यादों के सहारे-गृहलक्ष्मी की कहानियां
Yaadon ke Sahare

Hindi Kahani: अचानक आँख खुलती है  अपने आपको अस्पताल में पाकर नीलिमा पूछती है यहां कैसे आई मै कौन लाया मुझे यहां ? डॉक्टर कहती हैं इतने सारे सवाल एक साथ, थोड़ी सांस तो ले लो ।

          तुम्हे कुछ नहीं हुआ , बस एक छोटा सा एक्सिडेंट हुआ था तुम्हारे साथ  काम करने वाले सहकर्मी तुम्हे अस्पताल ले आए,और मैं तुम्हारा इलाज कर रही हूं। तू ठीक है? हां मैं तुम्हारे घर पर फोन करवा दी हूं। शायद कोई आ जाए लेने ये कहते हुए डॉक्टर चली जाती हैं।

         ये सुनकर नीलिमा चार साल पीछे चली जाती हैं। (सोचते हुए)कभी मैने ये नहीं सोचा था कि एक दिन ऐसे भी आयेंगे जो मेरी सुधि लेने वाला कोई नहीं होगा । सागर तुम साथ होते तो आज ऐसा नहीं होता। नीलिमा की आंखे नम हो जाती हैं जब तुम थे तो मैने कभी घूंघट  न खोली ,तेरी ही चारदीवारी को पूरी दुनिया समझ बैठी थीं।तुम्हारा वो मेरे लिए साड़ी पसंद करना ज्वेलरी अपनी पसंद से लाना ।अपने अंदाज में कहना औरत है सारी कपड़ा पसंद करने आता ही नहीं है । मुझे कहना दिमाग नाम के चीजे नहीं है,हमेशा जब देखो तो उल्टी सीधी हरकत करती रहती है,दिमाग नहीं लगाती । सच बताऊं मै भी जान बूझकर ये हरकतें करती थी ,वो तुम्हारा चेहरा जब लाल होता था तो तुम पिघले हुए कुल्फी जैसे लगते थे।  वो चेहरे देखकर मुझे बहुत हंसी आती थी,मुझे हंसते देखकर तुम भी अपनी हंसी रोक नहीं पाते थे ।      तुम्हारा वो देर रात तक जाग कर समझाना ,देख नीलिमा तू चिंता मत कर हमको पांच बेटी है तो क्या हुआ सबको पढ़ा  लिखा के बड़ा ऑफिसर बनाएंगे बड़ा घर में शादी करेंगे।तू देखना जब हमारी बिटिया सब बड़ा ऑफिसर बनेगी न तो अपने आप लड़के वाले हमारी बिटिया का हाथ मांगने आयेंगे ।  प्यार करने का तरीका भी बड़ा अजीब था।दिलों में सागर भरे रखते और जवान पर बेरुखी ।

               सच बताऊं  मै भी तुमसे बहुत प्यार करती थी।कितनी हंसती खिलखिलाती दुनिया थी मेरी, पता नहीं किसकी बुरी नजर लग गई ।  तुम मुझे इस वीरान दुनिया में अकेले छोड़ कर चले गए।तुम बहुत याद आते हो सागर।

                      देखो न हमारी क्या हाल हो गई है। तुम्हारे जाने से बच्चो की पढ़ाई भी छूट गई हैं इन  सबको पालने के लिए अपने जीने के लिए मै एक नौकरी कर रहीं हूं आज वहीं जाते हुए मेरा एक्सिडेंट हो गया है। मै निः सहाय हूं, नौकरी करती हूं तो लोग न जाने क्या क्या बात बनाते हैं, पर मै क्या करूं मुझे अपने बच्चो को को देखकर तरस आती है। मैं अपने जीते जी अपने बच्चो को इस हाल में नहीं देख सकती।

