Hindi Story: शर्मिला आज अपने मायके आयी थी अपने छोटे भाई की शादी में क्योकिं शादी ब्याह का घर था तो सभी रिश्तेदार आ गए थे, शर्मिला की सहेली विभा और उसके पति के आने का समय हो रहा था, पूरे घर में ख़ुशी का माहौल था, बस शर्मिला थोड़ी परेशान थी… कारण था उसके अंदर हीन-भावना!
शर्मिला की शादी बहुत जल्दीबाजी में हुई थी १० साल बड़े लड़के से, मम्मी की बीमारी में, बड़ी बेटी होने के कारण सभी ने फैसला लिया के बेटी का जल्दी से हाथ पीला कर दिया जाए..
अभी बारहवीं ही तो कर रही थी शर्मिला, और पहला रिश्ता मिलते ही आनन-फानन में शादी तय कर दी गई, या कहें,निपटा दी गई! शर्मिला और उसके पति का कोई जोड़ नहीं था, इसी के चलते शर्मिला हीन भावना का शिकार हो गई, शर्मिला मचलती हुई लहर सी अल्हड़ और गौरव शांत समुंदर, जिसमें मिलकर लहर मचलना और इठलाना भूल जाती है!
उम्र का अंतर,स्वभाव का अंतर…मैं एक डांसर थिरकती हुई, सुर लय ताल में डूबी, और – गौरव हिंदी के प्रोफेसर…पता नहीं कौन सी दुनिया में खोए रहने वाले! शर्मिला अब एक पुत्र की माँ हो चुकी थी, लेकिन गौरव से लगाव ना था शायद कभी न होगा, और अब इसमें और दूरी को बढ़ाने लिए शर्मिला की सहेली विभा का पति, अभिषेक जो बेहद हँसमुख, गुनगुनाता हुआ लड़का बिल्कुल शर्मिला के सपनों का राजकुमार,,
शर्मिला की सहेली विभा और उसके पति आ चुके थे लॉन में बैठे ही थे,
इतने में विभा ने बोला,, ‘कितनी पतली हो गई हो शर्मिला”.. जीजाजी कहाँ हैं, बेटा कहाँ है” और उठ के गले लगने लगी उसके पीछे-पीछे अभिषेक भी था, हँसता -गुनगुनाता… मैने कहा,” अब तुम आ गये हो,अब रौनक होगी!”
हाँ अभिषेक जैसा ही तो पति चाहिए था मुझे, आखिर क्या कमी थी मुझमें जो मुझे गौरव मिला..
शाम को सब बैठे हँसी-मज़ाक कर रहे थे, जहाँ अभिषेक की हाज़िर जवाबी और चुटकुले माहौल को उमंग से भर रहे थे, गौरव एक नपी-तुली मुस्कुराहट फेंक कर बेटे के साथ खेलने में व्यस्त थे…
” शर्मिला दीदी,एक डांस हो जाए…” मेरे भाई ने मुझे खींचा, गौरव को भी बुलाने लगा, इन्होंने दूर से ही हाथ जोड़कर मना कर दिया… कुछ लोगों की फुसफुसाहट मेरा मन और खिन्न कर गई,”शर्मिला के पति बहुत घुरमुहेँ टाइप के लगते हैं…” मैं पलटने वाली ही थी कि विभा के पति अभिषेक ने हाथ पकड़कर रोक लिया,” मैं हूँ ना आपका डांस पार्टनर”…उस दिन मैं इतना खुलकर नाची, हालांकि मुझे अपनी सहेली की किस्मत से थोड़ी ईर्ष्या भी हुई।
सबके बहुत कहने पर गौरव गाना गाने के लिए तैयार हुए, मेरी तो हालत ही खराब थी…आज तो नाक कटवा देंगे ये,, लेकिन मैं हतप्रभ रह गई?? जब इन्होंने गाना शुरू किया,” वैसे तो तेरी ना में भी मैंने ढूँढ़ ली अपनी खुशी…अगर तू हाँ कहे, तो बात होगी और भी…” सब मन से सुन रहे थे,गाना खत्म होते ही पूरा आँगन तालियों से गूंज उठा! मम्मी ने आकर इनकी नज़र उतारी तो गौरव शरमाने लगे,आज मुझे ये कुछ अलग लग रहे थे! सभी अपने रूम में सोने चले गए और
हम दोनों सहेलियाँ छत पर अपने- अपने जीवन की बातें कर रहे थे..!!
