घर में अभी तक शोक का माहौल था। सुधांशु अपने बिस्तर में लेटा हुआ था और उसकी आंखों से आंसुओं की अविरल धारा बही जा रही थी। आज उसके पापा को सड़क हादसे के कारण गुज़रे एक महीना हो गया था। उसके पापा एक रोज़ घर से दफतर के लिए गए और फिर कभी लौट कर नहीं आए। और फिर उसकी ही नहीं, मां की भी जि़ंदगी बदल गई। सब कुछ बिखर गया था। कुछ रोज़ तो उसे समझ नहीं आ रहा था कि अचानक से पापा कहां चले गए, लेकिन जैसे-जैसे दिन बीतने लगे, उसे पापा की कमी खलने लगी।

पापा उसके केवल पापा नहीं थे, उसके सबसे गहरे दोस्त और मार्गदर्शक थे।

उसकी गलतियां सुधारने का उनका अपना ही सुंदर ढंग था, जिसके कारण उसका मनोबल और आत्मविश्वास ऊंचा रहता था।

उसे याद आ रहा था एक बार वह गणित के टेस्ट में फेल हो गया तो बहुत डर रहा था अंदर से। धीरे से पापा के पास जाकर बोला, ‘पापा, मैं टेस्ट में बिलकुल अच्छा नहीं कर पाया, फेल हो गया।’ पापा बजाए कि गुस्से से उसमें दोष निकालते मुस्कुरा कर बोले, ‘कभी सोचा कारण क्या है?’

वह धीरे से बोला, ‘पापा मैं वीडियो गेम खेलता रहा बजाए पढ़ने के।’

पापा बोले, ‘तो अब क्या सोचा इस समस्या के बारे में?’

‘पापा, अब पहले मैं अपनी पढ़ाई की ओर ध्यान दूंगा और फिर अगर समय बचा तो वीडियो गेम खेलूंगा।’ उस दिन के बाद उसका पढ़ाई के प्रति दृष्टिकोण ही बदल गया।

‘वह खुद को बहुत ही जि़म्मेदार महसूस करने लग पड़ा अचानक से।’ अगर उससे कुछ टूट जाता तो पापा सहज ढंग से टूटी वस्तु को उसके साथ समेटने लगते और उस पर कभी नहीं बिगड़ते। ‘हर बात को वह कितना आसान कर देते थे’ भरे मन से वह यही सोचता रहता।

‘अभी वह केवल बारह वर्ष का था और सातवीं में पढ़ता था।’ पापा नवम्बर में गुज़रे और दिसम्बर आने तक मौसम बदल गया था।

रात को ठंड अचानक से बढ़ जाती थी और हाथ-पांव ठिठुरने शुरू हो गए थे।

पापा की कमी दिन बीतने के साथ बढ़ती जा रही थी। लेकिन धीरे-धीरे सब सहज भी हो रहा था। मां वापस अपनी नौकरी पर चली गई थी और शाम को ट्यूशन पढ़ाने और खाना बनाने में व्यस्त।

वह भी घर आकर खाना खाकर, गुमसुम सा पढ़ाई में मन लगाने की कोशिश करता।

‘आहट होती तो लगता पापा आ गए!’

सर्दी आने पर मां ने सर्दी के कपड़े अलमारी में लगाने शुरू कर दिए।

देखा, मां ने पापा के गरम कपड़ों का अटेची खोला,  कपड़ों पर हाथ फेरा फिर भरी आंखों से अटेची को बंद करने लग पड़ी।

यह देख उसका मन और दहल गया, ‘क्या सचमुच पापा अब कभी वापस नहीं आएंगे?’

रात को रोते-रोते वह बिस्तर से निकला और पापा का कपड़ों वाला अटेची खोला, उसमें से काले रंग का पापा का मनपसंद स्वेटर निकाला और गले से भींच लिया।

‘उसमें से पापा की खुशबू आ रही थी!’

उसने भरी आंखों से उस स्वेटर को पहन लिया तो लगा पापा ने उसको गले लगा लिया।

‘अजीब सा सुकून उसको महसूस हुआ इतने दु:ख भरे दिनों के बाद।’

फिर पापा की लाल और काली धारी वाली मनपसंद शॉल अपने आसपास लपेट ली।

उसने आईने में खुद को देखा तो बड़े से खुले से स्वेटर में पापा का अक्स दिखने लगा।

पापा मुस्कुरा रहे थे और उसके सिर पर हाथ फेर रहे थे। बोले, ‘मैं चाहे इस दुनिया में नहीं हूं, लेकिन तुम्हें देखता रहूंगा।’

‘जब भी तुम उदास हो या दुखी हो मुझे याद करना। मैं आऊंगा तुम्हारे $खयालों में तुम्हारे हर सवाल का जवाब दूंगा।’

‘तुम बस मेरे साथ बिताए हर पल को मुस्कुरा कर याद करना, उन्हें अपनी कमज़ोरी नहीं ता$कत बनाना और अपनी मां की भी शक्ति बनना।’

और फिर वह मुस्कुराते हुए धीरे-धीरे आईने से गायब हो गए। सुधांशु को जैसे लगा जैसे उसके मन की जो आशंकाएं और चिन्ताएं थीं वह विलुप्त हो गईं। वह भरी हुई आंखों से बिस्तर पर लेट गया। पापा का स्वेटर और शाल उसकी ताकत बन गए थे। ‘पापा के पास होने का अहसास उसके मन में अजीब सी शक्ति और जीवन भर गया था और वह धीमे से मुस्कुराते हुए भीगी पलकें लेकर न जाने कब सो गया।’

आनेवाली सुबह निश्चित ही उसके लिए नयी सुबह होने वाली थी, आशाओं और हौंसलों से भरी। सुबह जब वह उठा तो उसने $खुद को आईने में निहारा और मुस्कुराने लग पड़ा। इस बार उसकी आंखों में आंसू नहीं थे, एक चमक थी।  उसने शाल और स्वेटर को उतार कर बड़े प्यार से सम्भाल कर अपनी अलमारी में रख दिया। आज उसके जीवन की नयी शुरुआत हुई थी। पापा का आशीर्वाद और प्यार अब सदा उसके साथ रहेगा।

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