Hindi Funny Story: जब हम छोटे बच्चे थे– बात बात पर कोई भी डाँट देता– कोई भी चाँटा लगा देता– मगर क्या मजाल कि कोई बचा ले।
“‘कूटना ‘ हमारी भारतीय परंपरा है। पहले घर में ही सब मसालों को कूट पीटकर तैयार किया जाता था और फिर जो उसमें महक आती थी वाह! क्या कहने दूर बैठा व्यक्ति भी उसकी महक से तृप्त हो जाता था और ये कूट कर स्वाद बढ़ाना केवल मसालों तक ही सीमित नही था जनाब! हमारे यहाँ तो हम भी बचपन में कूटे पीटे जाते थे।
हम आजकल के बच्चों की तरह नाजुक मिजाज भी नही थे कि कोई नैकु डाँट भी दे तो बिस्तर पर पड़ जाए– भैया रे हमन तो कूटन पर और निखर जाते थे। जब अम्मा बाबा कुटाई करते तो उस समय तो ऐसे भीगी बिल्ली बन जाते कि बस पूछो नही।
पर दूसरे दिन शायद हमारी इम्यूनिटी पावर और भी बढ़ जाती और कुटाई को धर किनारे फिर पूरे जोश से करने निकल जाते शैतानियाँ– पता था कि घर जाकर कुटाई पिटाई तो निश्चित ही है क्योंकि हम सबके बीच एक ना एक चुगलखोर जरूर होता था जो हमारे जाने से पहले ही हमारे कारनामें पिताजी को नौन मिर्च लगाकर सुना देता।
जब हम दबे पाँव घर में घुसते ताकते झाँकते कि कहीं कोई देख तो नही रहा तभी चटाक से गाल पर पड़ता तमाचा और अम्मा मारती बेलन से। दैया रे दैया! आज भी जब याद आवत है वो बचपन की पिटाई – तो रोंगटे खड़े हो जाते हैं।
एकबात जरूर है उस कुटाई ने हमें सहनशील बना दिया वक्त के थपेड़ों की मार सहने के लिए। हम शारीरिक रूप से भी छोटी मोटी चोटें सहन कर जाते हैं और मानसिक रूप से भी।
आज तो अपने उन सभी बुजुर्गों,स्कूल के टीचरों का धन्यवाद है जो कि बात-बात पर कान खिंचाई करते थे और उसी कान खिंचाई के कारण हमारी श्रवणशक्ति आज भी दुरुस्त है–पड़ोस के ताऊ जी चाचाजी–सबको सादर प्रणाम अभिनंदन वंदन कि उन्होंने हमारी इम्यूनिटी बूस्ट कर दी बढ़िया कुटाई करके।।