कितने सालों बाद हम मिले थे!,मैं बहुत खुश थी, लेकिन विभा कुछ सोच रही थी,” यार शर्मिला, तुम्हारे और जीजाजी के बीच सब सही चल रहा है ना? मतलब…”
मैंने डर के लंबी साँस लेकर कहा,” हाँ, तुम्हारे जैसा परफेक्ट पति तो नही है यार,.. पर क्यों पूछ रही हो?”
विभा रोने लगी,” आज जब जीजाजी गा रहे थे, मुझे लगा तुम्हारे लिए गा रहे थे… मुझे लगा तुमने मन स्वीकारा नहीं है, ऐसा है क्या?” मैं चौंक गई, इसने कैसे समझ लिया…जो बहुत अंदर की बात है!
मैंने खुलकर बता ही दिया,” यार विभा! हमारे बीच उम्र का फर्क है… हमारे प्रोफेसर साहब कुछ ज़्यादा ही गंभीर हैं…क्या बोलूँ,,,तुम नहीं समझोगी, तुम लोग तो ‘लवर हो!”
विभा मेरे कंधे पर सिर रखकर चुपचाप बैठी रही,फिर बोली ” यार शर्मिला, जिसको जो नहीं मिलता है… वही अच्छा लगता है! जीजाजी की गंभीरता उन्हें लाखों में एक बनाती है, तुम्हें ये जो अभिषेक की चंचलता,स्टाइल पसंद है ना… मुझसे पूछ, कितना मुश्किल होता है कभी-कभी!”
मैं उसका मुँह ताक रही थी,ऐसा कैसे हो सकता है…, उसने बात आगे बढ़ाई,” अपने ही सजने-सँवरने से इनको फुर्सत नहीं मिलती, कभी मेरी ओर ध्यान नहीं देते..मैं बुखार से मर जाऊँ कभी हाल तक नही पूछता अभिषेक,..शर्मिला! मैंने देखा है, जीजाजी तुमको खुश देखना चाहते हैं…तुम्हारा ध्यान रखते हैं किसी काम में रोक-टोक नहीं, इतनी स्टेज परफॉर्मेंस करती हो तुम,ये सब जीजाजी के सहयोग के बिना संभव है क्या ?….हाँ, आ रही हूँ… अभिषेक नीचे से चिल्ला रहा था वो बेचारी भागती हुई नीचे गई! मैं घंटो वहीं छतपर उसी तरह बैठी रह गई…एक एक घटना मेरे सामने घूम रही थी, गौरव का प्यार,देखभाल, समझदारी … कैसे मुझे उनसे लगाव न हुआ ! आँखें और मन दोनों रो रहा था…
सुबह होते ही मैं बदल चुकी थी, पूरा घर फूलों
से सजाया जा रहा था…महक मेरे अंदर भर आई थी। गौरव को चाय दी, इनके पास बैठी रही..। ,.. इनके पास आकर कंधे पर सिर टिका दिया, गौरव हैरान होकर बोले आज क्या बात है…
” आप कल कह रहे थे ना,अगर मैं हाँ कहूँ तो बात होगी और भी… आज बस वही बात है!” गौरव ने खुशी से मेरा हाँथ पकड़ा और मेरा लगाव बढ़ता गया.
लगाव-गृहलक्ष्मी की कहानियां
