Motivational Story in Hindi: उत्तर प्रदेश के एक छोटे से कस्बे, मऊ के एक तंग गलियों वाले मोहल्ले में, जन्नत का जन्म हुआ। बुनकर परिवार था, घर में कुल दस भाई-बहन और माँ-बाप। पिता करघा चलाते थे, माँ हाथ से बुनाई करती थीं। चूल्हे की आग और करघे की आवाज़ों के बीच पली-बढ़ी जन्नत को बचपन से ही सपने देखने की इजाज़त नहीं थी।
“लड़कियों का काम क्या होता है? घर संभालो, पर्दे में रहो और वक्त पर ब्याह कर लो,” यह अक्सर अब्बा कहा करते।
लेकिन जन्नत कुछ और ही थी। उसकी आँखों में करघे नहीं, आसमान था। जब वो छत पर जाकर उड़ते जहाज़ों को देखती, तो घंटों वहीं बैठी रहती। माँ डांटती,
“नीचे आ, तेरा काम पड़ा है। ये उड़ने वाले सपने हमारी किस्मत में नहीं होते।”
पर जन्नत के सपनों में ज़िद थी।
घर में दस बच्चों का पेट भरना, स्कूल भेजना — यह कल्पना से भी परे था। लेकिन जन्नत ने किसी तरह स्कूल की पढ़ाई पूरी की। वह सरकारी स्कूल में पढ़ती, दिन में माँ की मदद करती और रात में भाई-बहनों को पढ़ाती।
“तू तो लड़कों से भी तेज़ है,” मास्टर साहब कहते।
उसने 12वीं में टॉप किया, लेकिन अब आगे की पढ़ाई की बात आई तो अब्बा का चेहरा सख्त हो गया।
“अब बहुत हो गया पढ़ना-लिखना, अब निकाह की सोच। लड़कियों को इतना उड़ा देंगे तो घर कैसे चलेगा?”
जन्नत ने हिम्मत जुटाई और कहा,
“अब्बा, एक बार कोशिश तो करने दीजिए। एयरफोर्स की एंट्रेंस निकाल लूँगी। आपसे कभी कुछ नहीं माँगा, बस एक बार भरोसा कर लीजिए।”
माँ ने धीरे से कहा, “इसका सपना बड़ा है, इसे पूरा कर लेने दो।”
और जन्नत ने लड़ते-झगड़ते फार्म भरा। उसने मेहनत की, दिन-रात एक कर दिए। गाँव भर में लोग बातें करते,
“लड़की है और फाइटर प्लेन उड़ाना चाहती है? ये कोई फिल्म है क्या?”
लेकिन वह चुपचाप मेहनत करती रही। और फिर एक दिन…
जन्नत का चयन हो गया इंडियन एयरफोर्स की ट्रेनिंग में। यह खबर पूरे मोहल्ले में फैल गई। अब्बा का सीना चौड़ा हो गया, लेकिन साथ में फिक्र भी।
“अब तुझे बाहर जाना होगा, गैर मर्दों के साथ रहना होगा।”
माँ ने ढाढ़स बँधाया, “इसका रास्ता अलग है, और ख़ुदा ने इसे पर दिए हैं।”
ट्रेनिंग आसान नहीं थी। वहाँ भी संघर्ष था। जन्नत को उसके पहनावे और पिछली पृष्ठभूमि को लेकर ताने सुनने पड़ते। लेकिन उसने हार नहीं मानी। धीरे-धीरे उसने अपनी जगह बना ली। हर उड़ान, हर मिशन में वह अव्वल रही।
ट्रेनिंग पूरी होने के बाद उसकी पोस्टिंग दिल्ली के पास एक बेस पर हुई। वहीं उसकी मुलाकात फरीद से हुई — एक इंजीनियर, समझदार, लेकिन परिवार से बंधा हुआ। फरीद ने उसका साथ चाहा, पर शर्तें भी रखीं,
“शादी के बाद तुम कम उड़ान भरना, माँ को नहीं पसंद कि बहू बाहर-बाहर रहे।”
जन्नत ने बहुत सोचा।
“क्या शादी फिर से पिंजरा होगी?”
पर उसने भरोसा किया — खुद पर और फरीद पर। शादी हुई, लेकिन जैसे-जैसे समय बीता, उसके पंखों को कतरने की कोशिशें होने लगीं।
“तुम घर में नहीं रहती, बच्चे अकेले पड़ जाते हैं,” सास कहती।
फरीद भी ताने देता,
“तुम्हें बस अपना करियर दिखता है। औरतों की असली ज़िम्मेदारी घर होती है।”
इसी बीच जन्नत ने एक घरेलू सहायिका, रुखसार को काम पर रखा। रुखसार सुबह से शाम तक कई घरों में झाड़ू-पोछा करती, फिर अपने तीन बच्चों को अकेले पालती। पति शराबी था, कमाता नहीं था। एक दिन रुखसार रो रही थी।
“बीबी जी, सबके घर काम करती हूँ, लेकिन कोई इंसान नहीं समझता। आप जैसे लोग ही थोड़ी इज़्ज़त देते हैं।”
जन्नत ने उसकी तरफ देखा और बोली,
“रुखसार, तुम भी एक फाइटर हो। फर्क बस इतना है कि तुम्हारा आसमान छोटा है, लेकिन उड़ान उतनी ही मजबूत है।”
एक दिन जन्नत को एक बड़े ऑपरेशन के लिए चुना गया। दुश्मन सीमा के पास निगरानी मिशन। खतरा था। पर यह उसकी परीक्षा थी। वह उड़ी — आत्मविश्वास के साथ, माँ-बाप की दुआओं के साथ, रुखसार के आंसुओं की ताक़त के साथ।
उसने मिशन पूरा किया। लौटते वक्त उसने विमान के कॉकपिट से नीचे फैले भारत को देखा — और मन ही मन कहा,
“मेरी उड़ान किसी मज़हब, किसी पर्दे, किसी बंदिश की मोहताज़ नहीं। मैं जन्नत हूँ — और मुझे मेरा आसमान मिल गया।”
उस दिन न सिर्फ़ वह एक मिशन से लौटी, बल्कि खुद से किया हर वादा पूरा कर लौटी। उसके बच्चे, उसके माँ-बाप, यहाँ तक कि फरीद भी खामोश होकर उसे निहारते रहे।
जन्नत मुस्कराई —
“अब मैं किसी को कुछ साबित नहीं कर रही, मैं बस जी रही हूँ — अपने सपनों की जन्नत।”
जन्नत की उड़ान-गृहलक्ष्मी की कहानियां
