“अंतिम पड़ाव”-गृहलक्ष्मी की कहानियां: Antim Padav Kahani
Antim Padav Kahani

Antim Padav Kahani: मेरे गाँव में एक बूढ़े बाबा रहते थे। उनका नाम रामसिंह था। वह बहुत ही अच्छे स्वभाव के मालिक थे और उनका गांव उन्हें बहुत प्रेम करता था। वह लोगों के बीच मशहूर थे क्योंकि उन्होंने हमेशा अपने दिल से बात करने का
अद्वितीय तरीका अपनाया था। बाबा सबको हमेशा प्रसन्न रहने और सामाजिक बातों के महत्व को
समझाने में निपुण् थे।लोग भी उनकी बातों को अपना कर सफ़ल हो रहे थे।

एक दिन, बाबा अचानक बीमार पड़ गए। उन्हें पता नहीं था कि उनकी बीमारी कितनी गंभीर है। उन्होंने बहुत सारे उपचार करवाए, लेकिन उनकी स्थिति दिनों-दिन बिगड़ती जा रही थी। एक दिन, उन्होंने अपने अंतिम समय के नजदीक आते हुए अनुभव किया। उन्हें अपनी मृत्यु की चेतावनी मिल गई। ईश्वर ने सपने में कुछ अंतिम समय का भान बाबा को कराया। जिससे बाबा की नींद उड़ गई। बाबा घबराये हुए थे। उन्होंने अपने आस-पास के लोगों को बताया, लेकिन सबको विश्वास नहीं हुआ। जो बाबा लोगो को समझदारी की बात बताते थे वो आज नासमझी वाली बातें करने लगे। वक्त वक़्त की बात है, आज उन बाबा को समझाने की नौबत आ गई।

बाबा सोचने लगे कि कैसे अपनी मृत्यु को टाला जा सकता है। वे उदास और निराश हो गए। वे अभी इस दुनिया से जाना नहीं चाहते थे। सभी लोगों को उनके पास बुलाया और यह प्रयत्न करने लगे कि कैसे बाबा को बचाया जाए फिर गांव का एक युवा लड़का उनके पास आया और उसने उनकी समस्या को सुना और उसके निराकरण के लिए एक उपाय बताया उसने कहा एक उसके जान पहचान के गुरु है जो कुछ उपाय करके बताएंगे जिससे इनकी मृत्यु कुछ दिनों के लिए टल जाएगी वह गुरु बहुत ही भक्ति में और ज्ञानी थे उसके सुझावों को सभी ने समर्थन दिया और बाबा को उस पूज्य गुरुजी के पास में ले जाने का फैसला किया क्योंकि जब कोई इंसान इस तरह की समस्या से जूझ रहा होता है, तो उसका सहारा केवल या तो कोई संत या ज्ञानी या कोई गुरु ही उसकी समस्या का समाधान खोज पाते हैं, तो सर्वसम्मति से गांव वालों ने फैसला किया की बाबा को उन गुरुजी के पास ले जाएंगे और कोई न कोई समाधान निकलेगा।

बाबा ने इस सुझाव को माना और वह गुरू के पास चले गए। वे गुरु के सामने आकर बेसब्री से रोने लगे और उन्होंने अपनी मृत्यु की चेतावनी का विवरण किया। बाबा ने उन्हें प्यार और सहानुभूति से गले लगाया और उन्हें शांत करने की कोशिश की। गुरु ने बाबा को समझाया कि मृत्यु सिर्फ एक प्राकृतिक प्रक्रिया है और हर जीव का एक निश्चित समय पर जन्म और मृत्यु का आगमन होता है। वे बताने लगे कि जीवन एक अनंत चक्र है, जिसमें जन्म और मृत्यु केवल भूमिकाएं हैं। इसलिए कोई इसकी भविष्य वाणी नहीं का सकता। आप निश्चिंत रहें ये सब निश्चित समय पर होगा, आना और जाना। आप अपनी कार्यों की गति को न रोकें। कार्य संपन्न करने में वक्त लगाओ। व्यर्थ में जाने की चिंता न करो ये जब आयेगा तो बता कर नही आयेगा।

बाबा ने गुरु के वचनों पर विश्वास किया और माथा टिका कर अपनी इच्छा जताई। बाबा ने यह निर्णय लिया कि वे अपने गुरु के वचनों को मानने के लिए अपना जीवन पूरी तरह से जियेंगे। यह निर्णय उनके जीवन के महत्वपूर्ण उद्देश्यों, मूल्यों या आध्यात्मिकता के प्रतीक के संबंध में हो सकता है। इसका मतलब हो सकता है कि बाबा अपने जीवन के हर पल को गुरु के वचनों के मार्गदर्शन में बिताने का प्रयास करेंगे और वे अपने जीवन को संबल, आनंद और सामर्थ्य के साथ बिताने की कोशिश करेंगे। इसके अलावा, यह भी संभव है कि बाबा इस फैसले से पहले अपने जीवन में विशेष बदलाव करने की आवश्यकता महसूस कर रहे हों, जैसे कि अपने धार्मिक या आध्यात्मिक
अनुभवों में गहराई प्राप्त करना, आत्म-विकास के लिए समय निकालना, सेवा करने का निर्धारण करना आदि।
गुरु से शिक्षा ले बाबा घर आ गए। अनावश्यक चिंता ने उनको घेर लिया। उनका सारा वक्त इसी सोच में निकल रहा था कि कब वो यहाँ से उठ जाएं। गुरु के कहे का असर नहीं दिख रहा था। वो अच्छा करने और आनंद लेने की बजाए व्यर्थ बातों और चिंताओं में वक़्त निकाल रहे थे। कुछ सार्थक करने की बजाए बस मृत्यु का इंतजार कर रहे थे। गुरु के वचन को वो भूल गए।

अचानक बाहर से किसी ने दरवाज़ा खटखटाया। बिना प्रतिउत्तर के कोई अंदर चला आया। बाबा सहम गए। गुरुजी को समक्ष देख, बाबा को आश्चर्य हुआ, गुरू जी भी आश्चर्य में थे। ये क्या तुम मरे नहीं? गुरुजी ने पूछा। बाबा रोने लगे और कहने लगे मैं रोज अपनी मौत के इंतजार में रहता था पर आती नहीं थी। बहुत इंतजार किया। मै इसी चिंता मे अपने वचन और कर्म भूल गया।, जिसका वादा आपसे किया था। और बाबा फफक फफक के रो पड़े।
गुरुजी ने बाबा को शांत किया और कहा मै जानता था, मौत कह कर नही आती, लेकिन तुमने जो कार्य करने थे वो अब तक नहीं कर पाए पर्याप्त समय होते हुए भी हम व्यर्थ वक़्त को दोष देते रहते हैं। बस ये ही सत्य है कि मौत का इंतजार न करो। समय रहते अपने कार्य पूर्ण करने में ऊर्जा लगाओ। अंतिम पड़ाव मृत्यु ही है। ये यथार्थ सत्य है।
इतना कह कर गुरुजी दरवाजे से बाहर चले गए और बाबा दरवाजे को देखते रहे और उनकी आँखे खुली की खुली रह गई और गर्दन एक तरफ़ लुढ़क गई।