Girl Freedom Story: ट्रिंग ट्रिंग ट्रिंग, ट्रिंग ट्रिंग ट्रिंग घर के टेलीफोन पर लगातार बज रही घंटियों की आवाज सोफे पर बैठकर अपने दफ़्तर का काम कर रही करिश्मा नजर अंदाज कर रही थी, रसोई घर में खाना बना रही मां करिश्मा से कहती हैं – बेटा करिश्मा फोन पर देख ले कौन है ? कब से बज रहा है? करिश्मा मां से कहती है – जी, मां अभी देखती हूं। करिश्मा फोन को उठाती है और पूछती है – जी कहिए कौन बोल रहा है ?
सामने से आवाज आती है “अरे करिश्मा बेटा मैं तुम्हारी गुड्डी बुआ बोल रही हूं आगरा से,पहचाना ? ” इतना सुनते ही करिश्मा के पैरों तले जमीन खिसक जाती है, उसके हाथ से टेलीफोन छुटने लग जाता है। तभी मां की आवाज उसे रोक देती है ” अरे करिश्मा बेटा कौन है ? मुझे बताना जरा।
गुड्डी बुआ आगरा वाली यह बुआ करिश्मा की सबसे बड़ी बुआ हैं, जो हमेशा करिश्मा पर नजर रखती थीं और करिश्मा को हमेशा रोकती और टोकती रहती थीं, करिश्मा बुआ को कोई जवाब तो नहीं दे पाती थी मगर अपनी मां से बुआ की शिकायत भी नहीं कर पाती थी क्योंकि बुआ को कुछ कहना मतलब घर में चिंताओं को पूरे सम्मान के साथ निमंत्रण देना होता है। अरे करिश्मा बेटा कौन है? जरा बता तुझे क्या सांप सूंघ गया है, बता।
करिश्मा मां से कहती है – ” गुड्डी बुआ हैं आगरा वाली। फिर कुछ पल के लिए ख़ामोशी रहती है, जिसे मां करिश्मा के हाथों से फोन लेकर “गुड्डी दीदी चरण स्पर्श कहकर तोड़ती हैं”। करिश्मा सोफे पर डरी हुई अवस्था में बैठ जाती है। गुड्डी बुआ और मां की बातें टेलीफोन पर लगभग आधा घंटे तक चलती रहती हैं,इतनी देर तक करिश्मा की जान मानो अटक सी जाती है।” जी , गुड्डी दीदी चरण स्पर्श” कहते हुए मां टेलीफोन को रख देती है। सोफे पर डरी हुई बैठी करिश्मा के सिर पर मां हाथ रखते हुए पूछती है -” करिश्मा क्या हुआ? करिश्मा मां से पूछती है – ” मां क्या बुआ यहां आ रही हैं? मां कहती है – हां! सोमवार को यहां उन्हें कोई काम है, इसलिए वह यहां कुछ दिन तक रुकेंगी।
करिश्मा जो कुछ पल पहले बहुत खुश थी,अब चिंताओं में आ जाती है। वह मां के साथ थोड़ा – सा खाना खाकर अपने दफ्तर की ओर अपने वेतन से खरीदी हुई स्कूटी पर बैठकर चल पड़ती है। दफ्तर में अपने केबिन में बैठकर करिश्मा काम में व्यस्त हो जाती है मगर उसके चेहरे की खुशी जो पूरे दफ्तर में खुशबू की तरह फ़ैल जाती थी आज किसी मुरझाए हुए फूल की तरह नजर आ रही थी।
शाम को दफ्तर से घर जब करिश्मा आती है तो वह मां और पापा को बात करते हुए सुनती है कि बुआ को लेने कौन जायेगा? बुआ किसके कमरे में रुकेगी? तभी मां और पापा की नजर करिश्मा पर पड़ती है, पापा करिश्मा से कहते हैं – अरे करिश्मा बेटा ,कल अपने दफ्तर से लौटते हुए तुम गुड्डी बुआ को स्टेशन से साथ में लेकर घर आ जाना। ठीक है बेटा।
करिश्मा अपने कमरे में चली जाती है जहां वह बुआ के संग बिताए समय को याद करके खो जाती है। अगले दिन शाम को करिश्मा अपने दफ्तर से निकलकर स्टेशन से बुआ जी को साथ में लेकर घर की ओर अपनी स्कूटी से निकल पड़ती है। स्टेशन से घर की ओर पड़ने वाले पूरे रास्ते में करिश्मा बुआ जी की कठपुतली बनी हुई थी। बुआ जी कभी स्पीड बढ़ाने को कहती तो कभी खाली सड़क पर ब्रेक लगाने को कहती,कभी करिश्मा के बाल, तो कभी उसके कपड़ों पर सवाल करती। करिश्मा अपनी मां की चिंता में लग गई, ना जाने बुआ मां को क्या – क्या कहेंगी?
