भारत कथा माला
उन अनाम वैरागी-मिरासी व भांड नाम से जाने जाने वाले लोक गायकों, घुमक्कड़ साधुओं और हमारे समाज परिवार के अनेक पुरखों को जिनकी बदौलत ये अनमोल कथाएँ पीढ़ी दर पीढ़ी होती हुई हम तक पहुँची हैं
आज भी संभाल कर रखा है मैंने, अलग अलग रंगों से सजा, सावन के महीनों की यादें संजोए…. वो मेरा प्यारा।।।। काले, भूरे और थोड़े से अधपक्के पीले रंग का……वो छाता शिमला से लिया था मैंने, जब गर्मी की छुट्टियों में गया था घूमने, अपनी नानी के घर। उम्र तब कुछ दस साल की थी मेरी।
याद है मुझे आज भी वो दिन, जब मॉल पे घूमते हुए अचानक तेज़ बारिश होने लगी तो मां ने अपने आंचल में सर छुपा लिया था मेरा। मगर बारिश थी कि जैसे थमने का नाम ही ना ले रही थी। बस जैसे सारा पानी आज ही बरसा देना हो इन बादलों ने। पर वो तो ठहरे बादल, कहां हमारी सुनते हैं, बस जब मन करता है तो बरस जाते हैं।
मां के आंचल में सर छुपाए मैं इंतज़ार कर रहा था, बारिश के कम होने का कि तभी मेरी नज़र सामने फड़ी वाले के पास रखे एक काले भूरे अधपके पीले रंग के छाते पर गई।
कुछ अजीब-सी कशिश थी उस छाते में, पता नहीं क्यूं पर मेरी नज़र उस पर से हट ही नहीं रही थी। बस जम-सी गई थी जैसे उस छाते पर। कुछ था उस छाते में ऐसा कि जो मैं उसकी तरफ खिंचता चला गया।
फड़ी वाले के पास जाकर बस खड़ा हो गया और निहारने लगा उस छाते को। मां मुझे उसकी तरफ़ जाते देख मेरे पीछे-पीछे आ गई। मां ने पूछा क्या हुआ। मैंने छाते की तरफ़ इशारा किया और बोला…. मां कितना सुंदर है ना ये छाता।
मां बोली हां बेटा सुंदर तो है, पर घर में और कितने छाते पड़े हैं क्या ज़रूरत है इसकी।
देखो, अब तो बारिश भी थम गई है। चलो वापिस चलते हैं।
मां की बात सुन, मैं चुपचाप मां के साथ चल पड़ा, पर ना जाने क्यूं मन तो उस छाते में ही अटका था।
घर वापिस आकर खाना खाया और बस मां के साथ लिपट कर बिस्तर पे लेट गया।
आंखें थोड़ी नम थी, पर फिर भी मैं बिना कुछ बोले बस चुपचाप लेटा रहा।
![बालमन की कहानियां](https://i0.wp.com/grehlakshmi.com/wp-content/uploads/2022/03/vikra-17.jpg?resize=600%2C500&ssl=1)
रात को बादल फिर से गरजने लगे और बारिश और भी ज़ोरों से होने लगी। छाते के सपने को आंखों में संजोए कब आंख लग गई पता ही नहीं चला।
तभी एहसास हुआ कि कोई मुझे ज़ोर-ज़ोर से हिला रहा है। बंद आंखों में आवाज़ को पहचानने की कोशिश कर रहा था कि कौन है जो मुझे हिला रहा है।
आंखें खोली और सामने देखा तो जैसे मेरी नींद ही उड़ गई। वो फड़ी वाला हाथ में छाता लिए मेरे सामने खड़ा था। कहने लगा, बेटा ये रख लो, तुम्हें अच्छा लगा है ना ये छाता।
मैं मन ही मन फूला नहीं समा रहा था। पर क्या सच में मुझे उससे ये छाता ले लेना चाहिए या नहीं।
अभी इसी कशमकश में ही था की तभी लगा जैसे मां पुकार रही है।
उठो रोहन…सुबह हो गई है। देखो तो सही कौन आया है। मैं आंखें मलता हुआ उठा और देखा, पिता जी सामने खड़े थे। मैं जाकर उनसे लिपट गया और पिता जी को सारी बात बताई।
पिता जी बात सुन थोड़ा मुस्कुराए और बोले… छाता चाहिए क्या तुम्हें। मां बीच में ही बोल पड़ी…क्यूं बिगाड़ते हो इसे।
पिता जी ने मेरा हाथ थामा और बोले चलो मॉल चलते हैं और वो छाता लेकर आते हैं। जाते हुए मां से पूछा… तुम भी चल रही हो क्या साथ। मां ने कहा… नहीं जी तुम ही जाओ अपने लाडले के साथ और बिगाड़ो इसे।
मेरी खुशी का तो जैसे ठिकाना ही नहीं रहा। मैं खुशी के मारे कूदता हुआ, पिता जी का हाथ पकड़े उनके साथ चल पड़ा।
लेकिन ये क्या जब हम उस जगह पहुंचे तो वहां ना तो कोई फड़ी थी और ना ही छाता। मैं इधर-उधर फड़ी वाले को ढूंढने लगा, पर वो कहीं नज़र नहीं आया।
बस मायूस होकर पिता जी के साथ घर वापिस चल पड़ा। लेकिन मैं रास्ते में सोच रहा था कि ऐसा भला कैसे हो सकता है, मैंने कल ही तो देखी तो वो फडी वाली दुकान। आखिर कहां गई वो और कहां गया वो छाता।
घर पहुंचा तो देखकर हैरान हो गया। मां हाथ में वो छाता लिए आंगन में खड़ी थी… वो काले, भूरे अधपके पीले रंग का छाता। मुझे देख बोली, वो फड़ी वाला आया था और ये छाता दे गया। कहने लगा, कि कल रात बारिश और तफान इतना तेज आया की मेरी फडी सब तफान में टूट गई और काफी सामान भी उड़ गया बस ये छाता मैं अपने साथ ले गया था। फिर कहने लगा कि आपके बच्चे की मासूमियत और उसकी नज़रों में इस छाते के लिए जो तड़प मैंने कल देखी, तो बस मन कहने लगा कि हो ना हो ये छाता उसका ही है और बस ये कह कर, वो छाता मुझे पकड़ा कर चला गया। कहने लगा उपहार समझ कर रख लो।
मां ने छाता मेरे हाथ में थमा दिया और बोली चलो कुछ खा लो अब। अब तो छाता मिल गया ना, खुश हो।
हां मैं खुश था कि वो प्यारा छाता अब मेरा था पर मन ही मन सोच में डूबा था कि आखिर कौन था वो फड़ी वाला। बस यूं ही सोचते हुए घर के अंदर पांव रखा तो जैसे मेरे होश ही उड़ गए। ड्योढ़ी में रखी वो कृष्ण जी की मूर्ति वहां नहीं थी…
और मेरे हाथ में था काले, भूरे और थोड़े से अधपके पीले रंग का… वो छाता।
भारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा मालाभारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा माला’ का अद्भुत प्रकाशन।’