वो गुलाबी रुमाल- गृहलक्ष्मी की कहानियां
Wo Gulabi Rumal

Story in Hindi: दिल की धड़कनें ट्रेन की रफ़्तार की तरह तेज होती जा रही थी। पता नहीं मैं ठीक कर रहीं हूं या नहीं यही विचार मन में आ रहा था।
हफ्ते भर की सारी घटनाएं एक एक कर याद आ रही थीं।
“बीए कर लिया और कितना पढ़ेगी। ज्यादा पढ़ी लिखी लड़कियों के लिए लड़का ढूंढना मुश्किल हो जाता है। मैं तो कह रहा हूं पापा अब अंशिका की शादी करवा ही दीजिए।”
“भईया आप नहीं पढ़ पाए तो मुझे पढ़ने से क्यों रोक रहे हैं मैं आगे पढ़ना चाहती हूं।”
“चटाक… “
एक जोरदार थप्पड़ मेरे कान पर भाई ने जड़ दिया।
“छुटकी मुझसे जुबान लड़ाएगी। पढ़ लिख कर यही सीख रही है। कल से तेरा घर से बाहर जाना बंद। झाड़ू पोंछा बर्तन, खाना बनाना, कपड़े धोना और सिलाई-कढ़ाई यह सारे काम सीख अपनी भाभी और मां के साथ रहकर। कल को ससुराल से कोई शिकायत नहीं आनी चाहिए।”
“मुझे नहीं करनी अभी शादी…” मैं चीख उठी थी।
पिता मौन धारण किए बैठे रहे, मां भी भाई की बात पर ही अपनी सहमति जता अपने काम में मग्न हो गई उसके पास और कोई चारा ही नहीं था क्योंकि जानती थी बेटे की बात को तो काट नहीं सकती।
बेटे के आगे उन दोनों की एक भी नहीं चलती थी। पिता रिटायर हो चुके थे और रिटायरमेंट का सारा पैसा बेटे को बिजनेस शुरू करने के लिए देने के बाद पाई पाई के लिए उसके मोहताज हो गए थे।
भाभी दरवाजे की ओट में खड़ी सारी बातें सुन रही थी और भाई को इशारे से बुला रही थी। पर भाई ने तो ठान लिया था मेरी शादी करवाके मुझे घर से विदा करके ही मानेगा।
“कल ही मैं बुआ जी को लड़का ढूंढने को बोल दूंगा। उसकी नजर में बहुत सारे लड़के हैं। गांव जाने की तैयारी कर लीजिए मां पापा आप दोनों। इसकी पढ़ाई और..
मौज मस्ती पर एक पैसा नहीं खर्च करूंगा। बस बिना दहेज के शादी हो जाए इसकी।”
मैं रोते हुए अपने कमरे में आ गई।
“नहीं करनी मुझे शादी उस लड़के से जिसे मैं जानती ही नहीं। जिससे प्यार ही ना हो उसके साथ पूरा जीवन कैसे बीत सकता है?
भाभी की तरह मुझे नहीं रहना सिर्फ रसोई और घर की चारदीवारी में कैद। पर उन दो बाहों के घेरे में मैं अपना पूरा जीवन गुजार लूंगी जिसकी आंखों में ढेर सारा प्यार देखा है अपने लिए।”
पूरा दिन अपने कमरे से बाहर नहीं निकली।
अगले दिन मुझे जबरदस्ती बुआ गॉंव ले आई थी और भाई भी मेरे साथ था। मां पापा को भी मेरी शादी के लिए राजी कर लिया था। शादी की तैयारी हो चुकी थी, लड़का अच्छा कमाता है और मुझे खुश रखेगा बुआ ने आश्वासन दिया था।
हल्दी मेंहदी की सारी रस्में हो रही थी मेरी मर्जी के बगैर। मैं क्या चाहती हूं यह सिर्फ मेरी भाभी ही समझ रहीं थीं।

