कुप्पू को सर्दियाँ पसंद हैं। सर्दियाँ आती हैं तो मूँगफलियाँ भी आती हैं। खूब भुनी करारी मूँगफलियाँ। जेब में भरो और मजे में कुड़-कुड़ खाते रहो। अहा, क्या मजे का स्वाद है! और सिर्फ मूँगफलियाँ ही क्यों? सर्दियों की एक खास चीज और पसंद है कुप्पू को। सो इधर जब से सर्दियाँ आई हैं, उसके मुँह से बार- बार निकलता है, “मम्मी, चाय- बिस्कुट …!” “हाँ कुप्पू, लाऊँगी तेरी पसंद के बिस्कुट!” मम्मी हँसकर कहती हैं और फिर अपने काम में लग जाती हैं। पर भला अपने लाडले कुप्पू की फरमाइश वे कैसे भूल सकती हैं? मम्मी ने कुप्पू के लिए तरह-तरह के बिस्कुट खरीदे। पर जब वह खाने बैठता है तो मन ही मन कहता है, ‘इसमें वो बात नहीं।’ उसने मम्मी से भी कहा, “मम्मी… मम्मी, इसमें वो बात नहीं!” मम्मी हैरान होकर बोलीं, “कुप्पू, तू क्या कह रहा है? मेरी समझ में तो कुछ नहीं आता।
आखिर इसमें क्या बात नहीं है?” कुप्पू एक क्षण रुककर कुछ सोचने लगा। फिर बोला, “मम्मी, एक बार आप बेकरी में खुद जाकर बनवाकर लाई थीं न नमकीन और मीठे बिस्कुट। वे बड़े कुरकुरे और खस्ता थे।” “बुद्धू, वह बेकरी तो अब हमारे घर से बहुत दूर चली गई है। रामनगर में! मैं कहाँ बार-बार जाकर बनवाकर ला सकती हूँ?” मम्मी थोड़ी खीज गईं। “तो मम्मी, मैं चला जाऊँगा।” कुप्पू झिझकता हुआ बोला। “तू? इतनी दूर …!” मम्मी को हैरानी हुई। “क्यों नहीं, मम्मी? बस, आप मुझे एक बार दिखा दो।” कुप्पू ने जिद पकड़ ली। मम्मी समझ गईं, अब तो कुछ न कुछ करना होगा। वरना कुप्पू की जिद से राम बचाए! उन्होंने उसी दिन एक बड़े से टिन में आटा, घी और दूसरा सामान लिया। फिर कुप्पू के साथ रिक्शा पर बैठकर रामनगर गईं। वहाँ भोला भाई बेकरी वाले की दुकान थी। दुकान पर बाहर ही भोला भाई दिख गए। खूब मस्त मौला। चेहरे पर चौड़ी मुसकान। कुप्पू की मम्मी को देखकर बोले, “अरे बहन जी, इस बार तो आप बहुत दिनों में आई हैं।… क्या आप भूल गई भोला भाई के बिस्कुट?” कुप्पू की मम्मी ने हँसकर कहा, “न…न, भोला भाई, भूल कैसे सकती हूँ? मगर घर के जो तमाम काम रहते हैं। फिर हमारे घर से रामनगर दूर भी है। इस बार भी शायद न आ पाती, पर कुप्पू ने तो जिद ठान ली कि मम्मी, मम्मी, मुझे तो वही बिस्कुट खाने हैं। वे खूब करारे थे। और आप जो दूसरे बिस्कुट लाती हो, इनमें वो बात नहीं!” सुनकर भोला भाई हँसने लगे। खुश होकर बोले, “वाह, यह तो मेरी जीत हो गई बहन जी!” कुछ देर बाद उन्होंने कहा, “देखो बहन जी, बच्चा यह नहीं जानता कि बेकरी कितनी दूर है। या कि इसमें कितनी मुश्किल आएगी।… बच्चा तो सिर्फ यह जानता है कि इसका स्वाद बड़ा अच्छा है। यही तो मैं चाहता था।…” थोड़ी देर में ही भोला भाई बेकरी वाले ने कुप्पू की मम्मी को खूब सारे कुरकुरे बिस्कुट बनाकर दिए। नमकीन भी, मीठे भी। टिन पूरा भर गया।
