खतावार-गृहलक्ष्मी की कहानियां
Khatavar

Hindi Kahani: प्रोफेसर साहब अड़ गए थे कि उनकी बेटी बदचलन नहीं है और उसका चरित्र प्रमाण पत्र जारी करने वाले ये कौन होते हैं? इतने मन से बनवाया हुआ अपना मकान बेचकर तबादला करवा लिया था पर किसी को भी बेटी के खिलाफ एक शब्द भी बोलने नहीं दिया था।

ड्राइंग रूम से पापा की फोन पर बात करने की आवाजें आ रही थी। मिताली कुछ स्पष्ट सुन नहीं पा रही थी। बस इतना ही समझ में आ रहा था कि वो काफी गुस्से में बात कर रहे थे। ‘गुस्से में पापा का बीपी बढ़ जाता है, मुझे उन्हें रोकना ही होगा बात करने से। यही सोचकर मिताली ड्राइंग रूम में आ गई। कुछ देर खड़ी रही। अंदाजा लगा रही थी कि किससे बात हो रही है पर समझ नहीं पाई।
‘पापा, आपके दूसरे फोन पर शुभू का फोन आया था। उसे कुछ जरूरी काम है, प्लीज आप उससे बात कर लीजिए। बेटी की बात सुनकर सुधीर ने फोन पर बोला, ‘अच्छा जी अब मैं फोन रखता हूं। आप सीधे मिताली से बात नहीं करें, पहले मैं खुद उससे बात करूंगा। उसकी मर्जी मैं आपको जल्दी ही बता दूंगा। तब तक आप धैर्य रखें।
पापा की बातों में अब गुस्सा नहीं था। ‘हो सकता है मुझे गलतफहमी हुई हो। पापा वैसे भी फोन पर जोर-जोर से ही बात करते हैं। मिताली ने सिर को झटका दिया और पापा की आवाज सुनने लगी। वो अंदर शुभू से बातें कर रहे थे फोन पर। ‘शुभू से तो वैसे भी चिढ़े ही रहते हैं। ढंग से कभी बात करते ही नहीं हैं। मिताली ने ड्राइंग रूम का पंखा बंद किया और नहाने के लिए बाथरूम में चली गई। आज अदालत के लिए जल्दी निकलना था। तैयार होकर बाहर आई तो मां और पापा किसी बात पर उलझे हुए लग रहे थे। पूछने का समय नहीं था इसलिए मिताली ने अपना टिफिन उठाया और ‘बाय कहते हुए तेजी से बाहर निकल गई। कार में बैठे-बैठे भी ध्यान केस पर कम, पापा की बातों पर ज्यादा था। ‘इतना गुस्से में तो कभी नहीं रहे पापा इस शहर में आने के बाद। अचानक क्या हुआ? उसी शहर से जुड़ा हुआ होगा कुछ-न-कुछ। एक गलती जिंदगी भर दुख देती है। पापा को कितना सहन करना पड़ा है मेरी खातिर।
शाम को खाने पर मां ने बात छेड़ी, ‘मिताली बेटा, वो संजीव अंकल की बेटी तुमसे बात करना चाहती थी। अगर तुम्हे एतराज नहीं हो तो उसे तुम्हारा नंबर दे दूं? मिताली हैरान थी।
‘मां ये आप कह रहे हो? पापा से पूछा आपने? आप कितनी जल्दी सब भूल गए हो ना।
‘भूली तो कुछ नहीं हूं मीतू। संजीव भाई साहब ने तुम्हारे पापा से ही फोन पर बात की थी। अपनी गलती पर शॄमदा थे बस यही कह रहे थे कि मिताली को एतराज नहीं हो तो एक बार बात कर लेगी रानू से।
‘बात क्या है? मिताली ने खुद को सामान्य करके मां से सवाल किया।
‘परेशान है बहुत। रानू ने जिस लड़के से शादी की थी वो कुछ और ही निकला। शादी से पहले जो खुद को बता रहा था उसका एकदम उलट। मां बताते हुए ही परेशान हो रही थी। मिताली मां की हालत देखते हुए बोली। ‘ठीक है, नंबर दे देना आप। रानू से बात कर लूंगी। अब खाना खाओ मां। आजकल शादियां ऐसी ही होती हैं। आप परेशान मत हो। पापा ने मिताली की बात को आगे बढ़ाते हुए कहा।
