दिलोदिमाग—गृहलक्ष्मी की कहानियां
Dilodimaag

Hindi Story: “आयुषी, इस तरह थोड़ी देर के मिलने से अब दिल नहीं भरता अब तो जल्दी शादी के लिए हमें अपने परिवार वालों से बात करनी चाहिए” बहुत ही बेकरारी से मोहित बोला।
“मोहित, हमारी सगाई तो हो ही चुकी है शादी भी जल्दी हो जाएगी यह तो अच्छा ही है कि यह समय जो हमें मिल रहा है इसमें हम एक दूसरे को और अच्छी तरह से समझ और जान सकते हैं इससे हमारा वैवाहिक जीवन सुखमय और सफल होगा” आयुषी ने कहा।
“वैवाहिक जीवन सफल और सुखद बनाने के लिए सबसे जरूरी होता है आपसी विश्वास जो हम दोनों के बीच बेहद मजबूत है” आयुषी के दोनों हाथों को थामते हुए मोहित बोला।
यह सुनकर तो आयुषी गौरवान्वित हो उठी कि उसका होने वाला पति कितना समझदार है उसके हाथों को मजबूती से थामते हुए बोली, “मोहित, मैं वायदा करती हूँ अपने और तुम्हारे बीच के विश्वास को कभी खत्म नहीं होने दूंगी।”
“तो ठीक है आयुषी, आज हम दोनों यह वादा करते हैं कि अपने वैवाहिक जीवन में कभी भी झूठ, शक, संदेह और अविश्वास के साए तक को भी नहीं आने देंगे” मोहित दृढ़ स्वर में बोला। फिर उसकी आंखों में झाँकते हुए बोला “चलो आज से ही अपने विश्वास की नीव को और अधिक मजबूत करने की शुरुआत करते हैं। मैं एक संगीत शिक्षक हूँ मेरे ज्यादातर विद्यार्थी छात्राएं ही हैं वह मेरी शिष्याएं होने के साथ-साथ मेरी अच्छी मित्र भी हैं वैसे भी मेरी महिला मित्रों की संख्या अधिक है। मैं स्त्री- पुरुष की मित्रता को बुरा नहीं मानता अगर तुम्हारे भी पुरुष मित्र हों तो तुम्हें संकोच करने की कोई आवश्यकता नहीं है तुम शादी के बाद भी उनसे मिलना -जुलना जारी रख सकती हो।”
यह सुनकर तो निहाल हो गई आयुषी। उसे फख्र हुआ उसके होने वाले पति के कितने अच्छे विचार हैं अगर उसकी महिला मित्र हैं तो उसे अपनी पत्नी के पुरुष मित्रों से भी एतराज नहीं है उसे ऐसे ही स्वस्थ विचार वाले जीवनसाथी की तलाश थी जो उसे मिल गया। उसकी आँखों में आँखें डाल कर बड़े ही शोख अंदाज में बोली, “हुजूर अभी तो मेरा कोई पुरुष मित्र नहीं है लेकिन अब जल्दी ही बना लूँगी” कहकर वह खिलखिला पड़ी।
“मुझे कोई एतराज नहीं” मोहित ने भी हँसकर कहा।

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वह दोनों हफ्ते में दो-तीन दिन अपने पसंदीदा रेस्टोरेंट में मिलते थे। एक दिन आयुषी मोहित के साथ रेस्टोरेंट में बैठी थी तभी एक सुंदर, सौम्य और स्मार्ट युवक ने “हाय आयुषी” कहा तो वह आश्चर्य भाव से उसे देखते हुए बोली, “माफ करना मैंने आपको पहचाना नहीं।”
“बहुत कमजोर याददाश्त है तुम्हारी आयुषी। बड़ी जल्दी भूल गईं मुझे ? मैं आदित्य.. दो साल पहले मेरे दोस्त रवि और तुम्हारी सहेली रति की शादी में हम लोगों ने कितना धमाल मचाया था तुमने लड़कियों के साथ मिलकर जहाँ रवि के जूते छुपाए थे वह जगह तो कोई सोच भी नहीं सकता था लेकिन हम लड़कों ने बड़ी चतुराई और सूझबूझ से दुश्मन की माँद में घुसकर जूते खोजने का जो हैरतअंगेज कारनामा किया था उसे देखकर सभी ने दाँतो तले उंगलियां दबा ली थीं और तुम सभी लड़कियों के चेहरे ऐसे उतर गए थे जैसे क्रिकेट मैच में पाकिस्तान ने भारत को हरा दिया हो” कहकर वह खिलखिला कर हंस पड़ा। फिर टेबिल पर झुकते हुए बड़ी अदा से बोला, ” मैडम, कुछ याद आया या कुछ और हिंट दूं।”
थोड़ी देर दिमाग पर जोर डालने पर आयुषी को सब याद आ गया वह चिहुँक कर बोली , ” हाँ याद आ गया सब कुछ …आओ अब हमारे साथ ही बैठो”। फिर मोहित का परिचय कराते हुए बोली, “आदित्य, ये है मेरे मंगेतर मोहित” ” हैलो” कहते हुए आदित्य ने मोहित की तरफ हाथ आगे किया तो मोहित ने हाथ जोड़कर नमस्ते कहते हुए कहा, ” आपसे मिलकर बहुत खुशी हुयी।”
“आयुषी, आज तुमसे अचानक इस तरह इतने वक्त बाद मुलाकात होना एक हसीन इत्तफाक है और इत्तफाक से कल इस नाचीज का जन्मदिन भी है “पिंच आफ स्पाइस रेस्टोरेंट” में एक छोटी सी पार्टी रखी है जिसमें सिर्फ खास दोस्तों को ही इनवाइट किया है मैं चाहता हूँ आप लोग भी पार्टी में आकर चार चाँद लगाओ।”
“आदित्य जी, क्षमा चाहता हूँ। मैं कल एक संगीत समारोह में भाग लेने दिल्ली जा रहा हूँ इसलिए आपकी पार्टी में नहीं आ सकूंगा” मोहित ने कहा तो आयुषी हैरानी से बोली, “लेकिन तुमने तो इस विषय में कोई जिक्र ही नहीं किया फिर यह अचानक दिल्ली जाने का प्रोग्राम कैसे बन गया?”