ऊपर तक। फिर रिक्शा वाले से कहा, “कुप्पू और उसकी मम्मी को आराम से घर पर छोड़ दो। देखना, इन्हें कोई तकलीफ न हो।” कुप्पू को इतनी खुशी हो रही थी कि उसकी खुदर – खुदर हँसी रुक नहीं पा रही थी। * रिक्शा चलने वाला था। पर तभी भोला भाई अंदर गए। काँच की एक साफ धुली प्लेट लेकर आए। उसमें दो बिस्कुट मीठे, दो नमकीन रखकर कहा, “अगर कुप्पू यहीं चखकर इन्हें पास कर दे, तो भोला भाई का जी खुश हो जाएगा।” कुप्पू का तो मन कर ही रहा था बिस्कुट खाने को। उसने झटपट बिस्कुट खाए और मजे में सिर हिलाता हुआ बोला, “वाह भोला भाई, क्या कहने…! बिस्कुट बहुत स्वाद… कुरकुरे हैं!” “यानी बिस्कुट पास…?” भोला भाई ने आँखें चमकाते हुए पूछा। “पास! फर्स्ट क्लास फर्स्ट…!!” कुप्पू हँसा, तो उसकी मम्मी भी हँस दीं और साथ ही भोला भाई भी। रिक्शा वाला भी हँस रहा था। भोला भाई को कुछ याद आया। फौरन अंदर गए, एक प्लेट में चार बिस्कुट लाकर रिक्शा वाले को भी पकड़ा दिए। बोले, “भोला भाई की दुकान पर आया है, तो जरा उनके बिस्कुट का स्वाद तो तू भी देख ले ना!” रिक्शा वाला रामलुभाया खुश। हँसते-हँसते बोला, “भोला भाई बेकरी वाले को हमारा जयहिंद!” भोला भाई की बेकरी में काम करने वाले कारीगर भी खुश थे। उनमें एक बड़ा ही हँसमुख कारीगर संतू भी था। उसे कुप्पू बहुत अच्छा लगा। बोला, “कुप्पू, फिर आना। तुम्हारे आने से तो पूरी बेकरी चहकने लगी। हम सबका दिल खुश हो गया।” जब वे चलने लगे तो भोला भाई ने कहा, “सुनिए बहन जी, अगर आपको यहाँ आने में दिक्कत हो तो मैं संतू को भेज दिया करूँगा। हर महीने की पहली तारीख को यह आपके पास आ जाया करेगा।
आप सामान दे दें। वह बिस्कुट बनवाकर खुद ही घर पर छोड़ आएगा, ताकि हमारा कुप्पू खुश रहे!” सुनकर कुप्पू के चेहरे पर मुसकान आ गई। उसकी मम्मी भी खुश होकर वोलीं, “वाह भोला भाई, ऐसा हो जाए तो बहुत अच्छा है!” अगले दिन सुबह – सुबह कुप्पू ने खूब मजे लेकर चाय के साथ कुरकुरे बिस्कुट खाए। घर में सभी को वे अच्छे लगे, पर कुप्पू को सबसे ज्यादा। और अब तो भोला भाई हर महीने दो बड़े-बड़े टिन भरकर बिस्कुट भिजवाने लगे थे। एक में मीठे, एक में नमकीन। पूरी सर्दियों भर कुप्पू ने खूब खाए कुरकुरे बिस्कुट, फिर एक दिन बिस्कुट खाते-खाते ही कविता बनाई। खूब कुरकुरी कविता, कुरकुरे बिस्कुटों जैसी और मजे मजे में उसे गाने लगा – खाए मैंने खूब कुरकुरे बिस्कुट खाए, झटपट – झटपट चटपट-चटपट खाए जी, खाए मैंने जी भर बिस्कुट खाए! खाए नन्ही चिड़िया ने भी छिटपुट – छिटपुट, खाकर बोली- टी वी टुट-टुट… आहा, आहा, कितने अच्छे, भोला भाई के ये बिस्कुट! मम्मी ने कुप्पू की यह कविता सुनी, तो वे खूब हँसीं। बोलीं, “अगली बार भोला भाई की बेकरी में चलेंगे, तो उन्हें भी सुनाना। सुनकर खूब खुश होंगे!” सुनकर कुप्पू भी मुसकराने लगा। फिर बोला, “मम्मी, मैं यह कविता एक पन्ने पर लाल, नीले, हरे कलर्स से लिख लेता हूँ। इस बार भोला भाई की बेकरी पर चलेंगे, तो जहाँ वे बैठते हैं, उसी दीवार पर टेप से चिपका देंगे। फिर तो भोला भाई के साथ- साथ सब आने-जाने वाले भी पढ़ लेंगे।” “वेरी गुड। यह हुई न बात!” कहकर मम्मी ने प्यार से कुप्पू की पीठ थपथपा दी।
