उसका अंतिम संस्कार-गृहलक्ष्मी की कहानियां
Uska Antim Sanskaar

Hindi Kahani: गंगा घाट पर उगती सुबह की धूप में अनीता गोदी में एक बच्चे को लिए खड़ी है। साथ में उसके पति विनोद हैं जिनके हाथ में अस्थियां और राख का एक लोटा है। विनोद घाट के नीचे की सीढ़ी पर गंगा जी के पानी में पैर रखते हैं और लोटे से कपड़ा हटाते हैं। अनीता आगे बढ़कर बच्चे का हाथ लोटे पर लगवाती है और अस्थियां गंगा जी की लहरों में विलीन होने लग जाती हैं।

पंडित जी अनीता से पूछते हैं, “ आपने सब संस्कार बच्चे से कराए हैं उसकी मां के लिए। मां पिता तो आप दोनों हैं न? क्या वो आपके पति की पहली पत्नी थीं?” अनीता कहती है, “ नहीं! प्रेमिका!!!”

कहते कहते वह वहीं पेड़ के नीचे पत्थर पर बैठ जाती है बीते वक्त के ख्यालों में खो जाने के लिए….

अनीता के घर का फ़ोन बजता है, “ हैलो! हां जी, किराए के लिए दो छोटे कमरे हैं। आप आ जाइए, मिश्रा जी ने आपके बारे में बताया था।” दो घंटे बाद एक  औरत छोटे बच्चे के साथ अनीता के घर आती है। “जी नमस्ते! मैं साधना, वह मिश्रा जी…” अनीता जवाब देती है, “अरे हां। आईए, मैं आपको घर दिखाती हूं।” वह दोनों घर के बाहर की तरफ़ से सीढ़ियों से ऊपर जाती हैं।

           साधना पूछती है, “ आप अकेली रहती हैं?” अनीता कहती है, “नहीं नहीं मेरे पति बाहर गए हैं और कोई बच्चा भी नहीं है हमारे। और आप?”  साधना बताती है, “ पिछले महीने मेरे पति एक हादसे में गुज़र गए। ना ससुराल में है कोई अपना और न ही मायके में कोई रह गया है। इसलिए….बाकी मेरे पिताजी और पति के इन्वेस्ट करे पैसों से अच्छा गुज़ारा हो जाता है।”

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इसी तरह बात करते-करते दोनों घर देखती हैं। शाम को अनीता साधना को आवाज़ लगाती है, “ साधना, खाना मत बनाना, डिनर मेरे साथ ही कर लेना।” खाने पर साधना अनीता से कहती है, “ चलो कल नाश्ता मेरे साथ।” दो-तीन दिन में ही दोनों अच्छी सहेलियां सी बन जाती हैं। दोनों अक्सर साथ ही खाना बनातीं और खातीं, बाज़ार जाना, पिक्चर देखना..सब साथ ही था।

कभी-कभी साधना को बहुत कमज़ोरी लगती तो अनीता के पूछने पर वह मुस्कुरा कर कहती, “अरे कुछ नहीं। वो डॉक्टर ने आयरन, विटामिन और ना जाने किस किस की कमी बताई है। दवाई लेती रहती हूं, ठीक हो जाएगा।” अनीता को कईं बार लगा के वह कुछ बीमार है पर साधना ज़िंदादिली से बच्चे और अनीता के साथ हंसी मज़ाक करके बात टाल देती थी। इसी तरह क‌ईं दिन निकल गए।

एक दिन साधना को नीचे से किसी की आवाज़ आती है अनीता से बात करते हुए। वह सिर्फ़ एक आदमी को देख पाती है पर चेहरा दूसरी तरफ़ था। वह समझ जाती है कि अनीता की पति आ ग‌ए हैं। साधना ने नीचे जाना बंद कर दिया था क्योंकि अनीता के पति अपना काम ज़्यादातर घर से ही करते थे। 

एक दिन साधना को किसी काम से कहीं जाना था तो वह अनीता से फ़ोन पर पूछती है, “मुझे बाज़ार जाना है, तुम साथ चलोगी?” अनीता, “हां हां! मुझे भी कुछ सामान खरीदना है, चलते हैं।” 

थोड़ी देर बाद साधना नीचे उतरती है। तभी विनोद कहीं से आ रहा होता है। दोनों एक दूसरे को देख कर हैरान रह जाते हैं। विनोद के चेहरे पर ग्लानी के साथ दर्द उभर आता है और साधना का चेहरा बिल्कुल भावहीन रहता है। वह चुपचाप ऊपर चली जाती है।

