Kabir Jayanti 2022: संत कबीर दास की जयंती ज्येष्ठ माह की पूर्णिमा तिथि को मनाई जाती है। इस बार 14 जून 2022 को कबीर दास जी की 645वीं जयंती को मनाया जाएगा। उत्तरप्रदेश के काशी की पवित्र धरती पर संत कबीर जी पले बढ़े। बचपन से ही भक्ति की ओर उनका खास रूझान था। वे धीरे धीरे गुरु रामानंद की शिक्षाओं और उनके उपदेशों से बेहद प्रभावित रहने लगे। काशी में रहकर गुरु रामानंद अपने शिष्यों और लोगों को भगवान विष्णु के प्रति लगाव का उपदेश देते थे। ईश्वर के प्रति खास लगाव के चलते कबीर दास जी गुरु रामानंद के शिष्य बन गए और वे उनकी कही बातों और शिक्षाओं को अपने जीवन का सार समझने लगे। उन्होंने गुरू रामानंद को ही अपना गुरु मान लिया।
कबीर जी एक महान समाज सुधारक, एक प्रसिद्ध कवि और दूरदर्शी स्वभाव की शख्सियत माने जाते थे। उनके लेखन में वो ज्ञान, धर्म समाज और मनुष्य के जीवन से जुड़े कई पहलुओं का जिक्र मिलता है। इनके मुख से निकला हर शब्द लोगों के ज़हन में उतर जाता है। कबीर जी की वाणी में छिपे भाव लोगों को अपनी ओर आर्कषित करते थे। वे सभी धर्मों को साथ लेकर चले। उन्होंने अपनी रचनाओं में लोगों को सत्य के मार्ग पर चलने का रास्ता दिखाया। वे कर्म को विशेष अहमियत देते थे। हिंदी साहित्य के महान कवि संत कबीरदास ने लोक कल्याण के लिए अपना सम्पूर्ण जीवन समर्पित कर दिया।

भक्ति के मार्ग पर चलने वाले कबीर दास की अधिकांश रचनाएँ बहुत मार्मिक और स्पष्टवादी हैं। उनकी कविताओं सें सत्य का बोध होता है। उनके लिखे दोहे समाज का सजीव चित्रण हमारे समक्ष पेश करते हैं। आइए जानते हैं इनके कुछ दोहे और उनका अर्थ
यह तन विष की बेलरी, गुरु अमृत की खान।
सीस दिए जो गुर मिलै, तो भी सस्ता जान
संत कबीर अपने इस दोहे में जीवन के सार को इन पक्तियों के ज़रिए वर्णित करते हुए इस बात पर रोशनी डालते है कि मनुष्य का शरीर विष से भरा हुआ है और गुरू अमृत की खान है। वो कहते है कि अगर आपको अपना शीश न्यौच्छावर करके भी गुरू की कृपा प्राप्त हो जाती है, तो ये सौदा भी सस्ता ही है।
साईं इतना दीजिये,जामे कुटुंब समाय।
मैं भी भूखा ना रहूँ, साधु ना भूखा जाय।।
संत कबीर का हर दोहा समाज को नई सीख देकर गया है। उन्होंने अपने इस दोहे में प्रभु कृपा का उदाहरण देते हुए कहा कि परमात्मा अपने भक्तों को इतना अवश्य दें कि वे अपना और परिवार का लालन पालन कर सके। आगे कहते है कि साईं इतना अवश्य दें कि मैं भी भूखा न रहूं और द्वार पर आने वाला कोई संत भी भूखे पेट न जाने पाए।
निंदक नियरे राखिए, ऑंगन कुटी छवाय,
बिन पानी, साबुन बिना, निर्मल करे सुभाय।
संत कबीर दास इस दोहे में कह रहे है कि जो भी हमारा निदंक हो उसे खुद से दूर करने की बजाय सदैव अपने नज़दीक रखो, ताकि हम अपनी त्रुटियों के बारे में जान सकें औश्र सच से वाकिफ हो सकें।
दुःख में सुमिरन सब करे, सुख में करे न कोय
जो सुख में सुमिरन करेए तो दुःख काहे को होय
जीवन में दुःख और सुख गाड़ी के वो दो पहिए है, जो हमें जीवन में अच्छाई और बुराई का एहसास करवाते हैं। आमतौर पर लोग दुख की घड़ी में ईश्वर को याद करनें लगते है और उनके समक्ष अपनी परेशानी रखते है ताकि ईश्वर उसका जल्द निवारण कर दें। मगर वहीं जैसे ही सुख की बेला नज़दीक आने लगती है, तो मनुष्य न केवल अपना दुख भूलने लगता है बल्कि उस ईश्वर के सिमरन को भी छोड़ देता है, जिसने मनुष्य को इस भवसागर की दुविधाओं से बाह पकड़कर बाहर निकाला था।