हैं। आप भी यदि मणिमहेश शिखर तक की यात्रा करना चाहते हैं तो सबसे पहले इस जगह पर जाने के लिए परमिट आदि की प्रक्रिया पहले से पूरी करके जायें।