बारिश की बूंदे..!-गृहलक्ष्मी की कहानियां
Barish ki Bunde

Hindi Story: “उफ्फ..! ये बारिश भी ना..! पता नहीं क्यों अक्सर या तो दफ्तर जाने के समय आती है या दफ्तर से घर आते हुए” झुंझलाती हुई मानसी घर में घुसी।
झटपट भीगे कपड़े बदलकर आशा को चाय बनाने को कहा।

“आशा! बाबूजी किधर है? उनके लिए भी चाय बना देना।”

“दीदी! बाबूजी तो जबसे बरसात शुरू हुई तभी से छत
पर चले गए बहुत रोका पर माने ही नही।” आशा की बात सुनकर हैरान थी।
झटपट छत पर पहुंची, अभी समीर आ जायेंगे तो उसी पर तो चिल्लाएंगे, पहली बार बाबूजी उनके विवाह के बाद शहर रहने आए और मानसी कोई भी कमी छोड़ना नहीं चाहती थी।

बाबूजी ! मूसलाधार बारिश में छत पर रखी एक कुर्सी पर बैठे भीग रहे थे और अपलक आसमान की ओर देख रहे थे।

“बाबू जी! नीचे चलिए आप बीमार हो जाएंगे।” मानसी से जोर से आवाज लगाई।

“अरे बहुरिया! आ तू भी भीग इस सावन में और समीर को भी बुला ले।” बाबूजी ने उत्तर दिया।

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मानसी बिना कुछ उत्तर दिए नीचे आ गई और सामने ही समीर बैठा था, “सुनो बाबूजी को तुम्ही समझाओ! इतनी तेज बारिश में आए दिन भीगने से बीमार हो जाएंगे और तो और तुम्हें और मुझे भी भीगने का न्यौता दे रहे है।
सच सुना था कि इस उम्र में बुजुर्ग बच्चों की तरह करते है पर आज देख भी लिया।
आप ही बुला कर लाइए उन्हें अब” एक ही सांस में मानसी बोली।
“कोई नहीं! रहने दो कुछ देर उन्हें छत पर” धीमी सी आवाज में समीर बोला।
“लगता है बाबूजी को बारिश बहुत पसंद है।” मानसी मुस्कुराई।
“बाबूजी को नहीं बारिश माँ को बहुत पसंद थी” अचानक समीर के मुख से निकला और उसकी आंखे भर आई।
मानसी ने झट समीर का हाथ पकड़कर उसकी आँखों में देखा और समीर बोलने लगा,

“शुरू से ही माँ और बाबूजी में जमीन आसमान का अंतर। बाबूजी शिक्षित और धीर गंभीर तो माँ कम पढ़ी और चंचल।

बहुत बचपना था माँ में बाबूजी के मुकाबले होता भी क्यूं ना दोनो की उम्र में आठ साल का अंतर जो था।

पांचवी पास होने के बावजूद माँ ने गृहस्थी बहुत अच्छे से संभाली थी और हम बच्चों को भी। शुरू शुरू में तो बाबूजी शहर में नौकरी करते और माँ हम बच्चों के साथ गांव में रहती। 
माँ को बारिश में भीगना बहुत पसंद था और दादी ने ही तो कभी इस बात से उन्हें रोका ना था। एक बार बाबूजी सावन के मौसम में घर आए और माँ ने बाबूजी से बारिश में भीगने की जिद की तो बाबूजी आँखें तरेर कर कमरे में चले गए थे और दादी ने भी माँ को इशारे से मना कर दिया था।

    फिर कुछ वर्षो बाद हम बच्चों की अच्छी शिक्षा के लिए बाबूजी ने हम सबको शहर बुलवा लिया। याद है मुझे शहर का वो पहला सावन मैं नौवीं कक्षा में था और जैसे ही बारिश की बूंदे धरती पर गिरने लगी माँ के अंदर का बच्चा मचल गया और माँ कमरे के बाहर के आंगन में भीगने चली गई। सपना भी माँ के साथ थी पर मैं भी था। माँ और सपना साथ-साथ कोई मीठा गीत भी गा रही थी, इतने में बाबूजी दफ्तर से आए और माँ ने बाबूजी को देखते ही उनका हाथ खींचते हुए बोली, “देखो ना कैसे खुश होकर इंद्र देवता बरस रहे! आज तो अम्मा भी नहीं चलिए ना कुछ देर भीगते है।”
बाबूजी की कमीज पर थोड़ी सी फुहार पड़ी थी कि बाबूजी गुस्से से बोले,
“अनपढ़ ! जाहिल की तरह व्यवहार मत करो। देखो लोग कैसे देख रहे है तुम्हें। फूहड़ कहीं की..” हल्का धक्का मारकर बाबूजी अंदर चले गए थे और माँ ने जब आसपास नजर दौड़ाई तो कुछ जोड़ी आंखों ने उनके हुए अपमान को देख लिया था।

शर्मिंदगी से भरी माँ ने उस दिन से कमरे से बाहर निकलना छोड़ दिया और उस दिन के बाद माँ सावन में कभी नहीं भीगी।

बाबूजी को तो अहसास ही न था कि उन्होंने क्या किया। वक्त बीतता गया।
और चार बरस बाद जब माँ अचानक चल बसी तो अलमारी से माँ की डायरी मिली जिसमें टूटे फूटे अक्षरों से माँ ने एक तरफ सावन के मौसम से जुड़ी अपनी मीठी यादों को लिखा तो दूसरी ओर उस दिन की कड़वी याद को।
बाबूजी को अहसास हुआ उस दिन उनसे भूल नहीं पाप हुआ था तब से आज तक हर सावन में बाबूजी यूं ही भीगते है, आसमां को देखते है और बारिश की बूंदों में अपने अश्रु छिपाते है।

तुम्हे भी शायद भीगना पसंद हो , यही सोचकर बाबूजी ने कहा होगा ” ठंडी साँस भरते हुए समीर बोला।
“चलिए ! हम भी छत पर चलते है” समीर की बांह पकड़ते हुए मानसी बोली।

“पर तुम्हे तो भीगना पसंद नहीं है ना”समीर बोला।
“पर तुम्हें तो है ना! मैं बाबूजी जैसी गलती नहीं दोहराऊंगी।” मानसी बोली और छत पर भीगते हुए आज समीर को अहसास हुआ जैसे माँ अर्श से अपने परिवार को सावन में भीगते देखकर आज खुश हो रही होंगी।
बाबूजी के चेहरे पर भी बेटे बहू को देखकर एक मुस्कान थी परंतु आँखो में खालीपन भी..!

काश! एक बार उन्होंने माँ के साथ इन बूंदों का लुत्फ उठाया होता..!