भारत कथा माला
उन अनाम वैरागी-मिरासी व भांड नाम से जाने जाने वाले लोक गायकों, घुमक्कड़ साधुओं और हमारे समाज परिवार के अनेक पुरखों को जिनकी बदौलत ये अनमोल कथाएँ पीढ़ी दर पीढ़ी होती हुई हम तक पहुँची हैं
Hindi Kahani: किसी समय नर्मदा के किनारे राजा वासुदेव का राज्य था। राजा वासुदेव की शादी समीप राज्य की राजकन्या सिकोली के साथ हुई। कई वर्षों तक कोई सन्तान न हुई तो राजा की दूसरी शादी रूपा नाम की युवती से हुई। रूपा अनुरूप ही संदरी थी किन्तु साधारण किसान की बेटी होने के कारण सास, ननद तथा जेठी सिकोली उसका उपहास करतीं। रानी सिकोली को अपनी सास और ननद का लाड़ मिला था क्योंकि मायके से सास-ननद के लिए वार-त्योहार मँहगी भेटें आती रहती थीं। रूपा मायके से आने वाले साधारण उपहार किसी के मन न भाते लेकिन राजा को रूपा की विनम्रता और मीठी बोली बहुत भाती थी।
दोनों रानियों से संतान न होने पर राजा चिंतित व उदास रहते थे। यह देख रूपा ने राजगुरु से उपाय पूछा। राजगुरु ने कहा कि संतान तो सास और ननद के आशीर्वाद से होती है। तब रूपा कि सास और ननद तो उसके गरीब घर से होने के कारण उससे दूर रहती हैं लेकिन बड़ी रानी के साथ उनका आशीर्वाद होने पर भी उसे संतान नहीं हो रही है। राजगुरु ने बताया कि बड़ी रानी के बर्ताव से राजा संतुष्ट नहीं हैं। वंशवृद्धि के लिए पति और पति के स्वजन सबका आशीर्वाद चाहिए। तब रूपा ने उपाय पूछा। राजगुरु ने कहा तुम ग्वालन बनाकर चौती पूनों को दोनों को प्रणाम कर उनका आशीर्वाद लो। रूपा ने ऐसा ही किया। उसने चौती पूनों के दिन राजसी पोशाक बदलकर साधारण कृषक स्त्री की तरह कपड़े पहने और प्रजा की साधारण स्त्रियों के झुण्ड में मिलकर अपनी सास और ननद के पैर छूकर वंश वृद्धि हेतु आशीर्वाद माँगा। सास और ननद ने अन्य औरतों के साथ-साथ उसे भी पुत्रवती होने का आशीर्वाद दे दिया बिना यह जाने कि वह रूपा है। राजा का प्रेम रूपा को प्राप्त था ही।
कुछ समय बाद रूपा को गर्भ ठहर गया। वह और राजा दोनों बहुत प्रसन्न हुए। धीरे-धीरे प्रसव का समय निकट आने को हुआ। रूपा को चिंतित देखकर राजा ने कारण पूछा तो उसने कहा कि प्रसव कराते समय पर सास-ननद न आई तो क्या होगा? राजा ने कहा कि वह चिंता न करे। समय आने पर घंटी बजा दे तो वह खुद दौड़ा चला आएगा। इस बात की सत्यता परखने के लिए एक दिन रूपा ने घंटी बजा दी। राजा सब काम छोड़कर दौड़े चले आए किंतु जब उन्हें पता चला की उनकी परीक्षा लेने के लिए घंटी बजाई गयी है तो वे बहुत नाराज हुए। यह बात सबको पहले से पता चल गई।
अब मजबूर होकर रूपा को सास और ननद के पास जाना पड़ा। सास-ननद ने रूपा से कहा जब तुम्हें दर्द हो तो कोने में रखी ओखली में बैठकर सर झुका लेना। रूपा ने ऐसा ही किया। ओखली में नवजात बच्चा रोने लगा तो सास, ननद तथा सिकौली रानी दौड़ी-दौड़ी आईं। उस बच्चे को उठाकर नौकरों से घूरे पर फिंकवा दिया और ओखली में कंकर भर कर राजा को बुलवाकर बता दिया की रूपा ने कंकर जाये हैं। राजा को इस पर भरोसा न हुआ, अपर उन्होंने किसी से कुछ न कहा।
उस दिन चैत्र पूर्णिमा थी। एक नि:संतान कुम्हारिन अपनी कुटिया की सफाई कर घूरे पर कचरा फेंकनें गई तो उसने घूरे पर पड़े बच्चे को देखकर उठा लिया और घर ले आई। वह बच्चे को अपनी संतान की तरह पालने लगी। उसने बच्चे का नाम पजन कुमार रखा। जैसे-जैसे पजन बड़ा होता गया, कुम्हारिन उसे मिट्टी के खिलौने बना-बनाकर खेलने के लिए देती गयी। एक दिन कुम्हारिन ने पजन को मिट्टी का घोडा बनाकर दिया। पजन को घोड़ा बहुत पसंद आया। वह घोड़ा लेकर नदी के किनार जाता और कहता ‘माटी के घोड़ा पानी पी।’ आसपास की स्त्रियां उसे ऐसा करते देखकर हँसतीं। एक दिन राजमहल की दासियाँ कपड़े धोने नदी पर आई। पजन को मिट्टी के घोड़े को पानी पिलाते देखकर उन्होंने कहा कि माटी का घोड़ा कहीं पानी पीता है? वह तो बेजान है। पानी नहीं पी सकता।
