आखिरी निशानी-गृहलक्ष्मी की कहानियां
Aakhari Nishani

Hindi Story: “गुड्डू अरे गुड्डू जरा एक बाल्टी पानी लेकर आना , देखो तो कितनी कीचड़ लगी हुई है, पता नहीं तुम कैसे गाड़ी चलाते हो ? अरे जरा आराम से धीरे – धीरे चलाया करो, मालूम है तुम्हारे दादा जी की यह ‘ आखिरी निशानी ‘ है फिर भी कितनी बार समझाया है अभी कल ही साफ की थी ” अपने घर के पीछे बने गैरेज में विनोद जी अपने जन्मदिन के अवसर पर पिता जी द्वारा उन्हें भेंट की हुई गाड़ी पर लगी कीचड़ देखकर अपने बेटे गुड्डू पर गुस्सा कर रहे थे। गुड्डू एक बाल्टी पानी लेकर गैरेज में पहुंच जाता है और कहता है – ” पिता जी हम गाड़ी आराम से ही चलाते हैं , मगर सड़कों पर इतने बड़े – बड़े गड्ढे हैं और यह बारिश का मौसम इसलिए थोड़ी – सी कीचड़ लग गई गाड़ी पर । विनोद जी पानी से कीचड़ साफ करने लग जाते हैं और कहते हैं – ” अरे कोई बात नहीं गुड्डू बेटा , बस ध्यान रखा करो “। गुड्डू कहता है – ” जी, पिता जी ” और वहां से चला जाता है। गाड़ी साफ करके विनोद जी , गैरेज का गेट लगाकर और बाल्टी लेकर घर के अंदर चले जाते हैं।

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विनोद जी खिड़की के पास खड़े होकर बाहर का नजारा देखने लगते हैं , तभी उनकी पत्नी कुसुम जी चाय और पकौड़े लेकर वहां आ जाती हैं और दोनों सोफे पर बैठकर चाय – पकौड़े खाने लगते हैं। कुसुम जी विनोद जी से पूछती हैं – ” आप गुड्डू को इतना क्यों डांटते हैं ? इतना तो अच्छा है मेरा बच्चा “। विनोद जी कहते हैं – ” कुसुम जी मैं उसे डांटता नहीं हूं। बस उसकी चिंता होती है मुझे “। कुसुम जी पूछती हैं – ” चिंता किसकी , गुड्डू की या फिर पिता जी की ” आखिरी निशानी ” उस गाड़ी की , बताइए ? विनोद जी कहते हैं -” दोनों की कुसुम जी, आपको तो सब पता है , यही एक ” आखिरी निशानी ” है मेरे पिता जी की मेरे पास “। कुसुम जी कहती हैं – ” हम कुछ और सोचते हैं , क्योंकि वह गाड़ी अगर चलेगी नहीं तो वैसे भी खराब हो ही जायेगी। गाड़ी चलेगी तो गंदी भी होगी और खराब भी होगी , उसे साफ भी करना होगा और मरम्मत भी करानी होगी। आप अगर ऐसे व्यवहार करेंगे तो कैसे काम चलेगा । हमें इस गाड़ी के बारे में कुछ तो सोचना ही होगा “। विनोद जी कुसुम जी की तरफ कुछ पल देखने के बाद खिड़की से बाहर देखने लगते हैं।

