Parenting Style: आजकल के समय में कूल पेरेंट्स होना एक सामान्य प्रवृत्ति हो गई है। ज्यादातर माता-पिता अपने बच्चों के दोस्त बनकर उनकी परवरिश करना चाहते हैं। माता-पिता के लिए बच्चों के दोस्त बनने के बारे में सोचना गलत नहीं है, लेकिन कई बार माता-पिता दोस्ताना व्यवहार निभाने के चक्कर में अपने बच्चों के साथ ज्यादा ही कूल हो जाते हैं। कूल पेरेंट्स होने के जैसे फायदे हैं, वैसे कुछ नुकसान भी हैं। आईए जानते हैं इस लेख में, कूल पेरेंट्स होने के क्या फायदे और नुकसान हैं।
कूल पेरेंट्स के होने फायदे

जब आपका रिश्ता आपके बच्चे के साथ दोस्ताना रहता है तो आपके तथा आपके बच्चे के बीच का संवाद अच्छा होता है। आपका बच्चा आपसे हर बात साझा करना चाहता है। वह आपसे खुलकर अपने डर, परेशानी या सपना के बारे में बात कर पता है। एक दोस्त की तरह वह आप से अपने सारे सीक्रेट शेयर कर सकता है। आपके प्रति उसके मन में डर की जगह भरोसा होता है कि आप उसकी बातों को समझेंगे।
आपका कूल पेरेंट्स होना आपके बच्चों को भरोसा दिलाता है कि आप उसके हर फैसले में उसका समर्थन करेंगे, जिसके कारण उसे अपने फैसले लेने की आजादी का अनुभव होता है।
जब आप एक दोस्त की तरह अपने बच्चों को बिना किसी पूर्वाग्रह के सुनते हैं तो उन्हें अच्छा महसूस होता है, जिससे उनका तनाव कम होता है तथा वह मानसिक रूप से स्वस्थ महसूस करते हैं।
बहुत ज्यादा कूल पेरेंट्स होने के नुकसान
वह कहते हैं न, अती हर चीज की बुरी होती है। इसी प्रकार जब आप ज्यादा कूल पेरेंट्स बन जाते हैं तो इसके भी कुछ नुकसानों का सामना आपको करना पड़ता है। जैसे;
आपका ज्यादा कूल होना आपके बच्चे में अनुशासन की कमी को जन्म देता है। जब आप कूल बने के चक्कर में अपने बच्चों को ज्यादा ढील देते हैं तो बच्चा अपनी सीमाओं का ध्यान नहीं रखता और आपसे ज़िद्द, प्यार या जैसे भी अपनी बात मानने के लिए बाध्य करता है।
आपका आपके बच्चे के साथ जरूरत से अधिक दोस्ताना बर्ताव होने पर आपके प्रति उसके शब्दों में आदर की कमी आ जाती है। वह आपसे बात करते समय शब्दों के सही चुनाव को महत्व देना नहीं जरूरी नहीं समझता।
आपका ज्यादा दोस्ताना होना आपके बच्चे के संपूर्ण व्यक्तित्व के विकास में बाधा बनता है। किसी भी कारण से वह आपसे ‘ना’ नहीं सुनना चाहता और ‘ना’ ना सुनने की उसकी आदत के कारण उसके अंदर असफलता का सामना कर पाने के व्यक्तित्व का विकास नहीं हो पाता। जिसके कारण वह भविष्य में तनाव का शिकार होता है।
सही तरीका क्या है पेरेंटिंग का?
अपने बच्चों को समझने के लिए उनका दोस्त बनना जरूरी है, लेकिन दोस्ती की सीमाएं और नियम तय होने चाहिए जैसे
बड़ों से बात करते समय शब्दों का ध्यान रखें। किसी भी ऐसे अनुचित शब्द का प्रयोग ना हो, जिसमें आदर का भाव ना हो।
बच्चे अपनी बातों को रख सकते हैं। आपको अपना पक्ष समझने की कोशिश कर सकते हैं। आप समझने की पूरी पूरी कोशिश करेंगे, लेकिन हमेशा हां में जवाब मिले, जरूरी नहीं जरूरत पड़ने पर आप ना कह सकते हैं।
आप बच्चों के दोस्त तथा मार्गदर्शक दोनों बने। उसके डर, तनाव या परेशानियों को दोस्त बनकर दूर करें तथा उसे समाज की मुश्किलों तथा जीवन के उतार-चढ़ाव का कैसे सामना करना है यह सिखाने के लिए उसके मार्गदर्शक बने।
कूल पेरेंट्स होना गलत नहीं है, लेकिन जब आप ज्यादा कूल बनने के चक्कर में अपने बच्चों को अनुशासन सीखना छोड़ देते हैं तो यह गलत है।
