Grehlakshmi Hindi Story: हरदयाल चौधरी नींद से अचानक घबराकर उठाते हुए, पसीना-पसीना से हो जाते हैं। बगल में लेटी पत्नी माया चौंकते हुए अजी क्या हुआ ????अचानक इतनी रात गए उठकर बैठ क्यों गए। सर पे हाथ रखते हुए तबीयत तो ठीक है आपकी। पानी लाऊं क्या अरे कुछ नहीं सो जाओ नहीं नहीं बताइए तो सही क्या प्रॉब्लम है। कई दिनों से अजीब-अजीब से सपने देखता हूं । इन सपनों ने तो मेरा जीना मुश्किल कर दिया है। जैसे कोई अनहोनी दस्तक देने वाली हो। तभी माया तपाक से बोलती है, होनी अनहोनी तो हमारे अपने ही कर्मों का हिसाब चुकाने आती है खैर छोड़ो और सो जाओ ।वरना इतनी रात गए खुशूर- फूशूर सुन के बच्चे भी जग जाएंगे…….।
ठीक है तुम सो जाओ मैं भी सोने का प्रयास करता हूं। माया थोड़ी देर में सो जाती है। लेकिन मेरी आंखों में नींद कहां?? मैं बालकनी में टहलने लगा । जबकि इस रात की साय – साय चल रही हवा मुझे बहुत भयावह लग रही थी। फिर भी सपने की बेचैनी से बेहतर मैं इसी तेज हवाओं के संग संग महसूस कर रहा था। सच में माया ने कहा होनी अनहोनी अपने ही कर्मों का हिसाब चुकाने आती है। कुछ तो तबाही हमारे जीवन में उथल-पुथल मचाने वाला है। और मेरे अपने ही कर्मों का हिसाब बराबर करके जाएगा। इन्हीं अंधेरी काली रातों में चलती हवाओं के संग- संग अपने किए पिछली कर्मों का हिसाब करने लगा…….।
यह कहानी तब की है जब मैं जवान हो ही रहा था। मेरे पापा तीन भाइयों में सबसे बड़े लेकिन नियत बड़ों वाली नहीं थी। उनके मन में हमेशा मेरे बीच वाले चाचा जो की बहुत ही कम उम्र में दुनिया छोड़ चले थे।
उनकी विधवा पत्नी और उनके इकलौते बेटे अखिलेश चौधरी की संपत्ति पर हमेशा लगा रहता था। परिवार सम्मिलित था और इस सम्मिलित परिवार में मैं बड़ा हो रहा था सबके लाल दुलार को पाकर। मैं अखिलेश से भी बहुत प्यार करता था। लेकिन एक दिन नई सुबह अचानक जिंदगी में सब कुछ बदल के रख दिया। मेरे पापा ने एक फैसला लिया कि हम तीनों भाई अलग-अलग हो जाएंगे। सब ने अपनी अपनी स्वीकृति दे दी और नियत समय पर पंच के सामने तीनों भाइयों के जमीन जायदाद घर सभी बंटवारे हो गए । बीच वाले चाचा नहीं थे इसलिए पंच के सामने पापा ने कहा कि मैं बड़ा भाई हूं इसलिए जब तक अखिलेश जवान नहीं हो जाता तब तक अखिलेश और उसकी मां की जिम्मेदारी मेरे ऊपर है। सभी पंचायत के लोगों ने कहा वाह बहुत अच्छा बड़े होने का फर्ज अदा करेंगे बहुत बढ़िया सोच श्यामसुंदर जी। बिलकुल नाम जैसे सुंदर विचार आपके । लेकिन सभी पंच भाई लोग को कहां पता था कि, मेरे पापा की नियत साफ नहीं है। उनके दिमाग में एक अलग प्रकार की खिचड़ी पक रही है। ठीक बंटवारे के कुछ दिनों बाद मेरे पापा एक रात एक बड़ी योजना बना डालते हैं…….।
उन्होंने मुझे अपने पास बुलाया और बड़े प्यार से बिठाया । मेरी मां को बोले कि जाइए दोनों छोटे बच्चों को सुला दीजिए। सुला के फिर यहां आइएगा। थोड़ी देर में मेरी मां आई। पापा ने जो योजना बनाई वह इस प्रकार से उन्होंने हम लोग को बताया। उनके अनुसार मैं अखिलेश को बेहोशी की दवा देकर उसकी निगरानी करता।
मेरे पापा मम्मी के सहयोग से चाची से जबरदस्ती करके सारे ज्यादा अपने नाम करवा लेते। उनका कहना था कि हमारे दो बेटे हैं और उसको एक ही बेटा है उसको ज्यादा संपत्ति मिल जाएगी। मैं विरोध भी किया क्योंकि मैं बचपन से ही अखिलेश से बहुत प्यार करता था ।अपने भाई के समान ही लेकिन पापा ने मुझे दो तमाचा कस के मारा और कहा यह नहीं करोगे तो घर से निकल जाओ। मैं भी डरते डरते हामी भर दी, यह प्लान कल के रात की थी।