अनीता बाहर आ ही रही थी कि वह उन दोनों के बीच की खामोशी को पढ़ लेती है और बिना कुछ कहे अंदर चली जाती है। अनीता को अंदर जाते हुए विनोद देख लेता है। घर में ऊपर नीचे एक अजीब सी खामोशी थी। तीनों बहुत कुछ बोल रहे थे अपने आप से पर बोलने में आवाज़ नहीं थी फिर भी वह एक दूसरे को सुन पा रहे थे। तीन दिन बाद विनोद खामोशी तोड़कर अनीता से कहता है, “ मैं बाहर जा रहा हूं काम से। एक हफ्ते या दस दिन में आ जाऊंगा।” 

इधर विनोद घर से निकलता है उधर अनीता साधना के पास जाकर कहती है, “ मैं जानती हूं तुम्हारा कहीं कोई कुसूर नहीं पर तुम समझ सकती हो कि अब तुम यहां नहीं रह सकतीं।” साधना,“ मैं समझती हूं, इसलिए उसी दिन मैंने मिश्रा जी से दूसरे घर के लिए कह दिया था। आज ही उनका कॉल आया था, मुझे दूसरा घर चार पांच दिन में मिल जाएगा। तब तक क्या मैं यहां रह सकती हूं?” अनीता, “इस छोटे बच्चे के साथ एक अकेली औरत को मैं बेघर कर दूंगी, तुम ऐसा कैसे सोच सकती हो? विनोद एक हफ्ते में आएंगे, उनके आने से पहले तुम यहां से चली जाना।”  साधना,“ ठीक है।”

उसी रात अनीता को साधना के कमरे से बच्चे के रोने की लगातार आवाज़ आती है। थोड़ी देर तक तो वो वहीं बैठकर सोचती है, “साधना लापरवाह मां तो नहीं है, फ़िर बात क्या है?” वह ऊपर जाती है तो साधना पलंग पर लेटी थी और बच्चा बराबर में बैठा रो रहा था। अनिता असमंजस में साधना के पास जाती है, “अरे यह तो बेहोश है।”

अनीता तुरंत अपने पड़ोसी को और अस्पताल काॅल करती है। वह लोग साधना को उसी डॉक्टर के पास ले जाते हैं जिनका ज़िक्र एक बार साधना ने अनीता से किया था। डॉक्टर उसको देखते ही कहते हैं, “देखिए साधना जी की बेहोशी संकेत दे रही है कि वक्त और पास आ गया है।” अनीता पूछती है, “ किस चीज़ का वक्त डॉक्टर?” डॉक्टर बताते हैं, “साधना की गंभीर बीमारी लास्ट स्टेज पर है। उनकी हालत इलाज से दूर जा चुकी है और अब कोई भी पल अंत का हो सकता है।” अनीता चुपचाप सुनती है।

वह साधना को घर लाती है और उस दिन के बाद से उसका और बच्चे का बहुत ध्यान रखती है। अपने हाथ से उसका घर संवारना, बच्चे को नहलाना, साधना की चोटी गुंधना, खाना बनाना… उसने सब कुछ बहुत अच्छे से करा। एक दिन साधना अनीता से कहती है, “ तुम बहुत अच्छी हो। एक चीज मांग रही हूं मेरी आखिरी इच्छा समझकर अगर पूरी कर सको तो…” अनीता चुप रहती है। साधना कहती है, “ जब मैं मर जाऊं तो मेरे बेटे का ध्यान रख सकोगी?” अनीता चुपचाप बच्चे के सिर पर हाथ रख देती है और नीचे चली जाती है।

कुछ दिन बाद विनोद आता है। उस रात साधना अनीता को ऊपर बुलाती है, “ मुझे सांस नहीं आ रही, लगता है जाने का वक्त आ गया है। मेरे बेटे का ध्यान रखना।” अनीता विनोद को आवाज़ लगाती है तो वह ऊपर आता है। अनिता विनोद से कहती है, “इसको उठाओ, अभी हॉस्पिटल चलते हैं।” जैसे ही विनोद साधना के सिर के नीचे हाथ लगाता है वह अपनी आखिरी सांस उसके हाथों में छोड़ देती है।

घाट पर जब अनीता यह सब सोच रही थी तब विनोद कहता है, “जब मेरे पिताजी ने अपने पैसे के घमंड में मेरे सामने उसे बेइज़्ज़त करके ठुकरा दिया था तो उसके अन्दर से जीने की इच्छा तभी खत्म हो गई थी। आज तो उसका सिर्फ़ अंतिम संस्कार हुआ है।