Social Story in Hindi: गीता अस्पताल के बरामदे की छोटी दीवार पर बैठकर, बाहर हो रही हल्की फुल्की बारिश को बड़े ध्यान से देख रही थी। धीरे-धीरे बारिश तेज होने से, बाहर घुमने वाले सभी मरीजों के परिजन अस्पताल के बरामदे में आकर खड़े हो गए।

अब बरामदे में भीड  जमा हो गई थी। सभी लोगो की बातों का हल्ला हो रहा था। गीता ने पास के कमरे की खिड़की से झांक कर देखा उसका बेटा सो रहा था। तो वह बाहर इत्मीनान से बैठी रही,पास में ही किसी के मोबाइल में गाना बज रहा था ”लगी आज सावन की फिर वो झड़ी है…।”

गीता ने यह गाना सुना तो मन ही मन खीज कर चिढ़ने लगी। “ये कैसी सावन की झड़ी…? मेरे लिए तो मुसीबत की घड़ी बन गई। बारिश की तेज बूंदों को देख गीता को पिछले दिन याद आ गए।
  गीता घर के काम करते हुए,अकेले-अकेले बड़बडा रही थी, “ये बारिश भी चेन से रहने नही देती है।

हर साल आ जाती है। हमें बर्बाद करने। सोचा था शहर में शादी होगी तो बहुत अच्छे से सजूंगी

मेम साब बन कर रहूंगी। घर अच्छा पक्का बना होगा। मुझे क्या पता था कि मेरे नसीब में ये झोपड़ा बंधा हुआ है, वो भी नाले के पास। जिससे हमेशा बदबू आती रहती है।”
       गीता का घर काली और पीली प्लास्टिक की तिरपाल से ढका, बिना सीमेंट रेत से ईंट की दीवार से बना हुआ था।

खाली सीमेंट की बोरियों से छत व दीवार ढकी हुई थी। बारिश से बचाव के उसके पास कुछ इसी तरह के साधन थे। उसकी झोपड़ी में टुटी खाट और एक लोहे का ड्रम व बक्सा रखा हुआ था। बर्तन के नाम पर टुटी- फुटी थाली कटोरी ही थी। इतनी छोटी सी गृहस्थी में उसका तीन साल का बेटा (कान्हा)और पति रहते थे। गीता अधिकतर समय बाहर ही तीन ईंटें रखकर चूल्हा बनाकर खाना बनाया करती थी,क्योंकि उसका बेटा बाहर ही खेलता था।

वह खाना बनाते समय खेलते हुए कान्हा का भी ध्यान रख लिया करती थी। वह काम करती कान्हा आगे पीछे खेलता रहता। गोधुली बेला में गीता झोपड़े के बाहर चुल्हे पर खाना बना रही थी। कान्हा भी पास में खेल रहा था कि अचानक आसमान अपनी पानी वाली रंगत दिखाने लगा, उसकी नज़र आसमान की ओर गई, आसमान धीरे-धीरे अपना रंग बदलता नजर आ रहा था । अब काले बादल भी गरजने लगे, ऐसा लग रहा था। अब बारिश होने वाली ही है,गीता बादलों को देख घबरा गई। गीता आसमान की ओर देखती रोटी बेलती, फिर आसमान की ओर देखती …, ऐसा लग रहा था,बादल भी गीता को डरा रहे हो जैसे।

गीता बादलों की ओर देखती जल्दी- जल्दी रोटिंया बनाती,उसे हर पल डर लग रहा था कि बारिश आ गई तो रोटियां कैसे बनेगी,बच्चा भूखा रह जाएंगा। इसलिए वह मन ही मन भगवान को मना रही थी,”हे भगवान थोडी देर और रोके रखना।” जल्दी-जल्दी ​हाथ चला रही थी कच्ची पक्की रोटिंया सिक रही थी,हवाए भी तेज चल रही थी।

इसलिए चुल्हा भी बुझ- बुझ जा रहा था। तेज हवा के साथ अब बारिश के भी छींटे शुरू हो गए थे। काले बादल, तेज हवाए देख कान्हा भी घबराने लगा, वह अपनी माँ से चिपक गया।

गीता ने जल्दी-जल्दी बर्तन व रोटियां उठाई और झट से झोपडें में बच्चे को लेकर घुस गई,टुटी चारपाई पर कान्हा को गोद में लेकर बैठ गई। कान्हा को चिपकाए बड़ बड़ाने लगी “तेरे बाप को भी दूसरे शहर ही जाना था मजदूरी करने को।” इतनी तेज आंधी बारिश थी कि झोपड़े के कुछ प्लास्टिक तिरपाल उड़ने लगे। टीन टप्पर के उडऩे की तेज आवाजें आ रही थी।

