aastik muni kee katha - mahabharat story
aastik muni kee katha - mahabharat story

कश्यप ऋषि की कद्रू और विनता नाम की दो पत्नियां थीं। एक बार किसी बात से क्रोधित होकर कद्रू ने अपने सर्प-पुत्रों को शाप दे दिया कि वे राजा जनमेजय (परीक्षित के पुत्र) के सर्प-यज्ञ में जलकर भस्म हो जाएंगे। इससे सर्प अत्यंत भयभीत हो गए और अपनी रक्षा के लिए ब्रह्माजी की शरण में गए

ब्रह्माजी उन्हें उपाय बताते हुए बोले-हे वासुके! पृथ्वी पर जरत्कारु नाम के एक ऋषि हैं। उनसे उत्पन्न होने वाला पुत्र ही तुम्हारी रक्षा करेगा। अतः तुम उन्हीं के जैसे नाम वाली अपनी बहन का विवाह उनके साथ कर दो।”

ब्रह्माजी की बात मानकर सर्पों ने जरत्कारु ऋषि से जरत्कारु नामक अपनी बहन से विवाह करने की बात कही। जरत्कारु ऋषि ने यह शर्त रखी कि जब भी वह उनकी इच्छा के विरुद्ध कार्य करेगी, उसी क्षण वे उसका त्याग कर देंगे। इस प्रकार जरत्कारु ऋषि ने सर्प-कन्या जरत्कारु से विवाह कर लिया।

विवाह के बाद जरत्कारु ऋषि उसी वन में पर्णकुटी बनाकर निवास करने लगे। उनका जीवन सुख से व्यतीत होने लगा। ऋषि-पत्नी जरत्कारु अपने पति की प्रत्येक आज्ञा का पूरी निष्ठा से पालन करती थी।

एक बार ऋषि जरत्कारु को भोजन करने के बाद निद्रा ने आ घेरा। सोने से पूर्व उन्होंने अपनी पत्नी से कहा-“किसी भी प्रकार की स्थिति क्यों न आ जाए, मेरी निद्रा में व्यवधान मत डालना।”

ऋषि-पत्नी ने इस आज्ञा को शिरोधार्य कर लिया, किंतु ऋषि संध्या तक सोते रहे। तब ऋषि-पत्नी ने पति के धर्म की रक्षा के लिए उन्हें जगा दिया।

ऋषि जरत्कारु की प्रतिज्ञा भंग हो गई और उन्होंने क्रोध में आकर पत्नी का त्याग कर दिया। जरत्कारु अपने भाइयों के पास लौट आई। कुछ समय के पश्चात् उसने एक बालक को जन्म दिया।

यही बालक ‘आस्तीक मुनि’ के नाम से विख्यात हुआ।