Shalini
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Best Hindi Story: तभी पवन ने करवट ली और शालिनी को बैठा देखा, साथ में उसके हाथों में अपना फोन देख कर वह उछल कर बैठ गया और उससे फोन लेना चाहा, किन्तु शालिनी ने फोन नहीं लेने दिया।

मनोचिकित्सक डॉ. सत्या की कार अब उस सड़क पर आ चुकी थी जहां से ‘कच्चे मन रूग्णालय’ का
बोर्ड स्पष्ट रूप से दिखने लगा था। वह मन ही मन बुदबुदायी ‘कच्चे मन’ सच ही तो है जिनका मन और समझ उतनी मजबूत नहीं होती है जितनी कि होनी चाहिए। नहीं, नहीं उतना तो मजबूत मन होना ही चाहिए कि किसी से मिला धोखा या मन पर लगी चोट को सहने की शक्ति तो होनी चाहिए। इतने में उनकी कार गेट के पास आकर रुक गई। डॉ. सत्या का स्वागत करने के लिए वहां के प्रमुख डॉ. चिन्मय स्वामी खड़े थे। दोनों ने अपने परिचय के साथ अभिवादन किया। उसके बाद दोनो ऑफिस से सटे कक्ष में पड़े सोफे पर जाकर बैठ गए।
डॉ. सत्या महिलाओं की विक्षिप्त अवस्था से स्वस्थ अवस्था में लाने के लिए विख्यात थीं। उन्होंने बहुत सी जटिल अवस्था में पहुंची महिलाओं को पूर्ण रूप से स्वस्थ जीवन जीने योग्य बनाने में कामयाबी पाई थी। आज वह यहां पर एक मानसिक रोगी शालिनी के लिए स्पेशल रूप से आयी थीं।

डॉ. चिन्मय स्वामी ने डॉ. सत्या को केस की फाइल देते हुए कहा, ‘चलिए आपको पेशेंट से मिलवा दूं।’ डॉ. सत्या ने पहले पेज पर उसकी फोटो देखते हुए कहा, ‘ओह सो इनोसेंट।’ शालिनी के कक्ष में
पहुंच कर उन्होंने देखा कि वह एक, दो टुकड़े में टूटी हुई डंडी को एक-दूसरे से सटाते हुए बोल रही थी, ‘जुड़ जा, गिरना नहीं जुड़ी रहना। हाथ में पकड़ी डंडी हाथ में रह जाती और ऊपर रखी डंडी हाथ
हटाते ही नीचे गिर जाती।

यही क्रम चलता रहता। डॉ. चिन्मय स्वामी ने बताया कि यह किसी प्रकार की टूटी हुई वस्तुओं को जोड़ने का प्रयास करती रहती है। असफल होने पर उदिग्न होकर चिल्ला-चिल्ला कर रोती है। हाथ-पैर पटक-पटक कर चोट लगा लेती है। उसके बाद वह एकदम शांत होकर एक जगह बैठ जाती है और घंटों बैठी रहती है। डॉ. सत्या ने ऑफिस में बैठ कर उसकी केस फाइल पढ़ी। जानकारी के मुताबिक उन्हें यही मालूम हुआ कि एक दिन शालिनी के पति का फोन शालिनी के पिता के पास आया और उनसे कहा कि जितनी जल्दी हो सके आप शालिनी से मिलने आ जाइए। दूसरे दिन ही उसके माता-पिता शालिनी के ससुराल पहुंच गए। शालिनी सोई हुई थी।
मां ने जाकर उसके माथे पर हाथ फेरा। शालिनी! कह कर पुकारा। वह हल्का सा कुनमुनाई, किंतु जागी नहीं। शालिनी के पति पवन ने घड़ी देखते हुए कहा, ‘अभी एक घंटे बाद ही वह जागेगी। शालिनी के पिता ने पूछा, ‘आखिर बात क्या है? वह ठीक तो है? इस तरह हमको क्यो बुलाया? पवन ने बताया कि वह कुछ दिनों से जब तक थक नहीं जाती तब तक रोती रहती हैं और न ही रात में सोती है,
इसलिए हमको नींद की दवा देकर उसको सुलाना पड़ता है।

