Hindi Winter Story: 24 वर्षीय वैदेही किसी छोटी सी बच्ची की तरह अपनी मम्मी स्मृति से रूठते हुए बोली कि, ‘तुम देख लेना मम्मी, अगर तुमने मुझे ठंड शुरू होने से पहले अपने हाथ से बुना हुआ स्वेटर बुनकर नहीं दिया, तो मैं तुम्हारे सर की कसम खाकर कहती हूं कि मैं भले ही इस बार की पड़ने वाली ठंड से कपकपा कर मर जाऊं लेकिन मैं मार्केट से खरीदा हुआ कोई भी जैकेट या स्वेटर नही पहनूंगी।’
वैदेही की मम्मी स्मृति ने वैदेही को समझाने की बहुत कोशिश की लेकिन जैसे वैदेही कुछ सुनने या समझने को तैयार ही नहीं थी। तो अंत में स्मृति ने खुद ही थककर वैदेही के सामने अपने दोनों हाथ जोड़ दिए और बोली, ‘चलो! ठीक है बाबा, तुम जीती और मैं हारी। मैं तुम्हें ठंड शुरू होने से पहले ही एक प्यारी सी स्वेटर बुन दुंगी। अब तो खुश हो ना!’ इतना सुनते ही वैदेही अपनी मम्मी के गले से लिपट गई और बोली, ‘आई लव यू मम्मी, यू आर ग्रेट मम्मी।’
वैदेही की मम्मी स्मृति ने वैदेही को अपने गले से अलग करते हुए कहा कि, ‘हे भगवान! ये इतनी बड़ी हो गई है लेकिन अक्ल छटाक भर भी नहीं। पता नहीं ये कब सुधरेगी, यहां तो तब भी ठीक है लेकिन जब ये ब्याहकर अपने ससुराल जाएगी तो वहां इसका क्या होगा, कैसे रहेगी?’ तो फिर वैदेही बोली, ‘मैं कोई शादी-वादी नही करूंगी और ना ही आपको या पापा को कहीं छोड़ कर जाऊंगी।’ वैदेही की मम्मी इस बात पे मुस्कुरा उठी।
फिर इसके बाद वैदेही की मम्मी ने वैदेही के लिए स्वेटर बुनना शुरू कर दिया। उन्हें जैसे ही घर के काम से थोड़ी सी फुरसत मिलती वे वैदेही का स्वेटर बुनने के लिए ऊन के गोले को लेके बैठ जाती। इस तरह उसने कुछ ही दिनो में वैदेही का स्वेटर बुनकर तैयार कर दिया। फिर उसके तीसरे ही दिन वैदेही के पापा जब ऑफिस से लौटे तो अपने हाथ में वे मिठाई का एक डिब्बा लेकर लौटे और आते ही वे बिना चाय पानी पिए और बिना कपड़े उतारे ही बोले, ‘अरे! सुनो वैदेही की मम्मी, जरा यहां तो आना!’ वैदेही की मम्मी ने किचन में से ही कहा, ‘आप बैठिए! मैं अभी आई।’
लेकिन वैदेही के पापा जैसे आज कुछ ज्यादा ही खुश थे। वे फिर बोले, ‘अरे! भाई तुम सारा काम धाम छोड़कर पहले यहां आओ। तुम्हें कुछ पता भी है।’ वैदेही की मम्मी ने सोचा कि आखिर बात क्या हैं? क्योंकि वैदेही के पापा उसे इस तरह तो कभी नहीं बुलाते। अत: वे किचन से अपने भीगे हाथ और कमर में खुशी साड़ी के साथ ही कमरे में आ गई और बोली, ‘क्या हुआ वैदेही के पापा?’
