Asaamayik Mrtyu by Mannu Bhandari
Asaamayik Mrtyu by Mannu Bhandari

Hindi Story: सब-कुछ जहाँ का तहाँ थम गया। गति महेश बाबू के हृदय की बंद हुई थी, पर चाल जैसे सारे घर की ठप्प हो गई। अधूरा बना हुआ मकान और अधकचरी उम्र के तीन बच्चे।
सच पूछो तो यह भी कोई उम्र है मरने की भला? कुल जमा चवालीस साल। पर मौत कौन किसी से पूछकर आती है!फिर हुआ भी तो सब-कुछ कितने आकस्मिक ढंग से। ऑफ़िस की कुर्सी पर बैठे-बैठे ही महेश बाबू का हार्ट फेल हो गया। घर ख़बर पहुँची तो शारदा अवाक्! बस, पड़ोसन ताई की चीत्कार घर बनाते मजदूरों के समवेत संगीत को चीरती हुई यहाँ से वहाँ तक फैल गई। देखते-ही-देखते सारा मोहल्ला आ जुटा। शव लाकर बीच आँगन में रखा गया। चारों ओर भीड़ और दार्शनिक मुद्रा में उछाले गए वाक्य…

‘जिंदगी का कोई भरोसा नहीं भैया! अच्छे-भले घर से गए थे। कौन जानता था लौटकर ही नहीं आएँगे… राम तेरी माया…’‘मकान और दीप को लेकर कैसे-कैसे सपने देखे थे… आदमी सोचता क्या है और होता क्या है?‘अधूरा मकान और तीन-तीन बच्चों की कच्ची गृहस्थी। तिनके तक का कोई सहारा नहीं। अब तो भगवान ही पार लगाए तो लगे! हे प्रभो, तेरा ही आसरा है…’हर मौत पर दोहराए जानेवाले वही पिटे-पिटाए वाक्य, वही भाषा! सिर्फ मरनेवाला आदमी बदलता रहता है।पर इस सबसे अनछुई-सी शारदा की सूनी-सूनी आँखें और भावहीन चेहरा! न एक बूँद आँसू, न छाती-फाड़ क्रंदन! और इन सबसे ऊपर और इन सबसे अलग दीपू को बाँहों में भरे पड़ोसन ताई का प्रलाप–‘अब तेरा नाटक देखकर किसकी छाती गज़ भर की होगी रे???…अखबार में तेरी फोटू देखकर कौन मोहल्ले-भर को दिखाता फिरेगा रे???…मुझे मीठे चीले खिलाने को कौन कहेगा रे???…’शव उठा और कुछ समय पहले तक हँसती-बोलती काया जलकर राख का ढेर हो गई।
और रात तक जैसे सब-कुछ शांत हो गया। बस, शारदा, जहाँ जैसी बैठी थी, वैसी ही बैठी रही। तीनों बच्चे रो-धोकर आँगन में ऐसे ही पसर गए। जून की उमस भरी रात। एक तरफ़ ईंट, रेत और चूने के दूह बिखरे पड़े थे बच्चों को छाती से चिपका-चिपकाकर रोए :

‘अरे महेश बाबू, यह किस जनम का बदला निकाल गए हमसे… अरे, तुम्हारी नेकी के गुण तो सारी दुनिया गाती थी… यह किसकी हाय लग गई रे???…’पर दो घंटे में ही उन्होंने रोने-धोने का काम ख़त्म किया! आँखों से आँसू पोंछे और दुनियादारी आँज ली! जो घर ऐसे अधर में लटक गया हो, जहाँ आगे नाथ न पीछे पगहा, वहाँ फुर्सत से बैठकर शौक़ मनाने की गुंजाइश कहाँ भला!मातमपुर्सीवाले लोग चले गए तो शारदा और दीपू को लेकर वे भीतर आए।‘तेरहवीं करने की क्या ज़रूरत है? चौथे दिन हवन करके उठाला कर दो और आगे की सोचो कि कैसे क्या होगा?’पर आगे सोचने के जितने भी रास्ते थे, थोड़ी दूर जाकर ही बंद दिखाई देते थे।