यह सुनकर उसके माता-पिता सकते में आ गये। उन्होंने पूछा, ‘ऐसा क्या हुआ है? जिससे वह ऐसी अवस्था में पहुंच गई हैं?’ पवन ने मुंह चुराते हुए कहा, ‘अब आप लोग आ गए हैं, स्वयं ही पूछ लीजिए।’
शालिनी की मां का हृदय जोर-जोर धड़क रहा था। कुछ तो बहुत गलत हुआ है, उसकी पूरी-पूरी संभावना उन्हें महसूस हो रही थी। उसकी मां ने कहा, ‘मेरी बच्ची! अपने नाम के अनुरूप शिष्ट और
शालीन! सच्चे हृदयवाली! बचपन से ही भगवान पर आस्था रखने वाली है। ऐसा क्या हो गया जिससे उसको आज यह दिन देखने पड़ रहे हैं?’
उसकी मां ने पवन से पूछा उसका बेटा कहां है? पांच वर्ष का शालिनी और पवन का बेटा ‘किरीट।’ पवन ने बताया उसको एक सप्ताह पहले उसकी दादी के पास भेज दिया है। शालिनी और पवन का विवाह सात वर्ष पहले हुआ था। दोनों काफी खुश दंपती माने जाते थे। किरीट के जन्म के बाद दोनों परिवार संपूर्ण रूप से प्रसन्न थे।

दादी-दादा दो घंटे की दूरी पर रहते थे, जिससे उनका आना-जाना होता रहता था। शालिनी के पिता ने कहा बच्चे को दूर नहीं करना चाहिए था, वह पास होता तो उसके साथ रहने से उसका मन लगा रहता। पवन ने कहा वह इनकी ऐसी हालत देख कर रोता था। उसके ऊपर बुरा असर पड़ रहा
था इसलिए ही तो भेज दिया है। मां ने पवन से पूछा, ‘तुम कुछ छुपा तो नहीं रहे हो? मेरी बेटी की ऐसी हालत कैसे हो गई? यह सब कितने दिन से है। पवन ने कहा कि ‘पहले शुरू में वह बात-बात पर झगड़ा करती थी फिर चुप हो जाती थी। हर दिन मैं सोचता आज झगड़े का आखिरी दिन है किन्तु दूसरे दिन फिर बेसिर पैर की बातों से चीखना-चिल्लाना शुरू कर देती। मैंने सोचा था मैं संभाल लूंगा, किंतु पानी सिर से ऊपर चला गया, तब आप लोगों को सूचित किया।’
चारों माता-पिता ने आपस में सलाह करके मनोचिकित्सक को दिखाने का फैसला किया। पहले तो वे एक शहर के बुजुर्ग डॉ. कृष्ण कांत के पास ले गए। उन्होंने शालिनी की हालत देखकर ‘कच्चे
मन रूग्णालय’ ले जाने की सलाह दी, तब से वह यहीं पर है। एक वर्ष बीत जाने के बाद उसकी स्थिति में कोई सुधार नहीं है। डॉ. सत्या के बारे में डॉ. कृष्ण कांत ने ही बताया था। वह आगरा के हास्पिटल में
कार्यरत थीं।

शालिनी के माता.पिता ने डॉ. सत्या से बहुत ही अनुनय-विनय की तब कहीं जाकर वह इस शर्त पर राजी हुई कि पहले वह मरीज से मिलेगी, तभी केस हाथ में लेंगी। डॉ. सत्या ने बारीकी से सभी पहलुओं पर ध्यान दिया। उसके बाद वह
आगरा वापस लौट गई। शालिनी के मातापिता पुन: उनसे मिलने गए। बातचीत के दौरान उन्होंने अपने नाती किरीट की फोटो देखने के लिए फोन डॉ. सत्या को दिया। वह फोन शालिनी का था, डॉ. सत्या ने उत्सुकतावश स्क्रीन को उलटा-पलटा, देखा। सब कुछ बहुत अच्छा और प्यार भरा ही दिख रहा था, कहीं से भी कुछ एक भाव भी अप्रिय नहीं था। शालिनी के माता-पिता और उसके सास-ससुर के मुताबिक वह दोनों एक खुशहाल दंपती थे।
डॉ. सत्या ने शालिनी के माता-पिता से शालिनी को आगरा अपने अस्पताल में लाने की बात की। पिता एक मध्यम आय वाले थे, फिर भी वह हर तरह के खर्च के लिए मन ही मन तैयार थे। उन्होंने कहा, ‘आपको जो ठीक लगे वह करें, मुझे मेरी बेटी स्वस्थ चाहिए।’ ‘कच्चे मन रूग्णालय’ के साथ पूरीआवश्यक कागजी कार्यवाही के बाद शालिनी को आगरा लाया गया।
डॉ. सत्या शालिनी से मिल कर बातें करती, वह कुछ नहीं बोलती बस कभी कुछ बोलती तो यही कहती, ‘कुछ जुड़ नहीं सकता। डॉ. सत्या सीसी टीवी से शालिनी पर हर समय नजर रखती। वह
अपने घर में भी होती तो भी अपने