‘अरे भाग्यवान! प्रश्न बाद में पूछना पहले अपना मुंह मीठा कर ले!’ अब वैदेही की मम्मी का ध्यान वैदेही के पापा की मिठाई के डिब्बे पर पड़ी तो वे बोली, ‘अभी मेरा हाथ साफ नहीं है, मैं इसे अभी धो कर आती हूं।’
‘अरे! जाने दो, बस केवल तुम अपना मुंह खोलो मैं तुम्हें खुद अपने हाथों से मिठाई खिला दूंगा।’
‘अरे! भाई कुछ बताएंगे भी आप कि आखिर मुझे मिठाई खिलाने की इतनी उतावली क्यूं है?’ इससे पहले की वैदेही की मम्मी कुछ और बोल पाती तभी उसके पापा ने वैदेही की मम्मी के मुंह में एक पूरी मिठाई डाल दी।
और बोले, ‘अरे! भाई कुछ जानती भी हो अपनी वैदेही की शादी तय हो गई!’ वैदेही की मम्मी चौकी और बोली, ‘क्या सच? लेकिन कब और कैसे?’
‘अरे भाग्यवान, ये भी कोई मजाक करने की बात है! आज ऑफिस जाते समय रास्ते में वे जो अपने शर्मा जी नहीं थे अपनी पड़ोस में, उनसे मेरी मुलाकात हो गई।’ तभी स्मृति ने पूछा, ‘कौन शर्मा जी?’
‘याद करो स्मृति, जहां हम लोग अपना यह मकान बनने से पहले किराए पे नहीं रहा करते थे उसी के बगल में एक शर्मा जी और उनका परिवार रहा करता था। उन्हीं के लड़के से, जानती हो उनके एकलौते बेटे को सरकारी नौकरी मिल गई है’, ‘अच्छा वो जो छोटा-सा प्रदीप था ना।’
‘हां’, ‘लेकिन वे लोग ज्यादा दान-दहेज तो नहीं मागेंगे ना वैदेही के पापा।’
‘अरे! नहीं भाई।’
उन्होंने कहा की ले दे के भगवान ने उन्हें एक ही बेटा दिया है इसलिए उन्हें दान-दहेज नहीं बल्कि एक बेटी सी सुंदर बहु चाहिए। फिर चाय पीते-पीते ही उन्होंने मुझसे पूछा कि, ‘अच्छा ये बताइए! अपनी वैदेही कैसी है?’
तो मैंने कहा, ‘वो तो अब काफी बड़ी हो गई है, अब उसी के रिश्ते के लिए लड़का देखने की सोच रहा हूं।’
‘अरे! भाई मुझे बहु की तलाश है और तुम्हें दामाद की हालांकि मैंने बचपन में वैदेही को देखा था जब वह छोटी सी थी, तब बिल्कुल गुड़िया की तरह थी।
अब तो काफी बड़ी हो गई होगी।’
‘हां शर्मा जी!’
‘अच्छा! उसकी कोई फोटो हो तो दिखाना किसी दिन, अभी तो आप ऑफिस जा रहे हैं, मैं ठीक तीसरी गली में किराए पर हूं और हां, यही बगल में जमीन भी ले लिया है। वहीं गया था, परसो से काम भी लगाना है क्योंकि मैं चाहता हूं कि जब मेरी बहू पहली बार अपने ससुराल आए खुद के बने मकान में आए, अब तो अक्सर हमारी मुलाकात होती ही रहेगी। मेरा मोबाइल नंबर ले लीजिए।’
‘तभी मैंने झट वैदेही की फोटो उन्हें दिखा दी।’
