खतरे की घंटी-गृहलक्ष्मी की कहानियां: Hindi Kahani
Khatre ki Ghanti

Hindi Kahani: छुट्टियों में इंजिनियरिंग कॉलेज से घर आया तो मोहल्ले का माहौल बदला दिखा। पड़ोस की खिड़की हया से गुलजार थी। हया,एक प्यारी सी लड़की जिसे देखते ही होश गुम होता था। एक रोज क्रिकेट की बॉल उछलकर उसके कैंपस में पहुंची तो उसने बड़ी अदा से मुस्कुराकर गेंद लौटाया। अब यह रोज का क्रम बन गया था। उस शाम वह सुर्ख लाल लिबास में थी। काश! लाल रंग को खतरे की घंटी समझ लेता!

“बाहर मिलोगी?” गेंद हाथ आते ही पूछ बैठा।

“किसलिए?”

“कल वापस जा रहा हूँ!”

तड़ाक की आवाज़ और मैं मुँह के बल जमीन पर था। भाई के अप्रत्याशित हमले का अंदाज़ा न था तभी हया ने कहा,

“जो करना है अपने घर जाकर करो!मां को शक होगा!”

ओह! हम दोनो भाई एक ही लड़की पर दिल हारे थे। मैं कवाब में हड्डी था।भावुक उम्र के भूल की सज़ा ने मुझे हिलाकर रख दिया। चोट से ज्यादा अपमान हुआ था!भैया को भी अपराधबोध हुआ था क्योंकि मुझे मारने के बाद कुछ साल -दो साल तक नज़रें न मिला सके थे। उसके बाद पड़ोसी भी अगली पोस्टिंग पर निकल गए यानि न वह प्रेमिका बनी और न भाभी। 

खैर! इन बातों के बरसों बीत गए। सबका जीवन पटरी पर आ गया। भाई भी अपनी जिंदगी में खुश है पर मैं बिना गलती के सज़ा काटने के बाद हमेशा के लिए एक मिश्रित फीलिंग का शिकार हो गया हूं। आज भी जब पुरानी बात याद आती है तो रूह काँप जाती है। जो मेरे साथ हुआ वो किसी और के साथ न हो। 

युवा उम्र का आकर्षण स्वाभाविक है। इसे सहजता से लेना चाहिए। किसी के मन को समझना चाहिए। नाजुक उम्र की बेइज्जती का असर कई बार उम्रभर नहीं निकल पाता और हम मनोविज्ञान के लिए चुनौती बन जाते हैं।

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