‘तुम बिलकुल सही कह रही हो बेटा। जमाना बहुत बदल गया है। लड़कियां आगे बढ़ रही हैं लेकिन फिर भी भावनात्मक रूप से उतनी मजबूत नहीं हैं जितना उन्हे होना चाहिए। किसी की भी बातों में आ जाती हैं।
‘पढ़ी-लिखी लड़कियां ज्यादा धोखा खा रही हैं। मां ने भी अपनी राय रखी।
‘अच्छा अब खाना खा लेते हैं पहले फिर इस बारे में सोचेंगे। रानू क्या सोचती है ये सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है। मिताली खाना खत्म करके अपने कमरे में चली गई। कई सालों बाद आज कुछ उलट-पलट हुई थी। उसके दिल और दिमाग में। एक सुकून था कि संजीव अंकल को सबक मिल गया, साथ ही अफसोस भी था कि उसकी बचपन की दोस्त रानू भी उसकी ही तरह प्यार में ठगी गई थी।
रानू से कई सालों बाद बात हुई मिताली की। सकते में आ गई उसकी आप बीती सुनकर। उसका पति खुद उसे अपनी कंपनी के पदाधिकारियों को खुश करने के लिए दबाव बनाता था। चार-पांच साल यह सब करके दौलत इकी करना चाहता था।
जैसे तैसे बहाना बनाकर रानू अपने घर वापिस आ गई थी और उसकी मम्मी ने उसके पापा को मनाया था तलाक दिलवाने के लिए। एक बार बात होते ही मन की कड़वाहट जैसे कम हो गई थी। आने वाले रविवार को संजीव अंकल अपनी पत्नी और रानू को लेकर घर पर आ रहे थे। पापा के चेहरे पर भी एक सुकून था। कहना चाहते थे पर कह नहीं पा रहे थे। ‘मेरी बेटी ने आज मेरी खोई साख वापिस लौटाई है। एक दिन पूरा मोहल्ला कह रहा था कि ऐसी बदचलन बेटी से तो संबंध तोड़ लेना बेहतर है।
प्रोफेसर साहब अड़ गए थे कि उनकी बेटी बदचलन नहीं है और उसका चरित्र प्रमाण पत्र जारी करने वाले ये कौन होते हैं? इतने मन से बनवाया हुआ अपना मकान बेचकर तबादला करवा लिया था पर किसी को भी बेटी के खिलाफ एक शब्द भी बोलने नहीं दिया था।
‘बेटी हो सके तो हमें माफ कर देना। हम तुम्हारा अहसान जिंदगी भर नहीं भूल पाएंगे। संजीव अंकल ने घर में पैर रखते ही हाथ जोड़कर मिताली से कहा।
‘अंकल आप परेशान मत होइए। मुझसे जितना हो पाएगा मैं करूंगी। मैंने पूरा मामला देख लिया है। अब वो सबूत जुटाने होंगे जो मयंक का असली चेहरा कोर्ट के सामने रख सकें। मिताली ने सीधे रानू को लेकर ही बात शुरू की। अंकल और आंटी बड़ी आशा भरी नजरों से मिताली को देख रहे थे।
‘आप उन लोगों पर केस कीजिए। मैं अपनी पहचान के एक अच्छे वकील का नंबर आपको दे रही हूं। अदालत में सामने यही रहेंगे लेकिन केस मैं ही लडूंगी। इससे यही फायदा होगा कि वो लोग मुझ पर नजर नहीं रखेंगे। सबको मिताली का सुझाव पसंद आया।
वकील के बारे में जानकारी लेकर वो लोग वापिस चले गए और मिताली अपने काम पर लग गई। रानू के पति के घर खाना बनाने वाली बाई भेजने से लेकर उसकी ससुराल में काम करने वाले नौकरों का मुंह खुलवाने तक की सारी गुप्त योजनाएं और उनसे मिली जानकारी मिताली के सिवा कोई भी नहीं जानता था। केस उसके पुराने शहर में चल रहा था लेकिन हर तारीख पर मिताली अदालत में उपस्थित होती थी भेष बदलकर। सबका ध्यान वकील पर होता था और मिताली का सब पर। वकील वही बोलता था जो मिताली उसे उसी दिन अदालत परिसर में आने से पहले बताती थी। शुरू में उन्होंने ऐसा ही दिखाया जैसे उनका केस कमजोर है। यह भी एक चाल ही थी जिससे रानू की ससुराल वाले शांत हो गए। उन्होंने लगभग मान ही लिया था कि वो ही केस जीतने वाले हैं। उनकी हर दिन की खबर मिताली के पास होती थी। उसने ठान लिया था कि कुछ भी हो जाए ये केस जीतना ही है। संजीव अंकल और मोहल्ले वालों को दिखाने के लिए नहीं, रानू को इस जंजाल से मुक्ति दिलाने के लिए। उसकी बचपन की दोस्त के चेहरे पर मुस्कुराहट देखने के लिए।
