Mussoorie, Uttarakhand
Mussoorie, Uttarakhand

Hindi Story: विनोद अपनी कार से सर्द रात में शहर से दूर एक सुनसान सड़क पर जा रहा था। रास्ते में एक छोटा सा कस्बा भी पड़ता था। विनोद सड़क पर गहरे कोहरे में भी कार दौड़ा रहा था। तभी ना जाने कैसे उसकी कार का
टायर पंचर हो जाता है और संभालते हुए भी कार एक पेड़ से टकरा जाती है। विनोद का सर बराबर में शीशे
पर ज़ोर से लगने की वजह से वह बेहोश हो जाता है।
कुछ देर बाद उसको होश आता है तो वह एक मामूली से घर के एक कमरे में पलंग पर लेटा था। वह
आसपास देखता है तो एक आदमी और एक औरत वहां खड़े थे। विनोद उठने की कोशिश करता है तो उसे
तेज़ी से चक्कर आते हैं। वह आदमी कहता है, “ अरे शंकर बेटा तुम आराम करो।” “शंकर!!! पर मेरा नाम तो
विनोद…. सोचते-सोचते विनोद फ़िर से बेहोश हो जाता है।

Also read: बांझपन की एक बड़ी वजह है सीएएच: Infertility Reason

अगले दिन वह गहरी नींद से जागता है तो उसी आदमी और औरत को देखता है और पूछता है, “आप लोग
कौन है? मैं कहां हूं? आदमी चौंक कर कहता है, “तुम यह क्या पूछ रहे हो शंकर बेटा? मैं तुम्हारा काका और यह
काकी हैं।” “मेरा नाम शंकर है ???… विनोद….” विनोद सोच सोचकर बोलता है। “क्या कह रहे हो बेटा, हमें तो
भूल गए अपना नाम भी याद नहीं।” “ मेरा घर लखनऊ…” “ लखनऊ नहीं आगरा है तुम्हारा घर बेटा” आदमी
ज़ोर देकर कहता है। “क्या हो गया बेटा? कैसी बहकी बहकी बातें कर रहे हो?” विनोद के सर में तेज़ दर्द होने
लगता है। वह सिर पकड़ कर कहता है, “क्या कुछ खाने को मिल सकता है?” “हां बेटा तुम्हारा घर है” काकी
कहती है। विनोद उधेड़बुन में खाना खाता है और काका की दवाई खाकर सो जाता है।
दो-तीन दिन तक भरकर दवाइयां, खाना और सोना.. बस यही विनोद की दिनचर्या थी। करीब पांचवें दिन
विनोद ठीक सा महसूस करता है। काकी कहती है, “तुम अच्छे लग रहे हो। आज शाम को सबको दावत देते हैं,
पूरे कस्बे को बुलाते हैं, क्यों जी? काका जवाब देते हैं, “हां! हां! ज़रूर।”
शाम को काका-काकी विनोद को अपना भतीजा शंकर कहकर सब से मिलवाते हैं। इसी तरह कभी घर में तो
कभी बाहर कहीं, काका काकी विनोद को सबसे बहुत खुश होकर मिलवाते थे, “हमारा भतीजा शंकर बहुत
सालों बाद आया है।”
विनोद को लेकिन बार-बार एक बात परेशान करती थी…..उसका कोई सामान नहीं था, कोई कागज़ात नहीं
जिससे उसकी पहचान पता चले। ना आधार कार्ड न ही कोई लाइसेंस, यहां तक की उसका फ़ोन भी नहीं
मिला था। पूछने पर काका काकी ने यही बताया था, “ तुम कागज़ात तो कोई लाए नहीं थे और हमारे पूछने
पर तुमने कहा था कि सब फ़ोन में है। अब यह तकनीकी बातें तो हम नहीं समझते। रही बात फ़ोन की तो एक
बार तुम आंगन में गिर गए थे और तुम्हारा फ़ोन नाली में गिरकर बह गया था।”