चाय – पकौड़े खाने के बाद विनोद जी तैयार होकर दफ्तर के लिए निकलने लगते हैं, तभी गुड्डू कॉलेज जाने के लिए अपने कमरे से बाहर आ जाता है, विनोद जी कहते हैं – ” गुड्डू तुम मुख्य दरवाजा खोल देना मैं गाड़ी निकालता हूं और बैग लेकर गैरेज की ओर चल देते हैं। गुड्डू मुख्य दरवाजे को खोल देता है और गाड़ी का इंतजार करने लगता है। कुसुम जी रसोई घर में कुछ काम करने में व्यस्त हो जाती हैं। विनोद जी गैरेज में जाकर गाड़ी में अपना बैग रखकर उसमें बैठ जाते हैं और अपनी पुरानी यादों में खोने लगते हैं उनका प्यारा बचपन उनके पिता जी की यादें , उनकी शिक्षा और उनका यह दिया हुआ प्यारा तोहफा यह गाड़ी , तभी उनके मोबाइल फोन में उनके ऑफ़िस का कॉल आता है जिसे उठाकर वह कहते हैं – ” जी बस बीस मिनट में पहुंचा “। ऐसा बोलकर वह गाड़ी को मुख्य दरवाजे पर लेकर आ जाते हैं , गाड़ी में गुड्डू बैठ जाता है और वह उसे कॉलेज छोड़कर दफ्तर के लिए निकल जाते हैं।

दफ्तर पहुंचकर विनोद जी अपने कार्य करने में लग जाते हैं मगर कुसुम जी की बातें उन्हें बार – बार याद आ रही थीं। वह खुद से ही पूछने लगते हैं – ” पिता जी ने ये गाड़ी मुझे चलाने के लिए मेरे जन्मदिन पर मुझे दी थी, उसे संभालकर रखने की जिम्मेदारी मेरी है मगर पिता जी ने मेरी खुशी के लिए मुझे दी थी, मुझे और मेरे परिवार को दुखी करने के लिए नहीं दी थी। मैं उस गाड़ी को चलाने के लिए भी बार – बार सोचता हूं , वह गाड़ी है मेरे पिता जी की ” आखिरी निशानी ” मगर यह मेरे लिए तो सौभाग्य की बात है मुझे उसे चलाना चाहिए। पिता जी की भावनाओं को समझना चाहिए , वह मुझे उस गाड़ी को चलाते हुए देखना चाहते हैं, उस गाड़ी को गैरेज में बंद करके रखे हुए नहीं देखना चाहते और मैं उस गाड़ी को बंद करके रखे हुए हूं। जिससे वह खराब न हो जाए, गंदी न हो जाए। अपने परिवार को साथ लेकर कहीं घुमाने भी नहीं ले जाता हूं। किसी तोहफे के साथ भला कोई ऐसा व्यवहार करता है , तोहफा तो खुशियां और प्यार लाता है, परेशानी और दुख और चिंता नहीं लाता है।

शाम हो चुकी थी कुसुम जी दरवाजे पर खड़ी होकर इंतजार कर रही थीं , तभी गुड्डू पैदल आता दिखाई देता है। गुड्डू को पानी देकर वह उसके पिता के बारे में पूछती हैं ? तभी गाड़ी के तेज हॉर्न की आवाज आती है, दोनों बाहर आकर देखते हैं तो हैरान हो जाते हैं , विनोद जी सभी को आने का इशारा करते हैं, पूरी गाड़ी में गुब्बारे और रंगीन फीते बंधे हुए थे, उन दोनों को कुछ समझ नहीं आता है, वह गाड़ी के पास पहुंच जाते हैं। विनोद जी कहते है – ” कुछ मत सोचो और ना ही कुछ बोलो बस गाड़ी के अंदर बैठो और लॉन्ग ड्राइव पर चलो आज मेरी तरफ से सबको पार्टी। सभी गाड़ी के अंदर बैठ जाते हैं और गाड़ी चल पड़ती है। कुसुम जी पूरे रास्ते विनोद जी को देखकर मुस्कुराती ही रहती हैं , विनोद जी उनका हाथ पकड़कर अपनी आंखों से कहते हैं – “पिता जी की ” आखिरी निशानी ” मुझे देने के लिए और मुझे उनके होने का एहसास कराने के लिए धन्यवाद”। पूरा परिवार आज घर के एक बड़े व्यक्ति के आंचल में खूबसूरत पलों का एहसास कर रहा था।