न्यायाधीश के फैसले की घड़ी आ गई थी। आज तो रानू के वकील के तेवर ही अलग थे। उसने सारे सबूत अदालत में सबके सामने पेश कर दिए थे जो मिताली ने बड़ी मेहनत और सूझ-बूझ से इका किए थे। रानू का पति और उसके घर वाले हैरान थे कि उनके बारे में इतनी जानकारी इस वकील ने कैसे जुटाई? उन्होंने तो उसे एक नया वकील समझकर छोड़ दिया था।
उनका वकील आज तक एक भी केस नहीं हारा था लेकिन आज हार गया और रानू सम्मान सहित अपना केस जीत गई। उसे उस आवारा लड़के से छुटकारा मिल गया जिसने उसे एक वीडियो बनाकर शादी के लिए फंसाया था और शादी के बाद उससे वो काम करवाना चाहता था जो एक शरीफ लड़की कभी नहीं कर सकती। रानू के अलावा भी कई और लड़कियों को उसने अपने जाल में फंसाया हुआ था। सबने अदालत में आकर उसके खिलाफ गवाही दी थी।
‘रानू आज रोने का नहीं, हंसने का दिन है। दिल खोलकर हंस ले यार। बोर हो गई हूं तेरी रोनी सूरत देख-देख कर। मिताली की बात सुनकर रानू सही में हंस पड़ी। मिताली अपने मम्मी-पापा के साथ आज ही वापस लौटना चाहती थी लेकिन संजीव अंकल और आंटी ने जबरदस्ती रोक लिया। वो तीनों होटल में ही रुके थे वहीं वापस आ गए। रात को संजीव अंकल के घर पर एक पार्टी थी।
‘पापा आप दोनों चले जाना पार्टी में, मुझे दूसरे केस की तैयारी करनी है। लैपटॉप सामने रखकर मिताली ने कहा। ‘बेटा पार्टी आपके लिए है। आपने असंभव को संभव कर दिखाया है। उन शातिरों को हराना इतना आसान नहीं था। मां और पापा दोनों एक साथ बोल पड़े। तभी दरवाजे की घंटी बजी। संजीव अंकल ही आए थे।
‘आपसे सबके सामने माफी मांगना चाहता हूं, बेटा। रानू के लिए आपने जो किया है वो केवल भगवान ही कर सकता है। आप बस आधा घंटे के लिए कॉलोनी के सामुदायिक भवन में भाई साहब और भाभी जी के साथ आ जाना। पश्चाताप में उनका सिर झुक गया था और हाथ जुड़े हुए थे।
‘देखती हूं अंकल। कोशिश करूंगी। नहीं तो मां और पापा आ जाएंगे। अपमान तो इन्होंने ही सहा था। मैं तो बस घर में कैद हो गई थी।
‘आपका आना जरूरी है बेटा। आप एक मिसाल बन गई हो उन सब लड़कियों के लिए जिनके साथ गलत होने पर वो जीना ही छोड़ देती हैं।
‘अब हमें उनकी किसी बात से कोई फर्क नहीं पड़ता है, बेटा। वो समय गुजर चुका है। हम दोनों तुम्हारे साथ हैं। अब मुंह छुपाकर नहीं, खुलकर सबका सामना करेंगे। मां ने मिताली के कंधों पर हाथ रखकर कहा।
मिताली मां और पापा के साथ पूरे दस साल बाद आज इस कॉलोनी में आई थी।
चौकीदार ने पहचान लिया और हाथ जोड़कर प्रणाम किया। सामुदायिक भवन की ओर बढ़ते हुए वो दिन फिर से याद आया जब मिताली को लेकर सोसायटी के अध्यक्ष ने अपना फैसला सुनाया था। तीनों हॉल में आ गए। सब कॉलोनी वाले वहीं पर थे। सबके चेहरे पर अलग-अलग भाव थे। वकील साहब भी वहीं पर थे। उन्होंने आकर मिताली को हाथ जोड़कर प्रणाम किया। अपनी जिंदगी का पहला केस वो जीते थे। मिताली की काबिलियत से बहुत प्रभावित थे। तभी संजीव अंकल ने माइक अपने हाथ में लेकर कुछ कहना शुरू किया। मिताली के कानों में उनकी आवाज गूंजने लगी।