“आयुषी, जिस तरह अचानक तुम्हारी मुलाकात आदित्य जी से हुई उसी तरह अचानक मेरा भी संगीत समारोह में दिल्ली जाने का कार्यक्रम बन गया” मोहित ने मुस्कराते हुये कहा।
“आयुषी, तुम तो आओगी ना पार्टी में?” मनुहार करता हुआ आदित्य बोला।
“मैं जरूर आऊँगी तुम्हारी पार्टी में। आखिर इतने वक्त बाद मिले हैं तो थोड़ा बहुत धमाल तो होना ही चाहिए जो रवि और रति की शादी में हुआ था”
दूसरे दिन शाम को वह अच्छे से तैयार होकर आदित्य के लिए एक खूबसूरत बुके लेकर रेस्टोरेंट पहुँच गई लेकिन वहाँ आदित्य का कोई दोस्त नहीं था वह थोड़ा नाराजगी भरे लहजे में बोली, “यह क्या आदित्य, तुमने तो कहा था पार्टी में तुम्हारे खास खास दोस्त भी होंगे।”
” आयुषी, तुम्हें इनवाइट करने के बाद मैंने उन्हें बुलाने का विचार त्याग दिया।”
“लेकिन क्यों?” उसने आश्चर्य से पूछा।
“क्योंकि उन सबमें सिर्फ तुम मेरे लिए खास हो” आदित्य शरारती लहजे में बोला।
“जरा संभलकर बोलो मिस्टर, मैं पहले से ही इंगेज्ड हूँ” बड़े ही शोख अंदाज में वह बोली।
“सच बताऊं आयुषी, मैंने तो रवि की शादी पर ही तुम्हें अपना बेहद खास बना लिया था लेकिन इतनी भीड़ में तुम से कुछ कहने का मौका ही नहीं मिला शादी के कुछ दिनों बाद ही दिन कंपनी की तरफ से दो साल के लिए अमेरिका चला गया अभी कुछ दिन पहले ही लौटा हूँ लेकिन अब तो बहुत देर हो गई” वह मायूसी भरे लहजे में बोला।
“कोई बात नहीं अब मुझे अपना खास दोस्त बना लो” कहते हुए उसने अपना दायां हाथ उसकी तरफ बढ़ा दिया। बहुत ही गर्मजोशी से हाथ मिलाते हुए आदित्य ने उसकी दोस्ती स्वीकार कर ली। तभी रेस्टोरेंट के दरवाजे के कांच में मोहित की एक हल्की सी झलक आयुषी को दिखाई दी तो वह बुरी तरह चौक गई उसे अपनी आँखों पर विश्वास नहीं हुआ वह तो दिल्ली गया है तो फिर यहाँ कैसे? वह बहुत उलझन में पड़ गई उसका दिल कह रहा था कि वह मोहित नहीं है लेकिन दिमाग कह रहा था कि वह मोहित ही है। अजीब कशमकश में फंस गई कि वह किसकी सुने दिल की या दिमाग की ?”
“कहाँ खो गए मेरे अच्छे दोस्त?” चुटकी बजाते हुए आदित्य ने उसे छेड़ा तो वह परेशान स्वर में बोली, “दोस्त, आज तुम्हारी यह दोस्त बड़ी दुविधा में पड़ गई है, मैं चाहती हूँ कि तुम एक अच्छे दोस्त होने के नाते मेरी मदद करो।”
“हुक्म करो मेरे दोस्त” सिर झुका कर बड़े अदब से आदित्य बोला।
“आदित्य, एक ऐसी गंभीर बात है जो मेरी आने वाली जिंदगी को प्रभावित कर सकती है बेहद परेशान कर रही है मुझे। निर्णय लेना मेरे लिए बहुत कठिन है क्योंकि दिल कुछ और कहता है और दिमाग कुछ और।धर्म संकट में हूँ दिल की सुनूं या दिमाग की?”
