Overview:प्रसूति के सच: मिथकों से दूर होकर लें सही जन्म का निर्णय
गर्भवती महिलाओं के लिए प्रसव के सही विकल्प को समझना बेहद ज़रूरी है। जानिए कब नॉर्मल डिलीवरी सुरक्षित है और कब C-section बेहतर साबित होता है।
Normal Delivery Vs C-Section: कम जोखिम वाली प्रेग्नेंसी में नॉर्मल वेजाइनल डिलीवरी अब भी पहला और पसंदीदा विकल्प माना जाता है। यह प्राकृतिक है, आमतौर पर ज़्यादा सुरक्षित होती है और रिकवरी भी जल्दी होती है। डॉ. आस्था दयाल, निदेशक, प्रसूति एवं स्त्री रोग विभाग, सी के बिरला अस्पताल, गुरुग्राम के मुताबिक, हर महिला के लिए नॉर्मल डिलीवरी सुरक्षित हो ऐसा ज़रूरी नहीं है। C-section इसलिए शुरू किया गया था ताकि ऐसी परिस्थितियों में मदद मिले, जहाँ नॉर्मल डिलीवरी माँ या बच्चे के लिए जोखिमभरी हो सकती है। जैसे– placenta previa, बड़ा बच्चा, पेल्विस छोटा होना, लेबर रुक जाना, fetal distress या पहले क्लासिकल C-section—इन सभी स्थितियों में C-section ज़्यादा सुरक्षित होता है। कुछ मामलों में माँ की गंभीर हार्ट डिज़ीज़ या अनियंत्रित हाई BP भी नॉर्मल लेबर को असुरक्षित बना देता है।
हर प्रेग्नेंसी अलग होती है
जिन महिलाओं की पहले नॉर्मल डिलीवरी हुई है, उनमें 80–90% संभावना रहती है कि अगली बार भी नॉर्मल डिलीवरी हो सकती है। लेकिन उम्र, नई स्वास्थ्य समस्याएँ जैसे gestational diabetes, hypertension, fibroids, cervix की कमजोरी, या बच्चे की पोज़िशन—ये सभी अगले प्रसव को प्रभावित कर सकते हैं। लेबर के दौरान अचानक fetal distress या cord समस्या आने पर इमरजेंसी C-section की ज़रूरत पड़ सकती है।

एपिड्यूरल: दर्द से राहत
लेबर पेन कम करने के लिए epidural एक बेहतरीन विकल्प है और आज कई महिलाएँ इसे चुन रही हैं। अक्सर लोग मानते हैं कि epidural से कमर का स्थायी दर्द होता है, जबकि शोध बताता है कि यह गलत है। डिलीवरी के बाद हल्का कमर दर्द आम है, चाहे epidural लिया हो या नहीं। हाँ, epidural से assisted delivery (जैसे vacuum) की संभावना थोड़ी बढ़ सकती है, लेकिन गंभीर जटिलताएँ बेहद दुर्लभ हैं।
VBAC या TOLAC
पहले C-section वाली महिलाओं के लिए VBAC, जिसे अब TOLAC कहा जाता है, कई बार सुरक्षित विकल्प होता है बस इतनी शर्त है कि कोई मेडिकल जोखिम न हो और इमरजेंसी सुविधाएँ तथा लगातार fetal monitoring उपलब्ध हों। सबसे बड़ा जोखिम पिछले ऑपरेशन के निशान का कमजोर पड़ना है, इसलिए निगरानी महत्वपूर्ण है।
C-section से जन्मे बच्चों पर प्रभाव
C-section से पैदा हुए बच्चों को शुरुआत में हल्की सांस की दिक्कत हो सकती है या माँ के माइक्रोबायोम का कम संपर्क मिलता है, लेकिन शुरुआती breastfeeding इसे जल्दी संतुलित कर देती है। लंबी अवधि में नॉर्मल और C-section से पैदा हुए बच्चों में कोई अंतर नहीं पाया जाता।
अंतिम निर्णय: सुरक्षा और जानकारी
नॉर्मल डिलीवरी और C-section के बीच चुनाव हमेशा मेडिकल सुरक्षा पर आधारित होना चाहिए न कि डर, मिथक या सामाजिक दबाव पर। सही जानकारी, उचित परामर्श और भावनात्मक समर्थन के साथ महिलाएँ बेहतर निर्णय ले सकती हैं और सकारात्मक बर्थ अनुभव पा सकती हैं। सबसे ज़रूरी बात C-section की ज़रूरत पड़ने पर कोई भी महिला खुद को कमतर न समझे। दोनों ही तरीक़ों का उद्देश्य एक ही है: माँ और बच्चा सुरक्षित रहें।
