वैदेही आज भी उस मंजर को याद करती है तो अंदर तक कांप जाती है, तब महज उसकी उम्र दस  साल की रही होगी | वह जनवरी की कंपा देनेवाली सर्द रात थी और वैदेही उस सर्द रात में घर से बाहर कर दी गई थी | हालाँकि तब वह इतनी समझदार नहीं थी पर माँ-बाबा के बिच होने वाले रोज की किचकिच से वह अनभिज्ञ भी न थी | माँ का मेरे प्रति मोह जायज था क्योंकि उन्होंने नौ महीने अपने पेट में रखकर अपने खून से सींचा था, क्या फर्क पड़ता है अगर वैदेही सामान्य नहीं है …! पर बाबा जिनको समाज में मेरी वजह से शर्मिंदगी उठानी पड़ती थी, वो कतई उसे अपने साथ रखने को तैयार नहीं थे | एक रात झगडे का स्वरुप इतना बिगड़ गया की उन्होंने मुझे बिना कुछ सोचे समझे घर से बाहर निकाल दिया और मैं पहुँच गई किन्नरों के समुदाय में, हालाँकि माँ ने कई बार अपने असफल प्रयास किये मुझ तक पहुँचने की पर बाबा का सख्त पहरा उन्हें कभी मुझसे मिलने नहीं दिया | भला हो उस समुदाय का जहाँ मुझ जैसी न जाने कितनी वैदेहियों को पनाह दिया, पढाया-लिखाया नहीं तो इस समाज की घृणित सोच के आगे कब तक जी पाती भला….? जहाँ अपने सगे लोग किनारा कर लिए वही इस परिवार से जुड़कर मैंने एक नयी जिन्दगी की शुरुआत किया | पढने के क्रम में साथ ही पढने वाले निशांत ने जब उसकी ओर दोस्ती  का हाथ बढाया तो वह अन्दर से कांप गई और उसने निश्चय किया कि वह अपने जीवन के बारे में सबकुछ निशांत से साफ़ और स्पष्ट बता देगी  और एक दिन जब क्लास ख़त्म होने पर निशांत उसे कॉफी हाऊस लेकर गया तो उसने अपने मन की सारी बात निशांत से बता दी | जब वो छोटी थी और अपनी भोली आँखों और मासूम समझ की अँगुलियों से दुनियां का बहरूपिया चेहरा टटोल रही थी तब लोगों की बेसिर-पैर की बातें और अनगिनत सवालों और संबोधनों से उसका अंतर्मन लहुलुहान हो जाती और घर का कोई सुनसान कोना तलाश करती जहाँ से उसे दुनियां के अपमान भरे शब्दों का सामना न करना पड़े | हाँ, एक बात जो अच्छी थी वो यह कि माँ का हमेशा साथ मिला और उसके प्यार भरे मरहम मुझे हमेशा एक नयी उर्जा देते  पर मैंने माँ की बेबसी को उस समय जरूर महसूस किया जब उसके दो बड़ी बहनों को देख लोग बड़ी ही निर्ममता से पूछते, अरे…! रम्भा तुम्हारी ये बेटी क्यों असामान्य हरकत करती रहती है, जबकि बाकि की दोनों बेटियां तो सामान्य लगती है, मेरी मानो इसे अपने साथ रखकर तुम समाज से बहुत बड़ी बगावत कर रही हो तब माँ बड़े ही आत्मविश्वास से कहती जब मुझे अपने बच्चे से कोई परेशानी नहीं तो आप लोग क्यों नाहक अपनी उर्जा व्यर्थ करते हैं ….? तब माँ को भी कहाँ पता था कि जिस बच्चे के लिए वह समाज से लड़ सकती है वह अपने ही घर में इतनी असहाय हो जाएगी | क्या बिता होगा उस माँ के दिल पर, क्योंकि एक माँ को उसके बच्चे से बिछड़ने का गम एक माँ ही जानती है |  वैदेही को लगा था उसके बारे में सब जानकर निशांत उससे नफरत करने लगेगा पर इसके विपरीत निशांत ने बड़े ही धैर्य से वैदेही को समझाया….देखो वैदेही ,,तुम मेरे काबिल हो या नहीं यह मैं नहीं जनता मैं तो सिर्फ इतना जानता हूँ कि भगवान ने तुम्हें बनाते समय भले ही भूल से तुम्हारे शारीरिक संरचना में भिन्नता कर दी है पर तुम्हारा मन बहुत ही निर्मल व सुन्दर है और जाने-अनजाने ही सही मैं इस निर्मल मन की उपासना करने लगा हूँ | मेरे लिए शारीरिक जरूरत से ज्यादा महत्वपूर्ण मन का मिलन है और मैं तुम्हें लेकर भविष्य के सपने देखने लगा हूँ …..! बोलो वैदेही, दोगी न मेरा साथ ….? 