शालिनी और पवन का विवाह सात वर्ष पहले हुआ था। दोनों काफी खुश दंपती माने जाते थे। किरीट के जन्म के बाद दोनों परिवार संपूर्ण रूप से प्रसन्न थे। दादी-दादा दो घंटे की दूरी पर रहते थे, जिससे उनका आना-जाना होता रहता था।

मोबाइल से शालिनी को देखती रहती। एक दिन वह गलियारे में थी, कमरों की सफाई चल रही थी। सभी कमरों का कूड़ा निकाल कर बाहर रखा जा रहा था। शालिनी को कूड़े में एक कांच का गिलास दिखा जोकि दो टुकड़े में था। उसने उन दोनों टुकड़े को उठा लिया और एक जगह बैठ कर उसे जोड़ने लगी। उसी समय डॉ. सत्या उसी तरफ आई थी उन्होंने शालिनी के हाथों में कांच का टूटा गिलास देखा, शालिनी को गिलास से चोट लग न जाए इसके लिए चिंतित हो गई किन्तु जैसे ही शालिनी के चेहरे की तरफ नजर गई, वह चुपचाप उसको देखने लगी। आज उसके चेहरे के भाव पहली बार कुछ अलग दिखें उन्होंने देखा शालिनी ने दोनों गिलास के टुकड़ों को जोड़ दिया था और उसको निहार रही थी। थोड़ी-सी संतुष्टि उसके चेहरे पर दिखी। डॉ. सत्या ने देखा गिलास ऐसा टूटा था कि उसका जोड़ बहुत ही महीन दिखाई दे रहा था। फिर उन्होंने देखा शालिनी ने गिलास को जमीन पर रख
दिया।

अचानक वह चिल्लाई यह पूरा नहीं जुड़ा है! इसमें जोड़ है! यह पहले जैसा नहीं हो सकता! और गला फाड़कर रोने और हाथपैर पटकने लगी। कर्मचारियों ने मिलकर उसको उसके कमरे में पहुंचाया। फिर नींद की दवा देकर उसे सुलाया गया। डॉ. सत्या ने मन ही मन में विचार किया और निर्णय लिया कि शालिनी को अपने घर में रखेंगी। ऐसा वह पहले भी कर चुकी थी। कई रोगियों को वह अपने घर में रखकर उनका मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य ठीक कर चुकी हैं।
डॉ. सत्या की एक ही बेटी थी जिसका विवाह एक वर्ष पहले हो गया था और वह ससुराल में पति के साथ थी। डॉ. सत्या संयुक्त परिवार में रहती थी तीन मंजिल का घर था। आसपास काफी जगह थी जिसमें एक तरफ बगीचा था और दूसरी तरफ सर्वंेट क्वार्टर और कार पाॄकग की जगह थी। एक मंजिल (बीच वाली) में उसके जेठ-जेठानी रहते थे। उनका एक नाती था और एक पोती थी जोकि छुट्टियों में आया करते थे। वहीं पर एक कमरे में शालिनी के रहने की व्यवस्था की गयी थी।
डॉ. सत्या ने अपने घर के कार्यों के लिए एक सहायिका रखी थी। उन्होंने उसका कार्य समय और वेतन बढ़ा कर शालिनी की देखभाल के लिए भी रख लिया था। शालिनी के कमरे के दरवाजे के साथ एक ग्रिल का भी दरवाजा था। इस तरह शालिनी पर बाहर से नजर रखी जा सकती थीं। डॉ. सत्या जब घर पर होती शालिनी को प्रतिदिन एक टूटी हुई वस्तु जोड़ने को देती। वह उस वस्तु को बड़े मनोयोग से जोड़ने का प्रयास करती।

