बनती टूटती धारणाएं-21 श्रेष्ठ नारीमन की कहानियां मध्यप्रदेश: Assumptions Story
Banti Tutati Dharnayein

भारत कथा माला

उन अनाम वैरागी-मिरासी व भांड नाम से जाने जाने वाले लोक गायकों, घुमक्कड़  साधुओं  और हमारे समाज परिवार के अनेक पुरखों को जिनकी बदौलत ये अनमोल कथाएँ पीढ़ी दर पीढ़ी होती हुई हम तक पहुँची हैं

Assumptions Story: शुरू-शुरू में मोहन उससे बहुत प्रभावित हुआ था। बहुत सौम्य, मृदुभाषी, आकर्षक व्यक्तित्व, उम्र लगभग पैंतीस-छत्तीस, दूसरे ग्राहकों से बिल्कुल अलग-थलग! पर बाद में उसकी वह धारणा चकनाचूर हो गई। अब हालत यह हो गई थी कि उसके आने का समय होते ही मोहन का दिल धड़क उठता था।

सुरेखा भले ही अपने आप को बहुत समझदार समझती है, पर वास्तव में वह है बहुत नासमझ। उसे नहीं मालूम कि दुनिया में क्या-क्या हो रहा है! उसे आदमी की जरा भी परख नहीं है, इसलिए जब उसने उस आदमी की बात छेड़ी तो उसने कहा “आप फिजूल की बातें बहुत सोचते हैं!”

पिछले 10 वर्षों से वह भोजनालय चला रहा था। मिल बंद हो जाने के बाद जब उसे कहीं नौकरी नहीं मिली तो सुरेखा के कहने पर उसने यह भोजनालय खोल लिया। उस समय भी उसके मन में कुछ ऐसा ही विचार आया था कि न जाने कैसे-कैसे ग्राहक आएंगे? सुरेखा भी उस समय बहुत सुंदर थी। उसकी बड़ी लड़की बाला उस समय पाँच वर्ष की थी और छोटी माला तीन वर्ष की। आज बड़ी 15 वर्ष की हो गई है और छोटी 13 वर्ष की। दोनों सुरेखा जैसी ही सुंदर हैं। जैसे-जैसे लड़कियों की उम्र बढ़ती जा रही थी, वह अधिक सावधान रहने लगा था। आने वाले सभी ग्राहकों को वह बहुत ध्यान से देखता रहता था। उनकी निगाहों में जरा-सा भी विचलन देखता, तो वह तुरंत टोक दिया करता था। सुरेखा अंदर खाना बनाती थी और उसकी बेटियां तथा वह खाना परोसने का काम करता था। वह आदमी पिछले 6 माह से उसके भोजनालय में खाना खा रहा था। वह आते ही दीवार के किनारे की कर्सी पर बैठकर अखबार पढ़ता और कनखियों से बाला को देखता रहता।

एक घटना ऐसी घट गई जिसके कारण मोहन उस आदमी से चिढ़ने लगा। उस दिन हमेशा की तरह वह भोजनालय में चारों ओर दृष्टि डालकर कुर्सी में बैठा और अखबार पढ़ने लगा। इस बीच कई लोग आए और खाना खाकर चले गए पर वह बेचैन हो बार-बार दरवाजे के पर्दे को देखता रहा। मोहन और उसकी छोटी बेटी माला खाने का सामान लेकर अंदर जाते, परदा थोड़ा हिलता, वह अंदर झांकने का पूरा प्रयत्न करता। मोहन ने उससे दो बार खाने को भी पूछा लेकिन उसने सिर हिला कर मना कर दिया। जब एक घंटा हो गया तो उस आदमी से रहा नहीं गया उसने माला से पूछा “आज बाला नहीं दिखाई दे रही, क्या कहीं बाहर गई है?” माला ने उसे बताया कि वह अपनी बुआ के यहां रुक गई है, कल आ जाएगी। उस दिन उसने खाना नहीं खाया और मुंह लटका कर बाहर निकल गया।

दूसरे दिन जब उसे बाला नजर आई तो वह बहुत प्रसन्न हो गया। उसके सिर पर उसने हाथ फेरा और उसे दो टॉफियां दी। एक उसके लिए और दूसरी माला के लिए। यह देख कर मोहन का चेहरा क्रोध से तमतमा गया। उसने बाला को टॉफी लौटाने को कहा और उस आदमी से बोला, “दूसरे ग्राहकों की तरह आप खाना खा कर चुपचाप चले जाया कीजिए। हम लोग गरीब जरूर हैं पर हमें ऐसा वैसा मत समझिएगा!” वह आदमी कुछ बोलने के लिए जैसे ही तत्पर हुआ मोहन उसकी बात काटते हुए जोर से बोला “आप की थाली रखी है चुपचाप खाना खा लीजिए।” वह बेमन से खाना खाकर लौट गया। इधर मोहन ने बाला को सख्त आदेश दिया कि जैसे ही वह आदमी भोजनालय के अंदर आए, वह अंदर के कमरे में मां के साथ रोटी बनाए, बाहर जरा भी नहीं आए।

