गृहलक्ष्मी की कहानियां : मां तो मां ही होती है
Stories of Grihalakshmi

गृहलक्ष्मी की कहानियां :आप कब तक ऐसे परेशान रहेंगी, सरस्वती को याद करके… अब मत सोचा करिये वो सब आप, नहीं तो फिर आपकी तबियत खराब हो जायेगी, जाइये पड़ोस में हो आइये। आपका मन बहल जायेगा, मैं आपके कपड़े निकाल देती हूं। कहिये तो मैं भी आपके साथ चलूं। ठीक है शिखा बहू… कह कर रमा अतीत में खोती चली गयी।

अब तो 25 साल हो गये इस बुरे समय को घटे हुये। तीन बेटों के बाद एक बेटी हुई। सब बड़े ही खुश हुए, बेटी घर पर ही बिना किसी तकलीफ के अपने आप ही नार्मल डिलीवरी से हो गई। अस्पताल में बच्ची को देखते ही कमरे में मौजूद महिलाएं चौंक गईं। रमा का तो रो-रो कर बुरा हाल था। उसने तुरन्त सबसे हाथ जोड़ कर विनती की कि कृपया इस बात को इस कमरे से बाहर न जाने दें।

रमा और उसकी देवरानी दोनों की कड़ी निगरानी में बच्ची पलने लगी। उसका नाम सरस्वती रखा। इसका भी कारण था, सरस्वती की बोली इतनी मधुर थी कि बार-बार उसकी बोली सुनने का मन करता रहता था और गाना तो वह इतना मीठा गाती थी कि वो सुनने वाला अक्सर मंत्रमुग्ध हो जाता था। वह अक्सर गाया करती ‘‘तू कितनी अच्छी है”, तू कितनी भोली है, प्यारी -प्यारी हैं” ओ मां और अपनी मां की पीठ पर लटक जाती। रमा भी भाव विभोर हो जाती। ऐसे ही समय बीतने लगा। सरस्वती आठवीं कक्षा में पढ़ने लगी। अब उसकी शारीरिक कमियों की तरफ उसकी सहेलियों का ध्यान जाने लगा और आपस में काना फूसी भी होने लगी। सरस्वती को रमा ने सब कुछ अच्छे से समझा दिया था कि अपने ‘‘शारीरिक कमियों” के बारे में कभी भी किसी से कुछ न कहना, पर सरस्वती से ही चूक हो गई। उसने बहुत पूछने पर अपनी सबसे पक्की सहेली को बता दिया कि वह उन लोगों जैसी नहीं है।

कहा जाता है न, कि मुंह से निकली बात और हाथ से निकली तीर फिर वापस नहीं आते। बात उड़ते-उड़ते हिजड़ा समाज के लोगों तक पहुंच गई और फिर क्या था, वो हुआ जो नहीं होना चाहिए। वह लोग बहुत सारी संख्या में आये और जब सरस्वती को ले जाने लगे तब बड़ा ही हृदय विदारक दृश्य था। पूरे मौहल्ले में सब दुःखी थे। सभी उन लोगों से विनती करते रहे कि सरस्वती को मत ले जाओ। पर वो न माने। रमा तो उनके पैरों पड़ने लगी, बोली मेरे सारे जेवर घर सब ले लो पर मेरी सरस्वती को मुझे दे दो। पर सरस्वती को वो लोग जबरन ले ही गये। आज 25 वर्ष हो गये उसी की तलाश में। जहां भी वह नाचने वाले लोग, जाते रमा देवी सरस्वती को ढूढंने पहुंच जातीं। कहीं भी शादी हो तो, कहीं भी बच्चे का जन्म हुआ तो रमा देवी तुरन्त वहां उस उम्मींद से पहुंच जाती कि शायद उनकी सरस्वती उन्हें मिल जाय।

एक दिन रमा देवी के पास उनके पड़ोसी का फोन आया जो अब दूसरे मौहल्ले में रहने लगी है। मामी जी आप जल्दी यहां आ जाइये, यहां एक घर में शादी है और नाचने वालों में मुझे ऐसा लग रहा है कि वो सरस्वती भी है। आप देखकर पहचान लें। रमा देवी तुरन्त अपने पड़ोसी के यहां पहुंच गई। उन्होंने देखा और झट से अपनी सरस्वती को पहचान गई। पर एकदम से वो भी कुछ कह न सकी। सब नाच-गा रहे थे पर वो चुप बैठी थी। रमा देवी ने कहा बेटी ! तुम भी कुछ सुनाओ पर वो कुछ न बोली बस उसकी आंख से आसूं गिरने लगे। तब रमा देवी ने पूछा बेटी तुम रो क्यों रही हो। उसके अन्य साथियों में से एक ने एक ने कहा इस बेला का तो इस काम में मन नहीं लगता, पढ़ने लिखने में बहुत लगता है। बहुत अच्छे स्वभाव की है। हम सबका बहुत ख्याल रखते हैं, इसलिये हम इसे ये सब करने के लिये जोर नहीं देते। हम अपने मालिक को भी कुछ नहीं बताते नहीं तो वो इससे ये सब जरूर करवायेगी।

रमा देवी ने उसे अपने पास बुलाया बेला बेटी! इधर आओ।  रमा देवी के पास आकर बैठी तो रमा देवी उसके पीठ पर हाथ फेरने लगीं और बोलीं, सरस्वती मेरी बच्ची अपनी मां को नहीं पहचान पायी। सरस्वती तुरन्त अपनी मां के गले लग रूंधे गले से बोली, मां, मैंने आपको देखते ही पहचान लिया था पर सबके सामने चुप थी कि आपको कोई कुछ न कहें। नहीं मेरी बच्ची मां को बस अपने बच्चों की फिक्र होती है किसी के कुछ कहने सुनने की नहीं। आज कितने वर्षों बाद मुझे मेरी बेटी मिली है, कहां-कहां नहीं ढूंढा तुझे। कहां चली गई थी मेरी बच्ची। कैसी है तू अब चल तू मेरे साथ। अब नहीं जाने दूंगी। सरस्वती को अपने सीने से चिपकाये रमा देवी रोती रहीं। अब तक सबको बात समझ में आ गई थी । सरस्वती ने कहा, मां मेरा अब वापस आना सम्भव नहीं है, लेकिन मां ये सब मेरा बहुत ख्याल रखते हैं। ये सब बहुत अच्छे हैं, ये सब किसी न किसी कारण से अपने घर से बिछड़े हैं।

सब मेरा दर्द समझते हैं अब मैं आपसे मिलने आया करूंगी। घर में सब कैसे हैं, मेरे भाई लोग मुझे याद करते हैं या नहीं। सब तुझे याद करते हैं बेटी! तू घर चल तो एक बार। रमा देवी सरस्वती को अपने से कस कर चिपटाये रोये जा रही थीं। सरस्वती अपने साथियों की तरफ याचना भरी नजरों से देख रही थी। तभी उनमें से एक ने कहा, चल सब चलते हैं बेला। बहुत दिनों बाद मां मिली हैं, चल मां के घर चलते हैं। खबरदार जो किसी ने मालिक से कुछ कहा। आज मां के घर सब खाना खायेंगे। क्यों मां, रमा देवी खुशी से रोते हुये बोली हां मेरे बच्चों।

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