वैदेही को ईश्वर ने सिर्फ खुबसूरत ही नहीं समझदार भी बनाया था उसका कोमल मन निशांत की बातों से पिघलने लगा और उसने निशांत के हाथों को अपनी दोनों हथेलियों में कसकर जकड लिया और उसके आँखों में देखते हुए बोली…….निशांत तुम बहुत अच्छे हो …! ऐसा नहीं कि मेरी जिन्दगी में आनेवाले तुम पहले व्यक्ति हो, पर आज तक जिसने भी मुझसे दोस्ती करना चाहा उसमें शारीरिक स्वार्थ जुड़ा हुआ था और मैं अगर उन्हें अपनी असमान्यता बताती तो मुझसे दोस्ती करना तो दूर बात भी करना पसंद नहीं करते | यह समाज ऐसा ही है, यहाँ रूप की पूजा होती है, गुणों को देखने वाला तुम जैसा शायद ही विरला कोई होता है, फिर भी जीवन बहुत लम्बा है, जो चीजें आज महत्वहीन लग रही हैं जरूरी नहीं की हमेशा ही लगे | अगर जीवन के किसी भी मोड़ पर तुम्हें कोई परिवर्तन करना पड़े तो तुम बेहिचक करना, मैं सदैव तुम्हारा साथ दूँगी | अगर कोई इन्सान सच में अच्छा होता है तो उसकी अच्छाईयां कभी धूमिल नहीं होती है, उसके कठिन से कठिन काम भी बड़े आसानी से बनते जाते हैं और निशांत के साथ भी ऐसा ही हुआ जब वह वैदेही से शादी का प्रस्ताव लेकर किन्नर समुदाय के मुखिया अपराजिता धाय से मिला जिसकी शरण में वैदेही रहती थी तो वो तुरंत तैयार हो गई और बड़े ही शांत भाव से उन दोनों को समझाया, देखो बच्चों ये दुनियां ऐसी है जो कदम-कदम पर तुम्हारे राह में मुसीबत बनकर आयेगी पर उनसे कभी घबराना नहीं बल्कि डटकर मुकाबला करना | प्रेम करना ईश्वर की ईबादत करना है, जो सबके नसीब में नहीं मिलता, मेरा आशीर्वाद हमेशा तुम दोनों के साथ है, जाओ और इस धरती पर एक नये युग का निर्माण करो | निशांत और वैदेही जल्द ही शादी के बंधन में बंधकर खुशहाल जीवन बिताने लगे, पर निशांत की माँ अक्सर ही दोनों से बच्चे की जिद करने लगी | शुरू-शुरू में तो निशांत टालमटोल कर माँ को समझा देता था पर जब काफी समय बीत गया तो उन्हें थोड़ी चिंता हुई और गाहे-बगाहे निशांत और वैदेही के सामने वह अपनी चिंता को रखती, जिससे थोडा माहौल उदास हो जाता | घर में निशांत के और भाइयों के बच्चे थे, पर माँ तो एक ही जिद लगाकर बैठी थी कि उसे उसके बच्चे का मुंह देखना है, सो हारकर निशांत ने एक दिन माँ को जो बतलाया वह बिजली के झटके से कम नहीं था | माँ ने तो दूसरी शादी का भी प्रस्ताव दे डाला पर निशांत के आगे उसकी एक न चली | अब वैदेही यहाँ भी नित नए अपमान से अपमानित होते रहती पर इसका जिक्र वह निशांत से कभी नहीं करती, घर में सबका रवैया अब पहले जैसा नहीं रह गया था पर वैदेही इसे भी अपने