विनोद यही सोचता कि इतने सालों बाद वो इतने दिनों के लिए आया है तो उसका कुछ तो सामान होना
चाहिए था ना। सिर्फ़ कपड़ों के अलावा कुछ भी नहीं है और वह भी पूरे तरीके से उसके नाप की भी नहीं
लगते।
जब भी विनोद नया फ़ोन लेने के लिए कहता तो काका कहते, “बिना कागज़ के नया फ़ोन मिल नहीं पाएगा।
लेकिन तुम चिंता मत करो, पास में दुकान है वहां से फ़ोन मिला लेना। किसको फोन करना है तुम्हें?” विनोद
यही सोचने लगता कि आखिर वह किसको फ़ोन करेगा? उसे कुछ याद ही नहीं आ पा रहा था। जब थोड़ा ज़ोर
डालता तो सर में दर्द होने लगता।
एक दिन विनोद दिन में सो रहा था कि उसकी नींद खुल जाती है। उसको थोड़ी भूख और प्यास लगती है तो
वह पलंग से उठकर कमरे से बाहर आता है। घर में देखता है तो काकी अपने कमरे में गहरी नींद सो रही थीं
लेकिन काका कहीं नज़र नहीं आ रहे थे। वह बाहर जाने के लिए दरवाज़ा खोलने लगता है तो वह बाहर से बंद
था। “दरवाज़ा बाहर से बंद क्यों है?” विनोद को थोड़ा ताज्जुब्त होता है पर वह नज़र अंदाज़ कर देता है। “क्या
पता काका पास में कहीं ग‌ए होंगे। हम लोग सो रहे थे इसलिए बाहर से बंद कर दिया होगा।
वह रसोई में जाकर पानी पीता है और कुछ खाने के लिए अलमारी खोलकर देखने लगता है। वहां उसे कुछ
दवाइयां दिखती हैं। वो वही दवाइयां थी जो काका काकी उसे देते थे। विनोद दवाइयां उठा कर पढ़ने लगता है
तो उसका दिमाग चकराने लगता है क्योंकि उसको रासायनिक विज्ञान का ज्ञान था तो वह देखते ही समझ
जाता है कि यह दवाइयां तो बेहोशी की हैं। वह सब दवाईयां दिमाग को कमज़ोर कर रही थी और उसको नशे
में रखती थीं ताकि उसको कुछ याद ना रहे।
विनोद के मन में वैसे ही अपनी शख्सियत को लेकर हमेशा एक वहम सा रहता था पर जब भी वह कुछ
सोचता तो सब कुछ धुंधलाने सा लगता था और काका के दवाई देने के बाद तो वह घंटों गहरी नींद सो जाता
था।
वह अलमारी में और ढूंढता है तो उसको क्लोरोफॉर्म दिखती है जिससे आदमी थोड़ी देर के लिए बेहोश हो
जाता है। काकी के खांसने की आवाज़ सुनकर विनोद पहले तो छिप जाता है फिर चुपके से काकी को बहुत
थोड़ी सी दवाई सुंघा देता है ताकि उनको और काका को कोई शक ना हो। उसके बाद वह घर में छानबीन
करने लगता है। ढूंढते हुए उसके हाथ में एक बैग आता है। वो उसे खोल कर देखने लगता है तो उसमें कुछ
कागज़ात थे जिस पर विनोद की फ़ोटो लगी थी पर जानकारी किसी शंकर के नाम पर थी। उसे अपनी एक
फ़ोटो अलग से भी पड़ी दिखती है। बैग में उसे लैपटॉप वगैराह दिखते हैं। बैग देखकर उसके मुंह से निकलता
है, “ मेरा….मेरा बैग!!!”