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एक ही चेहरा मेरी नज़र के सामने बार बार आ रहा था, ना जाने क्या था उसकी आंखों में कि अपलक देखती ही रह गई थी मैं उसे उस दिन।
एम ए का फॉर्म लेने गई थी तब बस में चढ़ते वक्त उससे टक्कर हुई थी जिसमें हम दोनों के हाथ से फाइल गिर गई थी। मैंने गुस्से में पलटकर जब उसकी तरफ देखा था तो उसकी वो मुस्कुराहट पर फ़िदा हो गई थी। मेरी ही हड़बड़ाहट के कारण उसके सारे कागज तितर-बितर हो ग ए थे और उसके सिर में हल्की सी चोट लग गई थी जिससे खून बहने लगा तो मैंने अपने रुमाल को फाड़ कर उसके सिर पर बांध दिया। दर्द में भी मुस्कुरा रहा था वो।
उसके मिलने से पहले मेरी सहेलियां जब चिढ़ाती कि…
” तेरा कोई ब्वायफ़्रेंड नहीं है? सिर्फ किताबों में घुसे रहने से जीवन नहीं चलता। थोड़ा अपने रूप-रंग को निखारने की कोशिश कर और थोड़े अच्छे कपड़े पहना कर। यह क्या सूट सलवार पहनकर बहनजी टाइप कॉलेज आती है। जींस टॉप वाली लड़कियां ही लड़कों को ज्यादा पसंद आती है।”
“मुझे प्यार के चक्कर में पड़ना ही नहीं है।”
दो टुक जवाब दे दिया करती थी। पर यह प्यार तो बिन बुलाए मेहमान की तरह मेरे जीवन में भी प्रवेश कर ही रहा था।
पहली नजर में प्यार हो गया था सुशांत पाठक से। हां यही नाम तो था उस फॉर्म में जो फाइल के कागज समेटते वक्त गलती से मेरी फाइल में आ गए थे।
उसकी फोटो और एड्रेस सभी तो था उसमें। मैं हमेशा उसी के बारे में सोचने लगी थी। कितनी दफा मन किया था उससे मिलने जाऊं पर खुद पर लगी पाबंदियों को तोड़ना मुश्किल था।
भाभी मेरे मन की बात समझ रही थी मेरे बिना कुछ कहे। उसी की मदद से तो मैं शादी से एक रात पहले भागकर ट्रेन में बैठ गई थी। जाते वक्त भाभी के गले लग गई और वहां से निकलने से पहले मां पापा के पैर छू लिए थे। दोनों उस समय दिन भर की भागदौड़ से थककर चूर हो सो रहे थे। मुझे अपने मां पापा के लिए भी अपने पैरों पर खड़ा होना है, मेरा जीवन साथी मुझे समझने वाला तो हो ही साथ साथ मेरे पापा को भी अपने मां बाप की तरह ही समझे।
“जल्दी करो अंशि आपके भाईसाहब या बुआ जी ने देख लिया तो सारा प्लान चौपट हो जाएगा।”
“भाभी पर मैं कहां जाऊंगी कुछ समझ नहीं आ रहा।”
“चिंता मत कीजिए, बस यहां से भाग जाईए। आपका प्यार आपका इंतजार कर रहा है।”
“मैं… मैं तो किसी से प्यार नहीं करती।” हकलाते हुए भाभी से कहा था।
“आपकी इन आंखों में साफ दिख रहा है कि आपको प्यार है किसी से। आप एक बार मिलिए जरूर उनसे।”
“भाभी पर मैं तो नहीं जानती कि वो मेरे बारे में क्या सोचता है। बस एक बार ही तो देखा है उसे। पहली बार कोई मन को भाया। भाई को ना जाने मेरी खुशी से क्या चिढ़ है। कैसे जान गया कि मैं किसी से प्यार करने लगी हूं।”
“छोड़िए यह सब बातें। आपके सपनों का राजकुमार आपको जरूर मिलेगा। यह कुछ पैसे और गहने रख लीजिए आपके काम आएंगे। कहीं भी कोई दिक्कत हो तो मुझे फोन जरूर कीजियेगा। मेरी सहेली मालविका जो कि नोएडा में ही रहती है आपकी मदद कर देगी।”
“भाभी भाई को जब पता चलेगा कि मुझे भगवाने में आपने मदद की है तो वो आप पर गुस्सा होंगे। मेरे हाथ पैर तुड़वा कर तो मुझे घर बिठा ही देंगे।”
” नहीं ऐसा कुछ नहीं होगा। आप इसकी चिंता मत कीजिए। आपके भाई को और उनके गुस्से को मैं संभाल लूंगी। जो त्याग मैंने किया है वो आपको नहीं करने दूंगी।”
“भाभी आप बहुत अच्छी हैं।”
रेलवे स्टेशन तक भाभी मेरे साथ आईं थीं। मेरी टिकट का इंतजाम भी उन्होंने ही करवाया था।
उनके लिए चिंता सता रही थी और अपने भविष्य के लिए भी मन में डर समा रखा था। पढ़ कर अपने पैरों पर खड़ा होना चाहती थी पर यह मेरे कदम मुझे किस ओर ले जा रहे थे। पहली नजर के पहले प्यार का नशा मुझ पर भी चढ़ सकता है कभी सोचा ही नहीं था।
टीटी ने बड़े घूर कर देखा था मुझे …
“अंशिका सिन्हा सीट नम्बर ग्यारह।”
“जी सर!”
आई डी दिखाते वक्त मेरे हाथ में लगी ब्राइडल मेंहदी पर उसकी नजर जब पड़ी तो उसकी आंखों में ढेरों सवाल थे। एक कुटिल मुस्कान देता वो चला तो गया पर मेरे मन में डर समा गया था। पूरी बॉगी में बहुत कम पैसेंजर थे।
बड़ी मुश्किल से बीती वो रात।
अगले दिन दिल्ली पहुंची, भाभी की सहेली मुझे लेने आईं थीं।
उन्हें देखकर मुझमें भी खोया आत्मविश्वास लौट रहा था।
अगले ही दिन उन्होंने मुझे अपने ऑफिस में जहां वो काम करतीं थीं वहां इंटरव्यू के लिए अपने साथ ले आईं। मुझे कम्प्यूटर आपरेटर की जॉब मिल गई। मुझे पहले नौकरी करनी है… पैसे कमाने हैं… फिर आगे की पढ़ाई भी पूरी करनी है मन में ठान लिया था।
सुशांत पाठक को भूली तो नहीं थी पर समय ही नहीं मिल रहा था उसे ढूंढने का। मेरी किस्मत में जो लिखा होगा वो मुझे मिलकर ही रहेगा, इसी उम्मीद पर जी रही थी।
एक दिन अचानक उससे मुलाकात हो गई, उसने मुझे पहली नजर में ही पहचान लिया।
” पहचाना अंशिका मुझे।”
मैंने सिर्फ हां में गर्दन हिलाई और अपने बैग से उसका वो फॉर्म जो पांच साल से संभाले रखा था उसे दे दिया आपकी अमानत।
“अच्छा! पर आपकी यह अमानत तो मैं हरगिज नहीं दूंगा।” उसने अपनी जींस की पॉकेट से एक गुलाबी रुमाल निकाला जिसके दो टुकड़ों में पड़ी गांठ को पकड़ते हुए कहा। उस रुमाल के एक कोने पर मेरा नाम लिखा था। जो कभी मैंने लाल पैन से लिख डाला था।