तेज हवा से घर में जलाया हुआ दीपक भी बुझ गया । गीता सोच रही थी,दो तीन घंटे के बाद बारिश थम जाएगी। किन्तु इतनी तेज आंधी बारिश देख वह डरने लगी,कान्हा को और अधिक जकड़कर बैठ गई, “‘है भगवान’ अब बस कर!” अब उसकी आवाज़ में डर और करुणा थी, किंतु भगवान को तो कुछ और ही मंजूर था।

तेज बारिश लगातार होती जा रही थी। जिससे पानी उसके झोपड़े में भी घुस गया। नीचे चारो ओर पानी बहने लगा। अत्यधिक बारिश होने के कारण पानी की बौछारे उस पर भी पडऩे लगी। इतनी तेज बारिश देख उसकी भूख प्यास भी नदारद हो गई।

गीता कान्हा को दबाए चारपाई पर बैठी रही। चारों तरफ स्याह अंधेरा बारिश इतनी तेज थी, ऐसा लग रहा था जैसे बादल फट गया हो। लगातार तेज बारिश से उसकी चारपाई के पैर भी अब डूब गए और पानी का बहाव इतना तेज हो गया कि कान्हा और गीता पानी में बहने लगे।

गीता सम्भले भी तो कैसे, स्याह अंधेरे में कुछ दिखाई भी तो नही दे रहा था। पानी का बहाव बढ़ता गया और एक अत्यधिक तेज बहाव सब कुछ बहा ले गया, उसका बच्चा भी अब उसके हाथों से छूट गया। गीता तेज-तेज रोने लगी उसे कुछ नही सूझ रहा था, कि करे तो क्या करे।

मुसीबत की बारिश भी थम चुकी थी। वह उसके झोपडे से लगभग पांच सौ मीटर दूर बहते हुए चली गई, एक मोटे से लोहे के खम्बे को पकड़े पड़ी रही। जैसे ही सुबह हुई वह अपने कान्हा को ढूंढने लगी,वह अपने झोपड़े क़ी ओर जल्दी- जल्दी भागने लगी,उसकी आंखे कान्हा को ढूंढ रही थी।

कहीं कपड़ों का ढेर किसी से अटका देखती तो उसमें अपने कान्हा को ढूंढने लगती। वह झोपड़े तक पहुंचती तो देखती कि उसका झोपड़ा गायब…,गीता यह देख और भी अधिक दुःखी हो गईं,  “रोते हुए बोली,”है भगवान! तूने सब कुछ छीन लिया…!” गीता ने देखा,उसके घर से थोडी दूरी पर कई लोग हाथ में केमरा लिए खडे हुए थे।

वे सभी बोल रहे थे,  ‘देखो बारिश की तबाही चारों ओर मैदान कर दिया.,  गीता के अब आंसू नही रुक रहे थे। रोते-रोते वह लोगो से पूछ रही थी, “मेरे कान्हा को देखा क्या?” वह कचरे के हर ढेर को देख रही थी, बहुत ढूंढ़ने के बाद उसे एक दीवार में कुछ फंसा हुआ सा दिखा। गीता भागकर गईं, उसे टटोलने लगी, गंदे कपडे प्लास्टिक सामान के बीच में, उसका कान्हा उसे दिख ही गया,उसने बेटे को गोद में उठाया और सरकारी अस्पताल की ओर भागने लगी। गीता को भी बहुत सी चोट आई। किंतु वह खुद की चोट को भूल गई। 
     अस्पताल के हो हल्ला के बीच में एक दर्दीली आवाज आई “माँ …!” गीता तुरंत अपने बच्चे के पास पहुंच गई। कान्हा के सर पर हाँथ फेरती हुई सोच रही थी, हमारे साथ जो हुआ उसका दोषी कौन है? सरकार या हमारी गरीबी या फिर बारिश, भगवान तूने बारिश ऐसी निष्ठुर क्यों बनाई? हर साल हमारे जैसे लोग कुछ बह जाते है कुछ बेघर हो जाते है,चुनाव के समय नेता जी आते है, पक्के घर बनाने का सपना दे जाते है|”
        आसपास से आवाजें आने लगी राउंड पर डॉक्टर आ गए, डॉक्टर…, सुन गीता का ध्यान टूटा, डॉक्टर ने कान्हा को देखते हुए कहा, “अब यह खतरे से बाहर है, इसके पेट व फेफड़ों में पानी भर गया था, तुम भाग्यशाली हो तुम्हारा बच्चा बच गया|” गीता ने मुस्कुराते हुए बेटे को गले लगा लिया|