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          अपनी वहीं मीठी की मां मुझे कहती रहती हैं । मत देखो पीछे मुड़कर दुनिया  ऐसे ही तेरे ऊपर बात बनायेगी भूखी रहोगी फिर भी कोई पूछने वाला नहीं होगा ।मै भी एक औरत हूं।तुम्हारी व्यथा को  मै अच्छी तरह समझ सकती हूं।तुम अपना काम करो कमाकर खाना कोई शर्म की बात नहीं है। तुम्हारी यादें मुझे हमेशा आती रहती हैं नीलिमा के आंखों में आंसू छलक आती है।

                  डॉक्टर कहती है , नीलिमा तुम्हे कोई लेने नहीं आया ? ठीक है मै तुम्हे घर भिजवाने का प्रबन्ध करती हूं  ।

इतने में किसी युवक की आवाज आती है।कहता है मै आया हूं नीलिमा को लेने डॉक्टर साहिबा।  पर  तुम हो कौन ?जब तक युवक कुछ बोलता, युवक की बात काटते हुए नीलिमा बोल उठती है ।जी, मै इन्हे जानती हूं।ये हमारे ही साथ काम करते है। बड़े ही नेक इंसान है इनका नाम प्रताप है ।

            नर्श डिसचार्ज का पेपर प्रताप को पकड़ाते हुए कहती है ये नीलिमा जी का इलाज का बिल हैं।बिल भर कर प्रताप नीलिमा को लेकर वहां से चल देता है।

         नीलिमा पूछ बैठती है कितना बिल आया प्रताप  ? जो भी आया मैने भर दिया आप क्यों परेशान हो  रही है। आप फिलहाल आराम कीजिए।

        अगले दिन नीलिमा कुछ रुपए  लेकर प्रताप को देती है और कहती है शायद कुछ कम है रख लो अगले महीने बचे रुपए दे दूंगी। प्रताप लेने से इनकार कर देता है।ये रुपए आप ही रखिए आपको काम आएगा।पर नीलिमा को ये नागवार गुजरता है।कहती है ,ये अभी ले लो प्रताप जब हमे जरूरत होगी  तो मै मांग लूंगी। नीलिमा के समझाने पर प्रताप रुपए ले लेता है।प्रताप नीलिमा से कहता है नीलिमा इतने सारे काम अकेले कैसे कर लेती हैं आप ?अरे,अकेले कहां हूं मै मेरे साथ मेरे बच्चे है,तुम्हारे जैसे  दोस्त है।सच पूछो तो बेटियां हमारी जान है अपनी प्यारी प्यारी बातों से उल्टी सीधी सवालों में उलझा कर रखी रहती है अजीब अजीब फरमाइशें काम करने की क्षमता को बढ़ा देती है बच्चों की बातें हमारे अंदर पूरी जोश भर देते है

प्रताप कह बैठता है नीलिमा वाकई में आप जितनी ही खूबसूरत हो उतनी ही आपकी बातें।मै आप से कुछ कहना चाहता हूं ।नीलिमा कहती है हां, हां कहों ना क्या कहना है तुम्हे ?प्रताप बहुत हिम्मत जुटा कर कहना चाहता हैं पर कह नहीं पाता।कुछ नहीं कभी और कहूंगा चल देता है।

 आखिरकार एक दिन कह ही बैठता है नीलिमा आप मुझे बहुत अच्छी लगती हैं,मै आप से प्यार करता हूं । शादी करना चाहता हूं, आपके साथ नई दुनिया बसाना चाहता हूं ।ये सुनकर नीलिमा सन्न रह जाती है।प्रताप को समझाती है कहती है। प्रताप दोस्ती और प्यार में बहुत अंतर है , सॉरी मै तुम्हें दोस्त से ज्यादा कुछ नहीं बना सकती । मै अपने पति की जगह किसी और को नहीं दे सकती क्योंंकि आज भी मैं अपने पति से उतना ही प्यार करती हूं । जितना पहले किया करती थी आज भी दिलों दिमाग में बसते है उन्हीं के सहारे जीना चाहती हूं। तुम मेरे अच्छे दोस्त हो दोस्त ही रहो ,मै अपनी दोस्ती को नहीं खोना चाहती,खोने का दर्द क्या होता है मेरे से बेहतर कौन जान सकता हैं।