“दिमाग की”आदित्य ने झट से कहा।
“अरे तुमने तो एक सेकंड में ही जवाब दे दिया।”
” जहाँ दिल और दिमाग की बात हो वहाँ दिमाग की ही सुननी और माननी चाहिए क्योंकि दिल के मामले में इंसान अक्सर इमोशनल होकर कमजोर पड़ जाता है और यही कमजोरी जिंदगी भर उसे यह एहसास कराती रहती है कि उसने भावनाओं में बहकर अगर निर्णय नहीं लिया होता तो उसकी जिन्दगी के मायने कुछ और होते और इसके विपरीत दिमाग से लिया गया फैसला हमेशा ठोस और स्थाई होता है”।
आदित्य की बात सुनकर तो वह और अधिक दुविधा में पड़ गई क्योंकि दिमाग की मानने पर तो वह मोहित ही था। तो क्या मोहित ने दिल्ली जाने का झूठ बोला आखिर उसने झूठ क्यों बोला? इस तरह चोरी छिपे रेस्टोरेंट में आकर वह आखिर देखना क्या चाहता था?
क्या उसने मुझे और आदित्य को लेकर शक और अविश्वास किया? मगर क्यों? वह तो खुद स्त्री -पुरुष मित्रता का पक्षधर है स्वयं उसकी भी महिला मित्र हैं यह सोच कर वह खुद पर झुंझला पड़ी हार कर उसने इस विषय पर सोचना छोड़ कर आदित्य के साथ पार्टी एंजॉय करने का मन बनाया। पहले केक फिर डिनर और बाद में डांस और फिर घूमते हुए मार्केट में आइसक्रीम खायी। उसने जी भर के एन्जॉय किया फिर आदित्य उसको घर छोड़ आया। घर में घुसते ही उसका मोबाइल घनघना उठा। फोन मोहित का था अपनी उलझन को दूर करने के लिए वह बोली, “मोहित, इस समय कहाँ हो तुम?”
“क्यों क्या हुआ?” बहुत ही सहज स्वर में उसने पूछा और कहा, मैं दिल्ली में ही हूँ” फिर हँसकर बोला, ” “कहो तो वीडीओ कॉल करूँ ?”
“अरे नहीं नहीं बस ऐसे ही पूछ रही थी।”
” आयुषी, कल सुबह मैं आगरा आ जाऊँगा शाम को हम वहीं अपने रेस्टोरेंट में मिलते हैं ओ के, लव यू, बाय ” कहते हुए उसने फोन रख दिया।
आयुषी आश्वस्त हो गई रेस्टोरेंट में मोहित को देखना उसने अपनी आँखों का महज एक धोखा समझा और मोहित से मिलने पर आदित्य के साथ अपनी दोस्ती और पार्टी की बात बता कर उसे सरप्राइज देने का मन बनाया।
शाम को रेस्टोरेंट में मोहित पहले से ही उसका इंतजार कर रहा था जाते ही वह उत्साहित स्वर में बोली,”मोहित, मुझे भी एक प्यारा सा पुरुष मित्र मिल गया है… “मुझे पता है” उसके आगे बोलने से पहले ही मोहित बोल पड़ा, “स्त्री- पुरुष मित्रता मर्यादित होनी चाहिए इस तरह इतनी रात गए रेस्टोरेंट में भली महिलाओं को अपने पुरुष मित्रों के साथ केक काटना, डिनर करना, डांस करना, सड़कों पर खुलेआम घूमना और आइसक्रीम खाना शोभा नहीं देता स्त्रियों के इस तरह के स्वच्छंद आचरण से ही पुरुषों को मौका मिलता है और फिर दोष पुरुषों को देती हैं।”
यह सुनकर आयुषी हैरान रह गई रेस्टोरेंट के दरवाजे के शीशे में मोहित वाला अक्स अब उसे एकदम स्पष्ट नजर आ गया बिना भूमिका बांधे उसने अपनी उंगली से सगाई की अँगूठी उतार कर उसे देते हुए कहा, “मोहित, यह लो अपनी अंगूठी। मैं हमारी सगाई इसी वक्त तोड़ रही हूँ यह हमारी आखिरी मुलाकात है”।
” ऐसी क्या बात हो गई आयुषी जो तुमने सगाई तोड़ने का फैसला अचानक ले लिया” मोहित चौंकते हुए बोला।
“जिस तरह तुम्हारा अचानक दिल्ली जाने का कार्यक्रम बन गया ठीक उसी तरह मेरा भी अचानक सगाई तोड़ने का मन बन गया”, आयुषी व्यंग्य से बोली और तेजी से रेस्टोरेंट से बाहर निकल आयी। खुले आसमान के नीचे उसने खुद को बहुत हल्का और सहज महसूस किया और मन ही मन अपने अच्छे दोस्त आदित्य का तहे दिल से शुक्रिया अदा किया कि दिल और दिमाग के मामले में सिर्फ दिमाग की सुननी और माननी चाहिए।