रात को बिस्तर पर लेटते ही तुरंत सोने वाला मोहन उस रात ढंग से सो नहीं पाया। दिन वाली घटना उसके मस्तिष्क में घूमती रही। बहुत नालायक आदमी है, बड़ा धूर्त है और बेशर्म भी! शक्ल से कितना भोला-भाला लगता है, पर मन कितना मैला है। इतनी उम्र का होकर भी जरा-सी बच्ची पर डोरे डाल रहा है। ऐसे मर्दो ने ही समाज को गंदा कर रखा है। गुंडा कहीं का। जरा-सी नींद लगी थी कि थोड़ी देर बाद ही वह चौंक कर उठ बैठा। सांसे बहत तेज चल रही थी। उसने सपने में देखा था कि वह आदमी बाला को बहला-फुसलाकर घर से कहीं दूर ले जा रहा है। समीप लेटी सुरेखा को उसने देखा। उसे गहरी नींद में सोते देखकर वह मन-ही-मन क्रोधित हो उठा। इसे तो बच्चियों की जरा भी फिक्र नहीं है और एक वह है जो फिक्र किए-किए मरा जा रहा है! उसने सरेखा को झकझोर कर जगाया और उस आदमी की बात छेड़ दी। मिचमिची आंखों से उसे देखा और बोली, “न जाने आप क्या-क्या सोचते रहते हैं? सोने दीजिए मुझे, इस बार जैसे ही उस आदमी का महीना पूरा होगा, उसे मना कर दीजिएगा। पर मुझे वह आदमी बुरा नहीं लगता।” सुरेखा के मुख से यह सुनकर मोहन भड़क उठा, “तुम तो मूर्ख हो। लड़की जब घर से चली जाएगी तो रोते रहना! बेटियां जवान होने लगती हैं तो माता-पिता की नींद उड़ जाया करती है और एक तुम हो जो सुख से नींद निकाल रही हो!”

तीन-चार दिन बीत गए पर वह आदमी भोजनालय में नहीं आया। उसके कार्यालय का एक आदमी और खाना खाने आता था। एक दिन मोहन ने बातों ही बातों में उससे उस आदमी की जानकारी ली। उसे पता चला कि उसकी पत्नी दिवंगत हो चुकी है। उसके एक लड़की भी है। गांव में उसका सम्मिलित परिवार है। मां की तबीयत खराब होने की सूचना मिलते ही वह इन दिनों गांव गया हुआ है। अभी उस आदमी का महीना समाप्त होने में कुछ दिन शेष थे, पर उसने दृढ़ निश्चय कर लिया था कि वह जब भी आएगा, वह उसे बाहर से ही टरका देगा। तीन-चार दिन बीत गए। एक दिन तीन-चार ग्राहक भोजनालय में खाना खा रहे थे। मोहन उनके लिए रोटियां लेने अंदर के कमरे में गया। रोटियां सिकने में थोड़ी देर लग गई। प्लेट में रोटियां लिए कमरे के बाहर आया कि उसकी धड़कन तेज हो गई। हाथ हिल उठा और प्लेट में रखी रोटियां नीचे गिरते-गिरते बचीं। उसे वह आदमी मेज पर सिर झुकाए बैठा दिखाई दिया।

ग्राहकों के चले जाने के बाद मोहन उस आदमी के सामने खड़ा हो गया और गुस्से से बोला “आज तो अंदर आ गए लेकिन आइंदा अंदर मत आना। यहां तीन भोजनालय और भी हैं, वहां खाना खा लिया करो, तुम्हारा महीना पूरा हो गया। हमें तुम्हारे जैसे ग्राहक नहीं चाहिए।” वह आदमी थोड़ी देर चुप रहा फिर बोला, “मोहन भाई! तुम मुझे गलत समझ रहे हो! ठीक है मैं अब यहां नहीं आऊंगा। दरअसल तुम्हारे परिवार में मैं अपने परिवार की छाया देख रहा था। मेरी पत्नी मर चुकी है। मेरी एक बेटी है जिसे मैं बेइंतहा प्यार करता हूं। तुम्हारी बाला में मैं अपनी बेटी की झलक देखता था और मुझे दूसरे दिन जीने की ताकत मिल जाया करती थी। मैं… मैं बुरा आदमी नहीं हूं।”

वह आदमी भोजनालय के बाहर निकल गया था और मोहन के लिए पूरी दुनिया क्षण भर को स्थिर हो गई थी।”

भारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा मालाभारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा माला’ का अद्भुत प्रकाशन।’