मेरे हिस्से में माँ आई-गृहलक्ष्मी की कहानियां
Mere Hisse mein Maa Aai

Story of Mother: पै-पै…!”

“इधर ला …दवाई का नाम भी ठीक से नहीं पढ़ सकता है।”
मंजू जी ने विजय को झिड़क कर बोला, आज दस दिन हो गए थे मंजू जी को अस्पताल में भर्ती हुए।एक तो उम्र ऊपर से ये बीमारी…उर्मिला और विजय दोनो जी-जान से मंजू जी की सेवा में लगे थे। मंजू जी के लिए नाश्ता-खाना उर्मिला ही लेकर जाती थी।मंजू जी के पति रमेश बाबू घुटने के दर्द की वजह से ज्यादा चल-फिर नहीं पाते थे।मंजू जी की चार संतानें थी…गीता,अजय,संजय और विजय।विजय सबसे छोटा था…कहते हैं सबसे छोटी संतान माता- पिता की सबसे ज्यादा लाडली होती है पर न जाने क्यों विजय जीवन भर मंजू जी और रमेश बाबू की आँख की किरकिरी ही बना रहा।मंजू जी के तीनो बच्चे बहुत होनहार थे पर विजय…पढ़ने-लिखने में उसका कभी मन नहीं लगा।रमेश बाबू ने घर के आगे वाले कमरे में जनरल मर्चेंट की दुकान खुलवा दी थी।इकलौती बेटी गीता पढ़-लिखकर अपने ससुराल चली गई और अजय इंजीनियरिंग की पढ़ाई करके नार्वे बस गया,वहीं साथ नौकरी करने वाली क्रिस्टियना से शादी भी कर ली।
अजय हर दूसरे साल रमेश बाबू और मंजू जी मिलने आता पर बहू… कहीं न कहीं मंजू जी भी नहीं चाहती थी कि वो घर आए…एक बार उर्मिला ने ही किस्ट्रियना कि फोटो सोशल नेटवर्क पर दिखाई थी। बित्ते भर की पेंट पहने वो अजय के गले में झूल रही थी।विजय की बीबी उस दिन कितना हंसी थी।रमेश बाबू ने उर्मिला को आज तक बिना पल्लू के नहीं देखा था,वो खुद तो कुछ नहीं कहते पर मंजू जी के माध्यम से बात कान तक पहुँच जाती।
“अपनी अम्मा को देखो आज तक सर से पल्लू नहीं गिरता पर इनका है कि ठहरता नहीं,भले घर की बहू-बेटियों को ये शोभा नहीं देता।”
रमेश बाबू भी न जाने किस भले घर की बात करते थे,अब तो सबकी बहुए कुर्ते पर जीन्स चढ़ाये इधर से उधर डोलती फिरती रहती है।संजय की बहू तो फिर भी गनीमत थी,साड़ी तो नहीं पहनती थी पर सलवार कमीज के ऊपर वो मरा एक फ़ीट का गमछा जरूर डाल लेती।रमेश बाबू स्टोल को गमछा ही तो कहते थे। संजय ने एम. बी.ए. करने के बाद बंगलोर में मल्टीनेशनल कम्पनी में नौकरी कर ली थी,अच्छा कमा लेता था।बंगलोर में एक फ्लैट भी खरीद लिया था,
“पापा!यहाँ किराया बहुत है,बहुत खलता है…”
रमेश बाबू जी समझ गए थे उनके घोसलें के पक्षी एक-एक कर उड़ रहे हैं पर वो मन को समझा लेते।ठीक ही तो कह रहा है संजय…फालतू में किराया देने का क्या फायदा अपना घर तो अपना ही होता है… हरदम मकान मालिक के साथ चिक-चिक।पहले वाला मकान मालिक कितना दुष्ट था,मेहमान नहीं आ सकते,पार्टी नहीं कर सकते पर जो भी हो बच्चे रमेश बाबू और मंजू जी का बहुत ध्यान रखते थे। हर महीने कुछ न कुछ उपहार आता ही रहता था, अभी पिछले महीने ही तो बड़े वाले ने वो महंगा वाला मोबाइल भेजा था और छोटे वाले ने बड़ा वाला टी वी…बेचारे कितना आना चाहते थे रमेश बाबू और मंजू जी से मिलने पर खैर..
“पापा!पैसे की चिंता मत करिए अच्छी से अच्छी जगह इलाज कराइये ।भैया ने विजय के एकाउंट में पैसे डाल दिये हैं ,आज मैंने भी आपके एकाउंट में पैसे डाले है।आप चिंता न करिये।”
“चिंता किस बात की जिसके दो-दो होनहार बेटे हो।”
मंजू जी और रमेश बाबू ने कितने गर्व से कहा था। ईश्वर की बहुत कृपा रही,मंजू जी ठीक हो गई थीं।आज अस्पताल से उन्हें छुट्टी मिल रही थी।नर्स अभी-अभी कहकर गई थी,डॉक्टर साहब राउंड पर निकले हैं उनके चेकअप करने के बाद ही उन्हें छुट्टी मिलेगी।उर्मिला मंजू जी के कपड़े बदल कर बैठी ही थी कि डॉक्टर साहब आ गये।