अचानक से जैसे उसे कुछ याद आया और उसका हाथ बैग के अंदर एक बहुत छोटी गुप्त जेब में जाता है।
जब वह हाथ बाहर निकालता है तो उसके हाथ में एक आधार कार्ड था जिस पर उसका फ़ोटो और उसका
नाम लिखा था। विनोद की आंखें फटने लग जाती हैं और सर घूमने लग जाता है। वह समझ नहीं पाता है कि
वह कौन है? क्या चक्कर है? तभी उसको खिड़की से दूर से काका आते दिखते हैं।
विनोद फ़टाफ़ट से बैग जगह पर रख देता है और अपने कमरे में आकर पलंग पर सोने का नाटक करता है।
काका अंदर आते हैं और काकी को उठाते हैं, “ क्या हुआ, उठ जाओ। आज कितना सो रही हो? काकी उठ
कर कहती है, “पता नहीं क्यों, सर भारी हो रहा है।” काका गुस्सा करते हैं, “ कल जो ठूंस के आइसक्रीम खाई
थी ना उसी का असर है। अब चलो मैं चाय बना देता हूं। वह लड़का तो सो रहा है शायद। कल कस्बे में जलसे
के बाद इसका काम कर देंगे और फ़िर हम….कहते-कहते दोनों ज़ोर-ज़ोर से हंसते हैं।
विनोद वैसे ही लेटा रहता है। रात में दोनों के खाने में दवाई मिला देता है और अपनी दवाई मौका
देखकर जेब में रख लेता है। रात होने से पहले ही काका काकी गहरी नींद सो जाते हैं। विनोद धीरे से घर से
बाहर निकलता है। उसने कुछ पैसे भी चुरा लिए थे। वह सीधा थाने जाता है। पुलिस की मदद से कंप्यूटर पर
आधार कार्ड से शंकर और अपने बारे में पूरी जानकारी निकलवाता है।
इंस्पेक्टर विनोद को उस रात वहीं रुकने के लिए कहते हैं। अगले दिन सुबह-सुबह ही वह सब काका काकी
को घर जाकर पकड़ते हैं। थोड़ा डराने धमकाने से ही दोनों पति-पत्नी सच बोलते हैं, “हम दोनों ने पूरी ज़िंदगी
ऐश काटी। ना तो मेहनत से पैसा कमाया न ही जो मिला उसको संभाल के रखा। इस वक्त हमारे पास बहुत
कम पैसे बचे थे। मेहनत हमारे मन की बात नहीं। इसी बात से परेशान थे कि आगे का खर्चा कैसे चलेगा कि
हमारे घर के दरवाज़े पर एक रात एक लड़का मदद मांगने आया। उसको रात बिताने के लिए जगह चाहिए
थी। यहां पास में कोई होटल भी नहीं था। पहले तो हमने मना किया फिर जब उसने हमें कुछ पैसे देने के लिए
अपना बैग खोला तो उसमें लाखों रुपए देखकर हमारे मन में लालच आ गया। हमने उसको अपने घर में रखा
और प्यार मोहब्बत दिखा कर सारी जानकारी ले ली कि वह बहुत अमीर लड़का अपनी करोड़ों की वसीयत
किसी अनाथ आश्रम को दान कर संन्यास ले रहा है। हमने प्लान बनाया कि उसको मार देते हैं और सबको
दिखा देंगे कि यह प्रॉपर्टी हमें हमारे भतीजे ने दी है। हमने उसे मार दिया और लाश नदी में बहा दी। लेकिन हमें
नहीं पता था कि बिना लाश देखे कानूनी तौर पर हमें वसीयत नहीं मिलेगी। इसलिए जब यह विनोद हमारे घर
आया तो इसकी कद-काठी उस लड़के शंकर जैसी थी। हमने विनोद को सारी दुनिया के सामने शंकर कहकर
मिलाया क्योंकि किसी ने भी शंकर को नहीं देखा था। हमने उसे घर के अंदर ही रखा था।‌
हमारा यही मतलब था की हम इसे मार देंगे और इसको शंकर दिखा कर सारी प्रॉपर्टी अपने नाम करवा लेंगे।

विनोद कहता है, “इसलिए मेरी फोटो कागज़ात पर लगाई, सबसे मिलवाया ताकि सब मुझे शंकर समझें और
दवाई देते ताकि मैं पूरी तरीके से याददाश्त भूल जाऊं और एक दिन बेहोशी में मर जाऊं।” पुलिस कहती है, “
तुम्हें शर्म आनी चाहिए पहले एक संत आदमी का खून करा अब इसको मारने चले थे। तुम्हें क्या लगता है
कानूनी कार्रवाई होती तो तुम पकड़े नहीं जाते। तुम्हें तो फांसी होनी चाहिए, चलो।” पुलिस उन दोनों को ले
जाती है।
विनोद वहीं खड़ा सोचता है, “वह एक सर्द रात कितनी अनोखी रात साबित हुई मेरे लिए।