दरअसल आज बिना तुम्हें और वैदेही को बताए ही मैं वैदेही की एक फोटो अपने साथ ले गया था। दरअसल मैं ये सोच के ही घर से निकला था कि मैं ऑफिस से छूटने के बाद कुछ लोगो से अपनी वैदेही के शादी की चर्चा करूंगा। फिर वैदेही अब बड़ी भी तो हो गई है, अत: उन्होंने वैदेही की फोटो देखते ही मुझसे कहा, ‘अरे वैदेही! इतनी बड़ी हो गई! बिल्कुल ये तो बचपन से भी कहीं ज्यादा सुंदर लग रही है भाई।’ इसी के साथ वे मुझे जबरदस्ती अपने साथ ले गए, मिठाई खिलाई और वहीं मेरे सामने ही उन्होंने अपने लड़के प्रदीप से कहा कि, ‘देखो! प्रदीप तुमने और तुम्हारी मम्मी ने वैदेही को बचपन में तो देखा ही है। लो, ये उसकी फोटो है तुम भी देख लो और अपनी मम्मी को भी दिखा लो।’
फिर थोड़ी देर बाद प्रदीप फोटो लेकर लौटा और प्रदीप के पापा बोले, ‘प्रदीप, अपनी मम्मी को भी यहीं बुला लो? मैं कुछ बाते क्लियर कर लूं।’
‘ठीक हैं पापा!’ फिर कुछ देर बाद प्रदीप अपनी मम्मी के साथ वापस लौटा और बगल के खाली सोफे पे अपनी मम्मी के साथ बैठ गया। तब शर्मा जी बोले, ‘देखो बेटा प्रदीप! शादी तुम्हें करनी है और लड़की के साथ जीवन तुम्हें बिताना है इसलिए मैं पहले तुम्हीं से यह पूछना चाहता हूं कि अगर तुम किसी और लड़की से प्यार करते हो तो बता दो। मुझे कोई एतराज नहीं।’
प्रदीप थोड़ी देर बाद बोला, ‘नहीं पापा, मैं किसी और लड़की से प्यार नहीं करता। मैं जब भी शादी करूंगा आप और मम्मी जहां चाहेंगे वहीं करूंगा।’
‘तुमने और तुम्हारी मम्मी ने फोटो देख ली। लड़की पसंद है ना तुम दोनो को।’
‘हां जी! आप बात पक्की करिए। मैं अंदर से आप लोगों के लिए मिठाई लाती हूं।’ फिर मिठाई आते ही हम दोनो ने एक-दूसरे को मिठाई खिलाकर मुंह मीठा किया और लगे हाथ वे लोग नवंबर में शादी करने के लिए तैयार भी हो गए।’ इसी खुशी में वैदेही के पापा ने वैदेही की मम्मी स्मृति को अपनी गोद में उठा लिया तो मम्मी-पापा से शर्माते हुए बोली, ‘अरे! मुझे नीचे उतारिए, मेरी नहीं तो कम से कम अपनी उम्र का तो खयाल करिए। फिर अगर वैदेही ने हमें इस तरह देख लिया तो वह हमारे बारे में क्या सोचेगी?’ इतना सुनते ही वैदेही के पापा ने उसकी मम्मी को अपनी गोद से नीचे उतार दिया और मम्मी जैसे ही पापा से थोड़ी दूर हुई तो उन्हें ऐसे चिढ़ाया की जैसे कह रही हो कि, ‘आप अब भी बुद्धु के बुद्धु ही हैं।’ पापा हंस पड़े।
बगल के कमरे में खड़ी वैदेही ने अपने मम्मी और पापा के बीच हुई सारी बाते सुन ली। सुनने के बाद वैदेही की आंखे भीग आई और वे सोचने लगी की वे अब अपने मम्मी-पापा के इस घर में एक महीने की मेहमान और है, फिर शादी के बाद अपने मम्मी-पापा की लाडली वैदेही किसी और के घर की वैदेही बनके रह जाएगी। वैदेही भारी मन से अलमारी के पास पहुंची और उसने मम्मी का बुना हुआ स्वेटर अलमारी से निकालकर अपने सीने से लगा लिया और बोली, ‘मम्मी तुम्हारे हाथों से बुनी हुई ये ठंड की स्वेटर मेरे लिए कोई आम-सी स्वेटर नहीं बल्कि ये तुम हो, जो इस स्वेटर के रूप में हमेशा तुम अपनी इस वैदेही के साथ रहोगी।’ ठ्ठ
