Motivational Story: नीलिमा की शादी को दो साल हो चुके थे, लेकिन उसके चेहरे की मुस्कान कहीं खो गई थी। ससुराल वालों की ऊंची आवाज़ें, ताने और तिरस्कार उसके आत्मविश्वास को चुरा रहे थे। उसके पति की बेरुखी उसे और भी तोड़ रही थी।
समर, जो हमेशा अपनी बहन का साया बनकर रहा था, उसकी इस हालत से अनजान नहीं था। उसे याद था वो बचपन, जब नीलिमा उसकी ऊंगली पकड़कर चलती थी। जब भी वह गिरती, समर उसे उठाने के लिए सबसे पहले आगे आता। और अब, जब ज़िंदगी ने उसे फिर से गिरा दिया था, तो क्या समर उसे फिर से नहीं थामेगा?
एक दिन जब नीलिमा मायके आई, तो समर ने उसे ध्यान से देखा। उसकी वही चंचल आंखें अब बुझी-बुझी सी थीं। उसने धीरे से पूछा, सब ठीक है न, नीलू?
नीलिमा की आंखें भर आईं, लेकिन उसने सिर झुका लिया। समर समझ गया कि कुछ तो बहुत गलत है।
रात में जब मां सो गईं, तो समर चुपचाप नीलिमा के कमरे में आया। बचपन में जब भी नीलिमा डर जाती थी, समर उसी तरह धीरे से उसके पास आता और कहता, डर मत, मैं हूँ न!
आज भी उसने वही कहा।
नीलिमा पहली बार खुद को रोक नहीं पाई और समर के कंधे पर सिर रखकर फूट-फूटकर रोने लगी।
भैया, मुझे बहुत डर लगता है। वो लोग मुझे हर दिन ताने देते हैं, कभी खाना ठीक नहीं बना, तो कभी दहेज के लिए तंग करते हैं। पति भी कुछ नहीं कहता।
समर ने उसकी बात ध्यान से सुनी और उसके आंसू पोंछते हुए कहा, अब तुझे डरने की जरूरत नहीं है, नीलू। भागने की जरूरत नहीं है, लड़ने की जरूरत है!
समर जानता था कि बहन को हमेशा बचाने से बेहतर है कि उसे इतना मज़बूत बना दिया जाए कि वो खुद अपना हक ले सके। उसने नीलिमा को समझाया कि चुप रहना हल नहीं है।
याद है जब तू साइकिल चलाना सीख रही थी? तू गिरती थी, लेकिन मैं तुझे दोबारा उठने के लिए कहता था, है न? नीलिमा ने आंसू पोंछकर सिर हिलाया।
आज भी वैसा ही है, बस अब तुझे खुद को थामना सीखना होगा।
नीलिमा ने धीरे-धीरे खुद को मज़बूत बनाना शुरू किया। समर ने उसे ऑनलाइन कोर्स करने में मदद की। वो नौकरी की तलाश में जुट गई। अब वह सिर्फ घर की बहू नहीं, बल्कि आत्मनिर्भर महिला भी थी।
जब ससुराल वालों ने फिर से ताने मारने शुरू किए, तो पहली बार नीलिमा ने आत्मविश्वास से कहा, अगर आपको मुझसे इतनी शिकायतें हैं, तो आप मुझे बांधकर नहीं रख सकते। मैं अपने आत्मसम्मान के साथ समझौता नहीं करूंगी।
धीरे-धीरे चीज़ें बदलने लगीं। पति को भी एहसास हुआ कि उसकी पत्नी अब कमजोर नहीं रही। ससुराल वालों ने भी अपने बर्ताव में बदलाव किया। और अगर वे नहीं बदलते, तो नीलिमा के पास अब आत्मनिर्भर बनने का आत्मविश्वास था।
राखी वाले दिन, जब नीलिमा ने समर को राखी बांधी, तो उसने कहा, भैया, तूने मुझे बचाया नहीं, तूने मुझे हिम्मत दी और यही सबसे बड़ा रक्षा सूत्र है।

समर की आंखें नम हो गईं, लेकिन उसने मुस्कुराते हुए कहा, हमेशा तेरे साथ हूँ, लेकिन अब मुझे पता है कि तुझे मेरी ज़रूरत नहीं पड़ेगी!
नीलिमा ने उसका हाथ पकड़ लिया और बोली, जरूरत तो हमेशा रहेगी, भैया! बस अब मैं कमजोर नहीं हूँ!
समर ने प्यार से उसकी पीठ थपथपाई। यही तो चाहता था, मेरी बहन अब किसी से डरने वाली नहीं।
