आराध्य—गृहलक्ष्मी की कहानी: Motivational Kahani
Aradhya

Motivational Kahani: मोहित पाँच बहनों का इकलौता भाई है। उसके पिताजी का स्वास्थ्य ठीक नहीं रहता है। वह स्नातकोत्तर की परीक्षा उत्तीर्ण करने के उपरांत सरकारी नौकरी के लिए आवेदन कर रहा है। बार-बार प्रयास के पश्चात भी उसे सफलता नहीं मिल रही है। एक दिन उसे समाचार पत्र में प्राइवेट नौकरी का विज्ञापन दिखाई दिया। वह साक्षात्कार के लिए पहुँच गया,किंतु यहाँ भी आर्थिक पक्ष विद्वता पर भारी पड़ता हुआ दिखाई दिया। नौकरी के लिए उन्हीं का चयन किया गया जिनकी सिफारिश पैसे देकर की गई थी। वह पूरी तरह से टूट चुका था ,जैसे जीने की आशा ही समाप्त हो चुकी हो। अब उसके मन के अंदर आलस्य पसर गया उसने और प्रयास करना बंद कर दिया ।एक दिन अकर्मण्यता का भार हृदय पर इतना बढ़ गया कि उसके मन में बुरे- बुरे विचार जन्म लेने लगे। कभी अपने जीवन को समाप्त करने का खयाल आता, तो कभी उसे अपना अस्तित्व इस धरती पर बोझ जैसा प्रतीत होता और सारे संसार से वैराग्य सा उत्पन्न हो जाता ।एक बार उसके मन में विचार आया कि यहीं रेलगाड़ी की पटरी के सामने अपनी जीवन लीला समाप्त कर ले और अपने इस विचार को कार्य रूप में परिणत करने के लिए वह ट्रेन के सामने खड़ा हो गया। उसे ट्रेन आते हुए दिखाई दे रही थी उसने आँखें बंद कर लीं। इससे पहले कि उसका मंतव्य पूर्ण हो पाता किसी ने उसे अपनी ओर धकेल लिया ।उसने आँखें खोलीं तो सामने एक अधेड़ उम्र की महिला खड़ी हुई थी। जिनके मुख मंडल से तेज प्रस्फुटित हो रहा था। मोहित ने आश्चर्यपूर्वक उन्हें देखा। इससे पहले कि मोहित कुछ पूछ पाता महिला ने उसके गाल पर थप्पड़ रसीद कर दिया ।मोहित ने प्रश्नवाचक दृष्टि से उन्हें देखा तो महिला ने कहा” तुम्हें आत्महत्या जैसा जघन्य कदम उठाने से पूर्व अपने परिवार के विषय में सोचना चाहिए था ।जीवन की कोई भी समस्या जीवन से बड़ी नहीं होती है,किंतु आजकल का युवा वर्ग शायद सहनशक्ति खो चुका है ।”
मोहित को जैसे होश आया हो। उसकी आँखों में पश्चाताप के आँसू तैरने लगे। शायद जीवन को बचाने वाला जीवन देने वाले से भी अधिक बड़ा होता है ।उसने उस अजनबी महिला के चरण स्पर्श करते हुए कहा कि “आप ही मेरा मार्गदर्शन कीजिए। मैं पाँच बहनों का इकलौता भाई हूँ। पिताजी अस्वस्थ रहते हैं। माँ इस दुनिया में नहीं है,पिछले कई वर्षों से नौकरी के लिए प्रयासरत हूँ, फिर भी नौकरी नहीं मिल रही। कोशिश करते -करते थक चुका हूँ। अब मेरे पास एक यही अंतिम मार्ग बचा था ..और कोई विकल्प नहीं था ..”
महिला ने उसकी बात समाप्त होते ही कहा “यदि ईश्वर एक रास्ता बंद करते हैं, तो अन्य द्वार खोल देते हैं। श्रम के अतिरिक्त सफलता का अन्य कोई विकल्प नहीं है ।वैसे भी मनुष्य हारने के लिए नहीं बना है। यदि तुम प्रयास करो तो मार्ग स्वतः ही दिखाई दे जाएगा। यदि रोजगार नहीं मिल रहा है तो प्राइवेट ट्यूशन पढ़ाकर अपना जीविकोपार्जन करो ,किंतु इस तरह हताश होकर जीवन लीला समाप्त करना जीवन रूपी उपहार का भी अपमान है। “
आज मोहित को वह महिला किसी देवदूत से कम नहीं लग रहीं थीं।उनसे प्रेरणा पाकर मोहित ने प्राइवेट ट्यूशन पढ़ाने शुरू कर दिए। धीरे-धीरे उसके पास छात्र-छात्राओं की भीड़ लगने लगी। फिर उसने अपना कोचिंग सेंटर खोल लिया। अब शहर में उसका नाम हो चला था । मोहित को याद आया कि उस महिला ने अपना विजिटिंग कार्ड मोहित को दिया था, और 1 वर्ष पश्चात मिलने के लिए आग्रह किया था ।आज मोहित अपने आराध्य (उस महिला) के पास अपनी सफलता की कहानी सुनाने तथा उनका आभार व्यक्त करने उनके घर जा रहा है। जीवन में कोई ना कोई व्यक्ति अवश्य ही हमारा प्रेरणा स्रोत होता है। चाहे वह हमारे माता-पिता, गुरुजन हों अथवा कोई अन्य व्यक्तित्व। आवश्यक नहीं कि पत्थरों में ही भगवान मिले। ईश्वर तो कण-कण में विराजमान है ।आवश्यकता है तो मात्र उन्हें महसूस करने की। गीता में भी जब कुरुक्षेत्र की रणभूमि में अर्जुन ने स्वजनों को देखकर अपने शस्त्र श्री कृष्ण के चरणो में रख दिए और कहा कि हे कृष्ण में अपने कुटुंब जनों पर कैसे वाण चलाऊँ..? जिन गुरु और आचार्य ने शिक्षा दी उनके सीने को कैसे छलनी कर दूँ..? जिन अनुज और अग्रजों के साथ शिक्षा- दीक्षा प्राप्त की, कैसे उनके लहू का प्यासा हो जाऊँ..? किस प्रकार उन सखा और बंधुओं पर तीर चलाऊँ जो मेरे अपने हैं..? तब कृष्ण ने गीता उपदेश देते हुए अर्जुन को आत्मा के अजर, अमर और अविनाशी होने का तथ्य बताया जिसे सुनकर अर्जुन के ज्ञान- चक्षु खुल गए और उसे समझ में आ गया कि आत्मा को न तो आग जला सकती है, न ही पानी भिगो सकता है, और न ही शस्त्र कोई हानि पहुँचा सकते हैं। ठीक उसी प्रकार वह महिला मोहित के जीवन में आराध्य बनकर आयी और उसे उसकी अकर्मण्यता से छुटकारा प्राप्त करने की प्रेरणा दे गई। प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में कोई ना कोई प्रेरणा स्रोत अवश्य होता है, आवश्यकता है तो बस उसे देखने की।
बस हमें अपने नयन खुले रखने होंगे क्या पता कहीं आस-पास ही उस आराध्य के दर्शन हो जायें, और जीवन को नई दिशा मिल जाये।

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