” इसमें आपकी खुशबू समाई हुई है जो मेरे जीने का सहारा है।”

उस पहली मुलाकात के बाद हम पांच साल बाद ही मिल रहे थे। मेरे पास उसका एड्रेस होते हुए भी मैं उसके घर तक नहीं गई बस रोज रात को बिस्तर पर आते ही उसका वो फॉर्म निकाल… वो पासपोर्ट साइज फोटो देखती। उसका नाम बार बार पढ़ती। अपनी फोटो उसी फॉर्म में उसकी फोटो के बगल में ही लगाकर देखती तो शरमा जाती।
ये पहली नजर का प्यार भी बड़ा अजीब होता है। हम दोनों ही इसकी गिरफ्त में थे।

“मेरा रुमाल आपके पास था यह तो मैं भूल ही गई थी। पर इसे फटे हुए रुमाल को अपने इतने सालों से संभाल कर रखा है।”
मैंने अपनी सारी आप बीती उसे सुना डाली। कैसे मैं उस शादी के मंडप पर जाने से पहले वहां से भाग आई। किसी और के नाम की मेंहदी तक लग गई थी मेरे हाथों में जो मुझे मंजूर नहीं था।

” तो किसके नाम की मेंहदी लगाना चाहोगी।” मेरा हाथ चूमते हुए सुशांत बोला।
“आपके नाम की।” मैं शरमा गई थी।

उसने बताया कि..
” तुमको ढूंढने की बहुत कोशिश की थी पर इस एक रुमाल के दो टुकड़ों और तेरे नाम के सिवाय कुछ भी पता नहीं था तुम्हारे बारे में कि तुम कहां रहती हो, दुबारा कभी कॉलेज या बस स्टॉप कहीं देखा भी तो नहीं। एम ए पूरा होने के बाद नौकरी लग गई और अब मेरी शादी के लिए मेरे परिवार वाले मुझ पर जोर डाल रहे हैं पिछले कुछ सालों से जिसे मैं टाल रहा हूं। मन में एक उम्मीद थी कि तुम जरूर मिलोगी।”

हम अब रोज शाम को पार्क में घंटों बैठते और ढेर सारी बातें करते।
मेरी भाभी मुझे मम्मी पापा और भाई के बारे में बताती रहती थी फोन पर। भाई को जब मेरे कमरे से गायब होने की खबर लगी तो आग बबूला हो गया था। उस लड़के के बारे में पता करवाया जिससे बुआ ने मेरी शादी तय करवा दी थी वो पहले से शादीशुदा था और नशे की लत का शिकार था।
जो होता है अच्छा ही होता है। मेरे पापा मम्मी खुश थे, उनसे भी फोन पर बात हुआ करती थी।
मैंने भी नोकरी करते हुए अपना एम ए तो पूरा किया ही सिर में बैंकिंग की तैयारी भी करती रही। बैंक पीओ में मेरा सेलेक्शन हो गया।
सुशांत ने मुझे अपने मम्मी पापा से मिलवाया , वो दोनों हमारी शादी के लिए तुरंत राजी हो गए। मेरे भाई भाभी मम्मी पापा सब लोग मुझे आशिर्वाद देने आए थे। भाई ने गले से लगा लिया।
“बहन माफ कर दे, तुझे जो तकलीफ हुई उसके लिए।”
मैं और सुशांत मंडप पर बैठे सात जन्मों के लिए एक दूसरे के होने जा रहे थे। जब पंडित जी गंठबंधन करने लगे तो सुशांत ने वो गुलाबी रुमाल हमारे गठबंधन में बांध दिया। पहली नज़र का प्यार हमें जीवन भर के लिए वैवाहिक बंधन में बांध गया था।