घर पहुंचकर करिश्मा ने बुआ जी को सोफे पर बिठाया, और मां को आवाज लगाई। मां बुआ जी आ गई हैं। मां और पापा ने सोफे पर बैठी हुई बुआ जी के चरण स्पर्श किए।
फिर मां ने बुआ जी को जलपान कराया और आराम करने के लिए मेहमान वाले कमरे में ले जाती हैं।
शाम को मां बुआ जी के लिए नाश्ता लेकर कमरे में चली जाती हैं,जहां बातों ही बातों में बुआ जी मां से करिश्मा की बुराईयां शुरु कर देती हैं। उसके कपड़े, उसके खुले बाल,स्कूटी तेज चलाना ,दफ्तर में काम करना , वह मां की परवरिश पर भी सवाल उठा देती हैं , मां बुआ जी को बुरा ना लगे इसलिए हां में हां मिलाती रहती हैं। इन बातों की आवाज करिश्मा के रूम में साफ – साफ आ रही थी , जिसे करिश्मा दुःखी मन से सुन रही थी। करिश्मा से नहीं रहा गया,वह दौड़ती हुई कमरे में दाखिल हो गई और मां की आंखों में छुपे आंसुओं को देखकर वह बुआ जी को जवाब देते हुए कहती है – ” बुआ जी आपका कोई अधिकार नहीं है, मेरी मां के आत्मसम्मान को ठेस पहुंचाने का। मेरी मां दुनिया की सबसे अच्छी मां है, वह आपकी सभी बातों को चुपचाप इसलिए नहीं सुन रही है, कि वह गलत है,वह सिर्फ आपके सम्मान के लिए चुपचाप सुन रही है। मगर आप उनके स्वाभिमान और उनके आत्मसम्मान को बार – बार अपमानित कर रही हो। आप बड़ी हो इसका यह मतलब तो नहीं है, कि आपसे कोई कुछ नहीं बोल सकता। इतना सुनने के बाद बुआ जी नाराज हो जाती हैं और कहती हैं – यह नतीजा होता है , बेटी को ज्यादा छूट देने का, अब देख लो।
पुरे घर में फिर सन्नाटा – सा छा जाता है। पूरी रात सभी घर वाले सिर्फ बुआ जी के बारे में ही सोचने लग जाते हैं, कि उनका अगला कदम क्या होगा? अगले दिन बुआ जी अपना सारा सामान लेकर बरामदे में आ जाती हैं और मां से कहती हैं – अच्छा ! सुनो मैं स्टेशन जा रही हूं, कोई साथ में आएगा या फिर मैं अकेले ही चली जाऊं। बुआ करिश्मा के साथ में स्टेशन पहुंच जाती है बुआ करिश्मा से माफी मांगती है, मां के आत्मसम्मान को बचाने के लिए धन्यवाद देते हुए गले लगाती हैं, करिश्मा की आंखों में आंसू बुआ के प्रति सम्मान का भाव बन जाते हैं।