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“…और माता जी तबीयत कैसी है अब?
“भगवान की कृपा है ,अब पहले से काफी अच्छा महसूस कर रहीं हूँ।”
डॉक्टर साहब ने मंजू जी की कलाई हाथ मे पकड़ी और नब्ज टटोलने लगे।उन्होंने विजय की तरफ़ देखकर पूछा
ये$$$$…आपका बेटा है क्या…?
“जी…”
” जब से आप यहाँ आये तब से दिन-रात इसी को देख रहा हूँ।क्या करते हो तुम…?’
विजय जब तक कुछ जवाब देता मंजू जी तपाक से बोल उठी,
“कुछ खास नहीं बचपन से थोड़ा मोटा दिमाग का रहा,पढ़ने -लिखने में कभी मन नहीं लगा। मेरे और बच्चे सब बहुत लायक है।एक विदेश में कमा रहा और एक बंगलोर में… बस एक यही नालायक निकला।”

विजय चुपचाप सुनता रहा और डॉक्टर साहब नालायक की परिभाषा समझने की कोशिश करते रहे।तभी डॉक्टर साहब ने कहा
“विजय आप जरा बाहर आइए, आप से कुछ बात करनी हैं।”
“जी डॉक्टर साहब!माँ मैं बस अभी आता हूँ।”
विजय यह कहकर बाहर निकल आया।
डॉक्टर साहब सब ठीक तो हैं न कोई खतरे की बात तो नहीं?”
“नहीं-नहीं घबराने की कोई बात नहीं है।आपकी माँ अब पहले से बहुत ठीक है।”
“फिर आपने मुझे क्यों बुलाया।”
विजय की आँखों में एक डर था,उसकी आँखों में हजारों सवाल तैर रहे थे।
“विजय एक बात बताओ? इतने दिनों से मैं तुम्हें और तुम्हारी पत्नी को ही माता जी की सेवा करते देख रहा हूँ।इतने दिन हो गए माता जी को भर्ती हुए।तुम्हारे भाई एक बार भी देखने नहीं आए।”
विजय मुस्कुरा पड़ा। उसने मुस्कुराते फिर कहा
“साहब माँ ने अभी कहा न मैं बचपन से मोटे दिमाग का हूँ।”
एक दर्द उसके चेहरे पर पसर गया।डॉक्टर साहब उसे ध्यान से देख रहे थे कितना कुछ उसके चेहरे पर था पर वह उसे पढ़ नहीं पा रहे थे।तभी…
“डॉक्टर साहब एक शेर याद आ गया।”
“इरशाद”
डॉक्टर साहब ने खिल कर कहा उन्हें भी शेरो-शायरी का बेहद शौक था।
“किसी को घर मिला हिस्से में या कोई दुकाँ आई
मैं घर में सबसे छोटा था मिरे हिस्से में माँ आई।”
डॉक्टर साहब को अपने सवालों का जवाब मिल गया था।