भारत कथा माला
उन अनाम वैरागी-मिरासी व भांड नाम से जाने जाने वाले लोक गायकों, घुमक्कड़ साधुओं और हमारे समाज परिवार के अनेक पुरखों को जिनकी बदौलत ये अनमोल कथाएँ पीढ़ी दर पीढ़ी होती हुई हम तक पहुँची हैं
Hindi Love Story: बसंत के पहले-पहले दिन थे। वनों में वृक्ष हरे-भरे पत्ते और लताएं फूलों से लद गई थी। आम के बौर पर कोयल के मीठे बोल झरने लगे थे।
मंदाकिनी की हरी-भरी, फूलों से रंगी घाटी, वसंतोत्सव के लिए चुनी गई थी। तब हर वर्ष इसी तरह वसंत का उत्सव हआ करता था। आसपास के किशोर और किशोरियां वहां आ जुटते थे। किशोर खूब बन-ठन कर आते किशोरियां भी अपने रंग-बिरंगे वस्त्रों में जैसे तितलियों का रंग भर लाती। असल में यह उत्सव होता ही उनका था। वे मिलते, एक-दूसरे से बातें करते, रीझते और रिझाते। कभी उनकी अलग-अलग टोलियां बन जाती और उनके पांव नृत्य की गति में ठुमक उठते और उनके कोमल कंठ गीतों के स्वर में पुलक उठते। गीतों में ही सवाल होते, गीतों में ही जवाब मिलते और फिर उनमें से कोई युग-युग के प्रेम-बंधन में बंध जाते, उनका विवाह हो जाता।
एक दिन की बात है, जब वसंतोत्सव हो रहा था तो उसमें एक किशोरी आई। वह सबसे सुन्दर थी। ऐसी जैसी पहाड़ की चोटी पर चमकती तारिका, ऐसी, जैसी हिमालय पर पड़ी पहली किरण। उसके गोरे गालों पर घुघराले बाल लटक रहे थे। उसकी वेणी वन-फूलों से सजी थी। ताल की मछली-सी, वर्षा-काल की बिजली-सी, वह सबसे अलग दिखाई देती थी। ऐसा खिला था वह रूप कि लगता था जैसे छूने से काला हो जायेगा।
जिधर वह जाती, ललचाई आंखे उसकी ओर उठती। जो भी उसे देखता, देखता ही रह जाता, जैसे किसी ने मंदिर की मूर्ति के आगे खड़ा कर दिया हो और फिर वह ईश्वर से मनाता, ‘हे प्रभो, इस सुन्दरी के मन में मेरे लिए प्रेम जगे। यह मेरे ही बारे में सोचे।’ लेकिन वह सुन्दरी थी कि सारी भीड़ में अकेली। सबको देखकर भी मानो वह किसी को नहीं देख रही थी। उसकी हिरनी-सी आंखे जैसे किसी और को ढूंढ रही थी।
आखिर थोड़ी देर बाद एक सुन्दर सजे रथ पर बैठा राजकुमार वहां उतरा। उसके कंधों पर वरूत्र लटक रहा था। उसके हाथ में धनुष था। उसके होंठों पर मुस्कान और मुख पर उगते सूरज का तेज था। किशोरी ने उसे देखा और उसकी आंखों में खुशी छा गई। आंखें नीचे करके उसने राजकुमार का स्वागत किया और फिर कुछ दूर जाकर दोनों वृक्षों की शीतल छांह में बैठ गए।
राजकुमार ने कहा, ‘आज का दिन धन्य है। हमारा यह मिलन अमर रहे।
किशोरी सुन्दरी जैसे धन्य हो गई। बोली, ‘प्रिय जैसे द्यौ और पृथ्वी रहते हैं, वैसे ही हम एक होकर रहें। जैसे पेड लताओं को छाया देते हैं वैसे तुम्हारा प्यार मेरे ऊपर रहे।’ वह राजकुमार के चरणों में लेट गई। राजकुमार ने पास की झूलती लता से एक फूल निकाला और बालों में लगा दिया। किशोरी ने उसी फूल का पराग निकाला और उससे अपनी मांग भर ली।
उत्सव अभी खत्म नहीं हुआ था। राजकुमार ने किशोरी को रथ पर बिठाया और सारथी को चलाने का संकेत दिया। रथ आगे बढ़ा भी न था कि तभी भयंकर गर्जना करता हुआ एक दानव सामने आ खड़ा हुआ। उसने रथ रोक लिया। किशोरी कांप गई। राजकुमार गुस्से से लाल-पीला हो उठा। उसने तिरस्कार की दृष्टि से दानव को देखा और फिर रथ को चलाने का इशारा किया। लेकिन दानव गरजा, कहां जाते हो? मैं तुम्हें जाने नहीं दूंगा। यह सुंदरी मेरी है।’
राजकुमार ने कहा, ‘नहीं, यह मेरी है। इसने मुझे वरा है।’ यह सुनकर दानव बौखलाया। उसकी आंखों से जैसे आग बरसने लगी। राजकुमार और किशोरी को देखकर भी उसे जरा दया न आई। उसने तत्काल धनष-बाण हाथ में लिया और राजकुमार पर एक बाण चलाया। बाण राजकुमार को लगने ही वाला था कि किशोरी उसे बचाने के लिये सामने आ गई। बाण राजकुमार के बजाय किशोरी को जा लगा। सहसा वह पीड़ा से छटपटा उठी। उसके मुंह से एक चीख निकली और वह रथ से नीचे गिर पड़ी। राजकुमार ने उसे देखा और फूट-फूटकर रो पड़ा। धरती उदास हो उठी। आकाश डोल उठा। देवताओं के राज्य में ऐसा अन्याय! आज तक कभी किसी ने किसी को इस तरह नहीं मारा था। जिसने भी सुना, वही कांप उठा। लेकिन दानव का सामना करने का साहस किसमें था? आखिर धरती पर हुए इस पाप की सूचना इन्द्र को मिली तो वह स्वयं आ उपस्थित हुए। इन्द्र ने धनुष खींचा और एक ही बाण में उस आततायी दानव को मार डाला। लोगों के दिल का भय कम हुआ। आकाश से फूलों की वर्षा हुई। धरती पर इन्द्र का जय-जयकार गूंज उठा।
इन्द्र ने राजकुमार को सांत्वना दी। बोले, वत्स, धैर्य धारण करो। तुम्हारा प्रेम इस मृत्युलोक में अमर रहेगा।’ राजकुमार फूट-फूट कर रो पड़ा। फिर इन्द्र सुन्दरी के पास गये। उसकी सोने जैसी चमकती देह अब मरी पड़ी थी। इन्द्र ने उसके ऊपर वरद हस्त रखा और कहा, ‘सुन्दरी, तुम भी अमर रहोगी। लो, मैं तुम्हें अपने धनुष की आभा देता हूं। जैसी तुम आज दीप्त हो, वैसे ही युग-युग तक रहोगी और तुम्हारे साथ ही लोग मेरे धनुष को भी याद करेंगे।’
कोई कहता है, किशोरी मर कर रंग-बिरंगे पंखों वाली मोरनी बनी और राजकुमार जब मरा तो बादल बन गया।
दादी मां कहती है, तभी से आसमान पर इन्द्रधनुष दिखाई देता है। वह किशोरी जब कभी उसे देखती है तो राजकुमार की याद में रो पड़ती है। उसके आंसू तब टप-टप धरती पर गिर पड़ते हैं और लोग उसे वर्षा कहते हैं।
भारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा मालाभारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा माला’ का अद्भुत प्रकाशन।’