डॉक्टर अलका चौधरी,सीनियर कंसलटेंट, डिपार्टमेंट ऑफ़ ऑब्सट्रेटिक्स एंड गायनेकॉलोजी, मधुकर रेनबो चिल्ड्रेन हॉस्पिट, मालवीय नगर, न्यू दिल्ली के मुताबिक अक्सर नॉर्मल डिलीवरी और C-section को लेकर कई तरह के मिथक और मान्यताएँ फैल जाती हैं, जिनकी वजह से होने वाली माताओं में बेवजह डर या दबाव पैदा हो जाता है। सच यह है कि दोनों तरीक़े सुरक्षित हैं बस उनका सही कारण और सही स्थिति में इस्तेमाल होना ज़रूरी है। कम जोखिम वाली प्रेग्नेंसी में आमतौर पर नॉर्मल डिलीवरी की ही सलाह दी जाती है, क्योंकि शरीर इसके लिए स्वाभाविक रूप से तैयार रहता है और रिकवरी भी जल्दी होती है। लेकिन हर लेबर एक जैसी नहीं होती। अगर बच्चे की पोज़िशन ठीक न हो, लेबर प्रोग्रेस न करे, या कोई जटिलता सामने आ जाए, तो ऐसे समय में C-section माँ और बच्चे दोनों के लिए ज्यादा सुरक्षित विकल्प बन जाता है। इसलिए यह निर्णय हमेशा मेडिकल ज़रूरत के आधार पर होना चाहिए, न कि सामाजिक दबाव पर।
क्या कहती है मान्यताएँ
एक और आम मान्यता है कि अगर पहली डिलीवरी नॉर्मल हुई है, तो आगे की सारी डिलीवरी भी नॉर्मल ही होंगी। जबकि हर प्रेग्नेंसी अलग होती है। माँ की उम्र, बच्चे का वज़न, या कोई नई स्वास्थ्य समस्या ये सब मिलकर अगले जन्म की योजना बदल सकते हैं। इसी तरह कई महिलाएँ एपिड्यूरल से भी डरती हैं, उन्हें लगता है कि इससे लकवा मार सकता है या कमर में हमेशा दर्द रहेगा। लेकिन वैज्ञानिक शोध बताते हैं कि एपिड्यूरल सुरक्षित है। हाँ, थोड़ी बहुत अस्थायी असहजता हो सकती है, लेकिन इससे कोई स्थायी नुकसान नहीं होता।

पेल्विक फ्लोर की कमजोरी या नॉर्मल डिलीवरी के बाद सेक्सुअल संतुष्टि कम होने की चिंताएँ भी अक्सर बढ़ा-चढ़ाकर बताई जाती हैं। सही एक्सरसाइज़ और फ़िज़ियोथेरेपी के साथ ज़्यादातर महिलाएँ पूरी तरह ठीक हो जाती हैं। दूसरी तरफ, सिर्फ़ लेबर पेन से डरकर C-section चुनना भी सही नहीं है, क्योंकि यह फिर भी एक बड़ी सर्जरी है—जिसमें इंफेक्शन, लंबी रिकवरी और भविष्य की प्रेग्नेंसी में जटिलताओं जैसी जोखिमें शामिल रहती हैं।
रिसर्च के मुताबिक
कई महिलाएँ पहले C-section के बाद भी, अगर परिस्थितियाँ अनुकूल हों, तो सुरक्षित रूप से नॉर्मल डिलीवरी की कोशिश कर सकती हैं। और रिसर्च यह भी साबित करता है कि C-section से जन्मे बच्चे लंबे समय में कमज़ोर नहीं होते—शुरुआती प्रतिरक्षा में अंतर बहुत मामूली होता है। आख़िर में, किसी एक तरीके को “बेहतर” मानने के बजाय, ज़्यादा ज़रूरी यह है कि माँ और बच्चे की सुरक्षा, सही जानकारी और सही समय पर सही निर्णय को प्राथमिकता दी जाए।
इनपुट- डॉ. आस्था दयाल, निदेशक, प्रसूति एवं स्त्री रोग विभाग, सी के बिरला अस्पताल, गुरुग्राम
इनपुट- डॉक्टर अलका चौधरी,सीनियर कंसलटेंट, डिपार्टमेंट ऑफ़ ऑब्सट्रेटिक्स एंड गायनेकॉलोजी, मधुकर रेनबो चिल्ड्रेन हॉस्पिट, मालवीय नगर, न्यू दिल्ली
