duryodhan-vadh - mahabharat story
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कर्ण के उपरांत दुर्योधन ने राजा शल्य को कौरवों का सेनापति नियुक्त किया, परंतु वे युद्ध करते हुए युधिष्ठिर के हाथों मारे गए। सहदेव ने शकुनि का वध कर दिया। अब दुर्योधन अकेला रह गया था। गांधारी पहले ही कुरुक्षेत्र में पहुंच गई थी। उसने जब दुर्योधन को असहाय और अकेला देखा तो चिंतित हो गई। भीम द्वारा दुर्योधन की जंघा तोड़ने की प्रतिज्ञा ने भी उसे भयभीत कर दिया था। अंत में उसने अपने पुत्र को बचाने का निर्णय किया।

उसने उसी समय दुर्योधन को अपने पास बुलाया और कहा-“वत्स! पतिव्रत से अर्जित मेरा संपूर्ण तेज मेरी आंखों में एकत्रित है। तुम स्नान करके नग्नावस्था में मेरे पास आओ। मैं अपनी आंखों की पट्टी खोलकर तुम पर दृष्टि डालूंगी। इससे तुम्हारा शरीर वज्र के समान कठोर हो जाएगा।”

दुर्योधन उसी समय नदी-तट पर गया और स्नान करके नग्नावस्था में ही गांधारी के शिविर की ओर चल पड़ा।

श्रीकृष्ण को गांधारी की योजना के विषय में पता चल गया था, अतः वे उसके मार्ग में आ गए और उसकी भर्त्सना करते हुए बोले-“दुर्योधन! माता के समक्ष इस प्रकार जाते हुए तुम्हें लज्जा नहीं आती। कम-से-कम अपने शरीर के कुछ भागों को तो ढक लो।”

दुर्योधन श्रीकृष्ण की बातों में आ गया। उसने अपनी कमर और जंघा को केले के पत्तों से ढक लिया।

जब गांधारी ने आंखों की पट्टी खोलकर दुर्योधन पर दृष्टिपात किया तो उसका संपूर्ण शरीर वज्र के समान अभेद्य हो गया, परंतु केलों के पत्तों से ढके होने के कारण जंघा का भाग पूर्ववत् ही रहा। गांधारी ने आज्ञा की अवहेलना करने पर दुर्योधन को बहुत डांटा, परंतु अब क्या हो सकता था। दुर्योधन समझ गया कि श्रीकृष्ण ने उसके साथ छल किया है। तब वह भयभीत होकर एक सरोवर में जाकर छिप गया।

दुर्योधन को पराजित किए बिना पांडव विजयी नहीं हो सकते थे, इसलिए वे उसे अनेक स्थानों पर ढूंढने लगे। अंत में एक गुप्तचर की सूचना पर वे उस सरोवर के तट पर पहुंचे, जहां दुर्योधन छिपा हुआ था। भीम ने दुर्योधन को गदा-युद्ध के लिए ललकारा। ललकार सुनकर दुर्योधन सरोवर से बाहर निकला।

शीघ्र ही दोनों में भयंकर युद्ध प्रारंभ हो गया। दुर्योधन का शरीर वज्र के समान हो गया था, इसलिए भीम के प्रहारों का उस पर कोई असर नहीं हो रहा था। तब श्रीकृष्ण ने अपनी जंघा पर हाथ मारकर भीम को उनकी प्रतिज्ञा याद करवाई। भीम ने दुर्योधन की बाईं जंघा पर गदा से भीषण प्रहार कर उसे तोड़ डाला। असीम पीड़ा से बिलखते हुए दुर्योधन धरती पर जा गिरा।

इस प्रकार भीम ने अपनी प्रतिज्ञा पूरी की। दुर्योधन के पराजित होते ही पांडव विजयी हुए।