‘सिद्धांत साहब माना कि लड़कियों को पढ़ाना जरूरी है लेकिन उन पर थोड़ी रोक भी लगाना जरूरी है। लड़के तो होते ही मनचले हैं, लड़कियों को तो संभालना जरूरी है। तभी मां ने उसे हाथ लगाया तो वह वर्तमान में आ पाई और जो उसने सुना उसे अपने कानों पर विश्वास नहीं हुआ।
‘आज की पार्टी एडवोकेट मिताली के सम्मान में दी जा रही है। आप सभी जानते हैं कि रानू बेटी किस तरह एक गलत आदमी के चंगुल में फंस गई थी। यह भी आप सब जान चुके हैं कि उसको बाहर निकालने वाली एडवोकेट मिताली हैं।
‘ये हमारे सिद्धांत भाई साहब की होनहार बेटी हैं। एक दिन हम सबने मिलकर इन्हे अपमानित किया था उस गलती के लिए जो इसकी नहीं, इसकी उम्र की गलती थी। इसी हॉल में सिद्धांत साहब को कॉलोनी छोड़कर चले जाने का फरमान जारी किया गया था। उनके हाथ से इस बार अध्यक्ष महोदय ने माइक ले लिया और बोले। मैं आप सबके सामने मिताली बिटिया और उनके मां पापा से माफी मांगता हूं। उनकी जगह कोई भी होता तो कबका टूट गया होता लेकिन इन्होंने हमारे सामने एक मिसाल रखी है कि बेटियों को केवल पढ़ाना ही जरूरी नहीं है, उनका साथ देना भी जरूरी है।

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Khatavar ki Kahani

हॉल में उपस्थित सभी लड़कियां खुद को विशेष महसूस कर रही थी क्योंकि आज खुलकर उनके सहयोग की बात हो रही थी। इस बार माइक मिताली के हाथ में आया लेकिन उसने रानू को आगे बुला लिया।
‘मिताली मैं जिंदगी भर तुम्हारा अहसान नहीं भूल पाऊंगी। हां, अब मैंने तय किया है कि तुम्हारी तरह ही काबिल बनकर सब लड़कियों की मदद करूंगी।
‘देर से ही सही आप लोगों ने समझा तो सही कि लड़की की पसंद ही नहीं, मां-बाप की पसंद का लड़का भी गलत हो सकता है। रानू की हिम्मत है कि उसने निडर होकर सब कुछ बताया और उस विकृत मानसिकता वाले लड़के के चंगुल से मुक्त हो गई। रानू अब आत्मविश्वास से भर चुकी थी उसने बिना माइक ही बोलना शुरू कर दिया।
‘उस पागल ने मुझसे शादी ही यह सोचकर की थी कि मेरी परवरिश ऐसी है कि मैं कभी उसका विरोध नहीं कर पाऊंगी और मेरे दकियानूसी मां-बाप कभी मेरी शादी नहीं तोड़ेंगे। मैंने मिताली को टूटते देखा और उसे आगे बढ़ते हुए भी देखा तभी मैं इतनी हिम्मत कर पाई। मां और पापा भाव-विभोर होकर हॉल के बाहर चले गए थे। अंदर बस लड़कियां ही थी उस कॉलोनी की। सबने मिलकर मिताली को ऊपर उठा लिया और एक साथ एक स्वर में बोली।
‘अब हम कमजोर नहीं हैं। जुर्म का डटकर मुकाबला करेंगे। हमसे टकराने की सोचना भी मत।
अगले दिन वही फोटो शहर के सभी अखबारों में थी। मां और पापा तो ट्रेन में बैठे बस फोन और संदेशों का ही जवाब दे रहे थे। मिताली खुद को विश्वास दिला रही थी कि यह सब सपना नहीं सच ही है।
‘ये हमारे सिद्धांत भाई साहब की होनहार बेटी है। एक दिन हम सबने मिलकर इन्हे अपमानित किया था उस गलती के लिए जो इसकी नहीं, इसकी उम्र की गलती थी। इसी हॉल में सिद्धांत साहब को कॉलोनी छोड़कर चले जाने का फरमान जारी किया गया था।