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ऐसे ही दिन बीतते जा रहे थे अच्छा खान-पान घर का वातावरण का प्रभाव शालिनी रूप रंग पर स्पष्ट रूप से दिखाई दे रहा था। एक दिन उसे एक टूटा कप जोड़ने के लिए दिया गया जोकि बड़े ही बेतरतीब तरीके से टूटा था। उसने उसको जोड़ा सारे जोड़ स्पष्ट दिखाई दे रहे थे उसने उसको दिखाते हुए बड़े ही विषादपूर्ण भावों से भरे हुए चेहरे से कहा, ‘कहां यह पहले जैसा हो पायेगा?’ टूटी हुई वस्तु हो या टूटा हुआ विश्वास! उसका यह कथन उसका पूर्ण रूप से सामान्य व्यक्ति की तरह था। डॉ. सत्या
उसके चेहरे के भावों को पढ़ रही थी। उन्होंने उत्तर दिया, ‘वस्तुएं तो निर्जीव होती हैं उन पर किसी का वश नहीं होता,
किंतु विश्वास अपनी मानसिक प्रक्रिया है और सजीव मनुष्यों में लचीलापन होता है, ठीक होने की संभावना होती है। जिसने भी विश्वास तोड़ा है यदि उससे गलती हुई है, भविष्य में कभी न दोहराएं तो माफी मिल सकती है। यह कह कर डॉ. सत्या वहां से चली गई। सहायिका ने शालिनी को कमरे में बिठाया। उसकी मुख मुद्रा विचारमग्न थी। रात्रि में भोजनोपरांत डॉ. सत्या और शालिनी बालकनी में चेयर पर बैठी थी।
शालिनी अचानक बोल पड़ी, ‘विश्वास यदि उसने तोड़ा हो जिस पर खुद से ज्यादा विश्वास हो?’ डॉ. सत्या ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया, स्वाभाविक है विश्वास टूटने का दु:ख बहुत ही पीड़ाकारक होती है,
किंतु अपने जीवन से उसका मूल्यांकन कम ही निकलेगा इसका मतलब है कि हमने अपनी जिंदगी की खुशियां और अपनी सांसें पूर्णरूपेण से सब कुछ किसी और को दे दी हैं जबकि ऐसा नहीं होना चाहिए।
हम अपने अस्तित्व का मूल्य समझे बिना उसे किसी और के हवाले कर दें, तो यह स्वयं का ही
अपमान होगा शालिनी ने डॉ. सत्या की एक-एक बात बहुत गौर से सुनी। डॉ. शुभरात्रि बोलकर
फिर अपने शयनकक्ष में चली गई। किंतु शालिनी के लिए कैसी शुभरात्रि! उसके जीवन में तो सूर्योदय हो रहा था। वह रात भर चहलकदमी करती रही और उसकी आंखों में वह पीड़ादायक घटना चलचित्र की भांति चलती रही। अंतर इतना था कि आज न विलाप था और न ही आंसू थे। पवन आज एक सप्ताह बाद अपने टूर से वापस लौटा था। वह अक्सर ही कुछ दिनों के लिए छोटी-छोटी ट्रिप लगाता था। प्राय: तीन-चार दिन की ही होती थी इस बार वह पूरे एक सप्ताह बाद लौटा था। पहले वहां से वह दिन में तीन-चार बार फोन करता था।

विस्तार से सभी बातें बताता था। इस बार उसने काम भर की बातें की। मात्र सूचना भर। अभी काम है यह कर वह फोन रखने को कहता था शालिनी ने इस बात को ज्यादा मन पर नहीं लिया तथा इसे पवन की व्यस्तता ही मानी। आज रात नौ बजे वह लौटा। शालिनी खुशी से उसकी पसंद का खाना तैयार कर रही थी। किरीट सो गया था। दोनों ने मिलकर खाना खाया। सोने की तैयारी करके बेड पर लेट गए शालिनी ने उसके ऊपर हाथ रखा। पवन ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी। अगले ही क्षण उसकी तरफ पीठ करते हुए बोला, ‘पूरे एक सप्ताह की थकान है।