कर्म का लेखा समझकर सब सहते जाती |  कभी कभी विपति भी आश्चर्यजनक परिवर्तन करती है, हुआ ये कि एक दिन निशांत से बड़े भाई का बेटा स्वप्निल बहुत बीमार हो गया और देखते-देखते उसकी हालत बिगडती गई | डॉक्टर ने उसे अविलम्ब खून चढाने को बोला तब ब्लड बैंक से ब्लड मिलना एक बेहद ही पेचीदा काम था सो घर के सारे सदस्यों ने एक-एक कर अपने रक्त का परिक्षण करवाया पर अफ़सोस किसी का भी ब्लड स्वप्निल के ब्लड से मैच नहीं किया | माहौल काफी गमगीन हो रहा था और इसकी झलक घर के सभी सदस्यों पर स्पष्ट झलक रही थी, डॉक्टर भी काफी परेशान थे और किसी भी हालत में उन्हें ब्लड की व्यवस्था करने थी, अन्यथा स्वप्निल की जान को भी खतरा हो सकता था | इधर घर में किसी का भी ध्यान वैदेही पर नहीं गया या जान-बुझकर लोगों ने उसकी जरूरत नहीं समझी पर जब वैदेही को पता चला कि स्वप्निल जीवन और मौत से जूझ रहा है तो उसने डॉक्टर से अपने रक्त के परिक्षण की गुजारिश किया पर घर के लोगों ने सिर्फ निशांत को छोड़कर इसका विरोध किया और बड़े ही कटाक्षपूर्ण लहजे में बोले ….हमलोग ये कभी नहीं चाहेंगे कि हमारे बच्चे के रगों में एक हिजड़ें का खून दौड़े डॉक्टर साहब आप कहीं और से व्यवस्था करिए हम सब इसकी कोई भी कीमत चुकाने को तैयार हैं | अंत में डॉक्टर ने समझा-बुझाकर सबको शांत किया और जब वैदेही के रक्त की जाँच किया तो वह स्वप्निल के रक्त से सटीक मैच कर गया | अब डॉक्टर ने दोनों पक्षों के परिवार वालों के सामने रख दिया या तो वैदेही का खून चढ़ाकर स्वप्निल के जिन्दगी को बचाया जाये या फिर समाज के झूठे आडम्बर को परम्परागत रूप देकर स्वप्निल की जिन्दगी को तबाह होने को छोड़ दिया जाये | परिवारवालों की स्थिति अब काफी दयनीय हो गई थी, एक तरफ स्वप्निल का जीवन दूसरी तरफ निरर्थक ढोंग ….! स्वप्निल की हालत लगातार बिगडती जा रही थी सो, घर वालों को अपने किये पर पछतावा हुआ और वे अहिस्ता से बढ़कर वैदेही के गले से लगकर फफककर रो पड़े और माँ जो हमेशा वैदेही को ताने सुनाया करती थी बोली,,अब मेरे स्वप्निल की जिन्दगी तुम्हारे भरोसे है, उसे बचा लो वैदेही ….! इंसानियत की कीमत वैदेही भली-भांति जानती थी उसे अपने घर वालों से कोई शिकायत नहीं थी बल्कि उनके चेहरे पर उभरते आशा और निराशा के भाव को देखकर उसका मन द्रवित हो रहा था वह  अपने दोनों हाथों को जोड़कर दुनियां के उस रचयिता से प्रार्थना करने लगी ताकि उस माँ की गोद न उजड़े जो अपने बच्चे के जीवन की फरियाद कर रही थी !

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