यूँ बेबस और दुखी तो न होता-गृहलक्ष्मी की कविता: Grehlakshmi Hindi Kavita
Yu Bebas or Dukhi to na Hota

Hindi Kavita: विषधर ने विष धरा मानव कल्याण के लिए
वो दर्द क्या इसलिए सहा उसने
कि उसको हर ओर विष फैला दिखे
काश समुद्र मंथन के दिन
फैल जाने दिया होता विष उसने!
कम से कम,
आज खुद पे क्रोधित तो हो पाता
यूँ बेबस और दुखी तो न होता!
राम ने वनवास झेला स्वच्छ समाज के लिए
वो दुख क्या इसलिए सहा उसने
कि समाज राम का नाम ले अपनी पत्नी तजे
काश अपनी माँ का सम्मान न किया होता उसने
तो माँ को वृद्धाश्रम में देख, आँसू न गिरते!
काश रावण को न मारा होता उसने
तो हर व्यक्ति को रावण बनते देख
कम से कम,
आज खुद पे क्रोधित तो हो पाता
यूँ बेबस और दुखी तो न होता!
कान्हा ने बाँसुरी छोड़ी, राधा छोड़ी, धर्म स्थापना के लिए
अपना प्यार क्या इसलिए छोड़ा उसने
कि नफरत भरा समाज दिखे
महाभारत क्या इसलिए रची
कि रोज़ एक द्रौपदी सरे आम नग्न मिले!
सुदर्शन उठाया, गीता का पाठ पढ़ाया,
अर्जुन को दिव्य रूप दिखाया!
काश इतना सब न किया होता उसने
तो हर ओर फैले अधर्म के वीभत्स रूप को देख
कम से कम,
आज खुद पे क्रोधित तो हो पाता
यूँ बेबस और दुखी तो न होता!
सिद्धार्थ निकला रात को
दुनिया का दर्द समेटने, प्रेम बिखेरने के लिए
यशो और राहुल को क्या
हर ओर नरसंघार देखने के लिए छोड़ा उसने
राज पाठ, घर द्वार,
क्या इस लिए छोड़ा उसने
कि समाज प्रेम तज, सत्ता को पूजे!
काश उसने निर्वाण न चुना होता, वो बुद्ध न बना होता
तो धर्म की शरण छोड़, हथियारों से खेलते समाज को देख
कम से कम,
आज खुद पे क्रोधित तो हो पाता
यूँ बेबस और दुखी तो न होता!
सबका त्याग व्यर्थ गया
न धर्म स्थापित हुआ, न प्रेम,
न हुआ मानव कल्याण, न अच्छा समाज बना
अपने हिस्से के त्याग करते समय,
ऐसा समाज; किसी ने न सोंचा होगा!
काश वो तब, विष न धरता, रावण को न मारता,
सुदर्शन न धरता, निर्वाण न चुनता
कम से कम,
आज खुद पे क्रोधित तो हो पाता
यूँ बेबस और दुखी तो न होता!!!

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