Veer Abhimanyu - mahabharat story
Veer Abhimanyu - mahabharat story

महाभारत के युद्ध में पांडवों को पराजित करने के लिए द्रोणाचार्य ने चक्रव्यूह की रचना की थी। इस चक्रव्यूह के सात द्वार थे। द्रोणाचार्य जानते थे कि अर्जुन के अतिरिक्त इस चक्रव्यूह को दूसरा कोई भेद नहीं सकता। अतः उनकी आज्ञा से कुछ राजा अर्जुन से युद्ध करते हुए उन्हें युद्धक्षेत्र से दूर ले गए। अर्जुन की अनुपस्थिति में पांडवों के समक्ष गंभीर समस्या उत्पन्न हो गई। उनमें से कोई भी चक्रव्यूह भेदना नहीं जानता था। तब अर्जुन-पुत्र अभिमन्यु ने चक्रव्यूह भेदन की आज्ञा मांगी। अभिमन्यु अभी किशोर था और युधिष्ठिर उसे युद्ध में नहीं भेजना चाहते थे, परंतु उसे आज्ञा देने के अतिरिक्त उनके पास कोई और उपाय नहीं था। उन्होंने भीम आदि योद्धाओं को उसके साथ कर दिया।

अभिमन्यु चक्रव्यूह को भेदना भली-भांति जानता था। उसने यह विद्या अपनी माता के गर्भ में सीखी थी। श्रीकृष्ण और युधिष्ठिर का आशीर्वाद लेकर वह युद्धक्षेत्र की ओर चल पड़ा।

एक किशोर को चक्रव्यूह-भेदन के लिए आया देख जहां द्रोणाचार्य आश्चर्यचकित रह गए, वहीं दुर्योधन आदि कौरव-योद्धा उसका उपहास उड़ाने लगे परंतु अभिमन्यु निडर भाव से युद्धक्षेत्र में आ डटा। उसके तीक्ष्ण बाणों से चारों ओर हाहाकार मच गया। चक्रव्यूह के प्रथम द्वार पर जयद्रथ को खड़ा किया गया था। अभिमन्यु ने पल-भर में उसे धूल चटा दी। इस प्रकार चक्रव्यूह के प्रथम द्वार का भेदन कर वह आगे बढ़ गया। अभिमन्यु के जाने के बाद जयद्रथ पुनः मैदान में आ डटा और उसने अन्य पांडव योद्धाओं को आगे बढ़ने से रोक दिया।

दूसरे द्वार पर स्वयं द्रोणाचार्य खड़े थे, परंतु अभिमन्यु ने उन्हें भी पराजित कर दिया। उसने वीरता और शौर्य का ऐसा अद्भुत दृश्य प्रस्तुत किया कि कौरव-सेना को उनमें अर्जुन का भ्रम होने लगा। इस प्रकार एक-एक कर उसने छः द्वारों का भेदन कर डाला।

अभिमन्यु का पराक्रम देख दुर्योधन भयभीत हो गया। उसे लगने लगा कि अभिमन्यु चक्रव्यूह का भेदन कर उसे पराजित कर देगा। इसलिए वह कर्ण, दुःशासन आदि सात महारथियों के साथ चक्रव्यूह के सातवें द्वार की रक्षा करने लगा। सात महारथियों को देखकर भी अभिमन्यु विचलित नहीं हुआ। उसने कायर की भांति पीछे लौटने की बजाय वीर की भांति मरना अधिक उचित समझा। उसने निर्भयता से धनुष धारण किया और उनका सामना करने लगा। एक-एक कर उसने सभी के अस्त्र-शस्त्र काट डाले। तब दुर्योधन ने सभी को एक साथ अभिमन्यु से युद्ध करने की आज्ञा दे दी। छः महारथी अभिमन्यु पर टूट पड़े।

अभिमन्यु ने वीरतापूर्वक युद्ध किया, परंतु धीरे-धीरे उसके अस्त्र-शस्त्र समाप्त होने लगे। अंततः द्रोण, कप, अश्वत्थामा, बृहद्वल और कतवर्मा‒इन छः महारथियों ने मिलकर एक अकेले योद्धा का वध कर डाला।