नियत समय पर योजना मुताबिक में अखिलेश को ना चाहते हुए भी दो-तीन थप्पड़ पहले मारा फिर उसके मुंह में बेहोशी की दवाई देकर उसकी निगरानी करने लगा। चाची के चिखने चिल्लाने के बावजूद भी , चाची बिल्कुल नहीं चाहती थी तब भी जबरदस्ती से पापा ने सारी जमीन ज्यादाद अंत में अपने नाम करवा लिए…….।
इधर अखिलेश बेहोशी की दवा देने पर भी बेहोश नहीं हुआ वह सारी घटना को देखता रहा और चिल्लाता रहा मैं इस अपमान का बदला लूंगा । मैं इस अपमान का बदला जरूर लूंगा ताऊजी चुन-चुन के लूंगा हरदयाल भैया आपको छोडूंगा नहीं मुझे बड़ा हो जाने दो मेरी मां का अपमान नहीं है यह मेरे मृत पिता का अपमान हुआ है। जब सारा ज्यादाद पापा ने अपने नाम करवा लिया तो उन्होंने जोरदार ठहाका लगाया। कहा कल से तुम दोनों बेघर हो जाओगे। कोई नहीं ताऊजी ईश्वर के घर देर है अंधेर नहीं मैं इसका हिसाब लेने आऊंगा। दोनों मां बेटे एक दूसरे से चिपक कर रोते-रोते ना जाने कब सो जाते हैं। नई सुबह नया जैसा कुछ लग ही नहीं रहा था दोनों मां बेटा को फिर भी लूटे हुए निकल गए नई आशाओं के साथ……..।
बालकनी में पता नहीं मैं कितनी देर ख्वाबों की दुनिया में सैर करता रहा अचानक चिड़ियों की चहचहाट से मेरी ध्यान भंग हुई मैंने देखा कि सुबह होने पर है अपने कमरे में चला गया। सोचने लगा कि समय कितना जल्दी बीत जाता है हमारे भी बाल बच्चे बड़े हो गए । माता-पिता जिन्होंने बेईमानी की वह भी स्वर्गवास हो गए। पता नहीं अखिलेश की भी दुनिया सजी होगी या नहीं। दो-चार दिन किसी तरह बीता एक दिन अचानक से दोपहर में एक नौजवान हट्टा कट्टा आता है और बिना किसी परमिशन के पूरे घर के तोड़ फोड़ मचाने लगता है। अरे रुको- रुको कौन हो तुम उसने मेरे ऊपर एक जोरदार तमाचा लगाया। मेरी पत्नी बच्चे सभी हैरान हो गए। अरे बताओ तो सही तुम कौन हो अपना परिचय तो दो। हंसते हुए मैं हूं अपनी दादी का पोता, अखिलेश चौधरी का पुत्र, अपमान का बदला, तबाही है नाम मेरा…….।
मेरे पापा मेरी मां सभी रोने लगे, माफ कर दो बेटा। माफी मैंने जो अपने पिता को अपनी दादी को संघर्ष करते हुए देखा है। अखिलेश चौधरी भी उधर से आते हैं तेज आवाज में वक्त मेरा भी बदल गया है ,मेरे बेटे की वजह से आज मेरा बेटा बहुत ही अच्छे पद पर कार्यरत है । उन सारी संपत्तियां जिसके लिए आप बेचैन थे जिसके लिए आपने आपके पिता ने अपनी नियत खराब की । हरदयाल सिंह मैंने कुछ नहीं किया, आपने अपने पिता का साथ दिया। एक नादान बच्चे की आंखों के सामने उसकी मां से जबरदस्ती सारे कागज़ात अपने नाम करवा लिए।
जिस समय मुझे सख्त जरूरत थी आपकी उस समय आपने मुझे रोड पर खड़ा कर दिया। आज कहते हैं माफ कर दो, किस हक से। अभी-अभी मैं तुम्हारा सारे कागजात वापस करता हूं। लौटा सकते हैं तो आप मेरे बड़े भाई हैं मेरा वह बुरा वक्त लौटा दीजिए जो मैंने आपकी वजह से झेला है ।मेरी किस्मत में नहीं था जो दुख आपने उसे मेरी किस्मत बना दिया। अब आप ही तय कीजिए कि, उस अपमान का बदला मैं आपको रोड पर खड़ा कर दूं आपकी सारी संपत्ति की बोली लगाकर। नहीं नहीं ऐसा मत करो मेरे भाई, अखिलेश चौधरी की आंखें भर आती हैं। मैं ऐसा करूंगा भी नहीं क्योंकि मैं इतना गिरा हो ही नहीं सकता। ऐसी तबाही मेरा बेटा मचाता कि आप जीवन भर याद रखते ,लेकिन वह मेरे बातों का अपमान नहीं करता है ।मैंने उसे मना कर दिया और आपको माफ कर दिया…….।
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