नींद आ रही है।’ शालिनी को अच्छा नहीं लगा। पवन गहरी नींद में चला गया। पास में रखे फोन पर फिर कुछ आया उसने अनमने ढंग से फोन उठा लिया स्क्रीन पर एक नया मेल दिखा। उसने उसे खोला जैसे ही पढ़ा पढ़ती गई उसको लगा वह हवा में खड़ी है, जहां उसके आस-पास ऊपर-नीचे शून्य है। मेल में लिखा था कि कैसे उन दोनों ने दिन-रात एक-दूसरे में डूब कर बितायी है जिसे स्मरण करके वह आनंदित है। पवन ने जाने कितने प्रेम भरे संबोधनों से उसे संबोधित किया था। ‘तुम्हारे बिना जीवित नहीं रह पाऊंगा।’ ‘आज की तुम्हारी फोटो देखी, इतनी उदास क्यों हो। मैं तुम्हें उदास नहीं देख सकता। तभी पवन ने करवट ली और शालिनी को बैठा देखा, साथ में उसके हाथों में अपना फोन देख कर वह उछल कर बैठ गया और उससे फोन लेना चाहा, किन्तु शालिनी ने फोन नहीं लेने दिया और दूसरे कमरे में जाकर अंदर से दरवाजा बंद कर लिया। वह जैसे-जैसे पढ़ती जाती पति पर किया विश्वास और विवाह का पवित्र बंधन मुंह चिढ़ाता। बाहर से पवन दरवाजा खोलने के लिए कह रहा था। जब उससे आगे और न पढ़ा गया, तब उसने मैसेज बॉक्स देखना शुरू किया। पहले सरसरी निगाह से ऊपर से नीचे देखा बीच में एक ज्वैलर की शॉप के पांच लाख का भुगतान देखा जबकि इतने वर्षों में उसने ज्वेलर की शाप की शक्ल तक नहीं देखी है। उसने दरवाजा खोला और फोन की तरफ संकेत करते हुए बोली यह सब क्या है? पवन ने कहा, ‘ऐसा कुछ नहीं है।’ उसके चेहरे से
साफ झूठ झलक रहा था। पूरी रात झगड़ा चलता रहा। वह उसकी लिखी हुई बातों का हिसाब मांगती रही। वह बेसिर-पैर की बातें करके भरमाने का प्रयास करता रहा, किंतु ऐसा कोई उत्तर नहीं दे पाया जो सच्चा और संतोषजनक हो।

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पवन ने जब निशा को यह बात बताई कि उसका भेद खुल गया है तो निशा ने उससे बात करना बंद कर दिया। निशा तलाक शुदा थी, विवाह के एक वर्ष के बाद उसका तलाक हो गया था क्योंकि वह
एक बंधन मुक्त जीवन जीना चाहती थी वह अपने माता-पिता से भी लंबे अंतराल के बाद ही मिलने जाती थी।
पवन का रवैया समझौता वाला तो था किंतु वह गलत नहीं है यह माने बिना इससे तो यही साबित होता है कि भविष्य में वह पुन: यह गलती कर सकता है। शालिनी को उसकी किसी बात या भाव से नहीं लगा कि उसने कुछ गलत किया है। पश्चाताप लेशमात्र भी नहीं दिखता था। डॉ. सत्या सुबह जल्दी ही उसके कमरे में आई। शालिनी के गुडमाॄनग बोलने के बाद पूछा, ‘आप किस के साथ घर जाना पसंद करेंगी, पति के साथ या माता-पिता के साथ?’ शालिनी ने दृढ़ शब्दों में कह, ‘मां-पिता
और अपने बच्चे किरीट के साथ।’ वह भी कोर्ट में कस्टडी की अर्जी डालते हुए। आज डॉ. सत्या पुन: एक और रोगी को सामान्य जीवन धारा से जोड़ने में सफल हुई।