भीम की गदा से दुर्योधन की जंघा टूट चुकी थीं और वह अंतिम सांसें गिन रहा था। तब अश्वत्थामा शीघ्रता से उसके पास पहुंचा। दुर्योधन की दुर्दशा देख वह क्रोध से भर उठा। उसने प्रतिज्ञा की कि आज रात ही वह सोते हुए पांडवों को मार डालेगा। अश्वत्थामा की प्रतिज्ञा सुनकर मरता दुर्योधन प्रसन्न हो उठा। उसने उसी समय अपने रक्त से उसका तिलक किया और कहा-“मित्र ! जाओ, अपनी प्रतिज्ञा पूरी करो।”
अश्वत्थामा सीधे अपने मामा कृपाचार्य के पास गया और उन्हें अपनी योजना बताई। कृपाचार्य ने योजना की निंदा करते हुए उसे ऐसा दुष्कर्म करने से रोकने का प्रयास किया, किंतु उस पर खून सवार था। वह अकेला ही पांडवों के शिविर की ओर चल पड़ा। अंतः में विवश होकर कृपाचार्य भी कतवर्मा को साथ लेकर उसके पीछे चल दिए।
रात्रि का समय था। पांडव-पक्ष के सभी योद्धा गहरी नींद में सोए हुए थे। तभी वहां अश्वत्थामा, कृपाचार्य और कतवर्मा उनके काल बनकर आ पहुंचे। सर्वप्रथम अश्वत्थामा ने धृष्टद्युम्न के शिविर में जाकर उसका मस्तक काट डाला। फिर शिखंडी का वध कर दिया। इस प्रकार उसने एक-एक कर सभी योद्धाओं को मार डाला।
अंत में वह पांडवों के शिविर में गया। उस दिन पांडव और द्रौपदी श्रीकृष्ण के साथ कहीं गए थे। उनके स्थान पर द्रौपदी के पांच अवयस्क पुत्र-प्रतिबंध्य, सुतसोम, श्रुतकीर्ति, शतानीक और श्रुतकर्मा सो रहे थे। क्रोध के वेग में अश्वत्थामा ने उन्हें मार डाला। तत्पश्चात् शिविरों को आग लगाकर दुर्योधन के पास लौट आया।
पांडव-पुत्रों की मृत्यु का समाचार सुनकर दुर्योधन अत्यंत प्रसन्न हुआ और उसने शांतिपूर्वक प्राण त्याग दिए।