इस पर पजन बोला जब रानी कंकर पैदा कर सकती है तो माटी का घुड़वा पानी पी सकता है। उन दसियों में एक वह भी थी जिसने रूपा के शिशु को घूरे पर फेंका था। वह समझ गयी कि यह रूपा का पुत्र है। उसने महल में आकर सिकौली रानी को यह बात बताई। सिकौली ने अपनी सास और ननद के साथ विचार कर उस बालक को नष्ट करने का उपाय सोचा। उसने एक दिन राजा से शिकायत की कि उसकी दसियों को कुम्हार का बालक छेड़ता है, इसलिए उसे मरवा दिया जाए। राजा को शंका हुई पर उन्होंने कुछ न कहा। बालक का कोई अनिष्ट न हो यह सोचकर उन्होंने उसे देश निकाला दे दिया। राजा ने कुम्हार को बुलाकर पूछताछ की तो उसने सत्य बता दिया कि कुम्हार को वह बालक राजमहल के समीप घूरे पर मिला था। राजा समझ गए कि यह हमारा ही राजकुँवर है। कुम्हार ने पजन को बहुत लाड़-प्यार से पाला था। वह बोला, मैं कैसे मानूँ की यह राजकुँवर है? राजा ने कहा जब इसे देखकर इसकी माता को दूध उतर आए और यह बेहिचक पीने लगे तो समझना कि यह हमारा कुँवर है।
दुर्भाग्यवश उस वर्ष पानी नहीं बरसा, अकाल पड़ गया। अगली वर्षाकाल के पहले पंडितों ने कहा कि राजा-रानी कंधा लगाकर खेत हल खींचें और चौत्र पूर्णिमा को जन्म लिया बालक हल हाँके तो इंद्र देव प्रसन्न होकर पानी बरसाएँगे। राजा तो हल खींचने के लिए तैयार हो गया पर सिकौली रानी ने स्वास्थ्य खराब होने का बहाना कर हल खींचने से मना कर दिया। राजा के दबाव देने पर वह बेमन से हल को कंधा दिया तो सूरज तपने लगा। राजा ने विवश होकर रूपा से कहा तो वह प्रजा के हित के लिए सहज ही मान गई और खुशी-खुशी राजा के साथ हल खींचने लगी। तब बदली छाने लगी और जल्दी ही पानी बरसने लगा। पजन कुमार का जन्म चौत्र पूर्णिमा को ही हुआ था। इसलिए वह हल हाँक कर बीज बो रहा था। उसके बाल गोपाल रूप को देखकर रूपा वात्सल्य से भर उठी। सब लोग समझ गए कि यह राजा और रूपा का बेटा है।
पजन ने अपनी दादी के निकट जाकर उनसे पूछा ‘हम लौट आए, तुमाए मन भाए?’
दादी बोली ‘नाती-पोते सबको भाए, कौन बताए कौन है आए?’
पजन ने कहा ‘बात अधूरी, घटे न दूरी, करो मजूरी।’
पजन ने अपनी बुआ के समीप जाकर कहा ‘बुआ बुलाओ, गले लगाओ, कहो मन भओ।’
बुआ बोली ‘हो न फजीता, कभी भतीजा।’
पजन ने उत्तर दिया ‘मन नहीं साफ, किया न माफ, होओ दूर।’
फिर पजन बड़ी रानी सिकौली के पास गया और बोला ‘बोलो मैया, डौगी छैया, लोगी कैंया?’
सकौली मन ही मन में झुंझला रही थी। उसने कहा ‘अच्छे आए, जिसके जाए?, उसको भाए।?’
तब पजन ने उत्तर दिया ‘रूखी बातें, मन में घातें, पाएँ मातें।’
अंत में पजन ने रूपा रानी के पास जाकर कहा- ‘द्वारे आए, क्या मन भाए?, या कि पराए?’
रूपा के मन में उसे देख ममता उमड़ी और बाँह पसारकर उसने कहा ‘पाल न पाए, भए पराए, कान्ह लुभाए।’
पजन के मुँह से बोल न फूटे, वे शिशु के तरह रूपा के पैरों पड़कर लौटने लगे। रूपा ने उन्हें बाँहों में उठाकर छाती से लगा लिया और आँचल में छिपाकर दूध पिलाने लगी।
राजा वासुदेव, राजगुरु और सब प्रजा खुशी से झूम उठी। सब ओर आनंद छा गया। राजा ने कुम्हार-कुम्हारिन को अपने परिवारजन की तरह महल में रखकर उन्हें उनके योग्य दायित्व सौंपा।
लोक में आज भी चौत्र शुक्ल पूर्णिमा को पान या सात मटकियों को चुने से रंगा जाता है। एक मटकी जिसे करवा कहा जाता है, को हल्दी या चंदन से रंगकर उस पर पज कुमार तथा माताओं के चित्र बनाये जाते हैं। गोबर से जमीन लीपकर, आटे से चौक पूरकर बीच में गेहूं के दाने डालकर एक मटकी और उस पर करवा रखा जाता है। उसके चारों ओर लड्डू या अन्य पकवानों से भरकर शेष मटकियाँ रख दी जाती हैं। धूप, दीप, नैवेद्य से मटकियों की पूजा कर एक स्त्री उक्त कथा कहती है, शेष महिलायें सुनती हैं। कथा के बाद माताओं की गोद में लड्डू डालकर बच्चे कहते हैं ‘पजन के लड्ड पजनै खाँय, दौड़े-दौड़े कुठियन जाँय’।
भारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा मालाभारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा माला’ का अद्भुत प्रकाशन।’