बंदिशे-गृहलक्ष्मी की कहानियां: Bandishe Hindi Kahani
Bandishe Hindi Kahani

Hindi Kahani: ट्रिन ट्रिन…कब से लैंडलाइन की घंटी बज रही थी,वसुधा बड़बड़ाती हुई आई ,फोन उठाने…आज तो एक मिनट की भी राहत नहीं, जरा वाशरूम गई थी और फोन की घंटी बजती ही रही। वसुधा एक जर्नलिस्ट थी,कल टाइम्स मैगजीन में उसके छपे आर्टिकल ने सारे मार्केट में धूम मचा दी थी, उसी के बधाई फोन आ रहे थे।

मानसी का फोन था, वसु!आज एक पार्टी दे रही हूं तेरे सम्मान में,ठीक आठ बजे पहुंच जाना और हां!निखिल को भी कह देना,वो जरूर आए।

ओके! वसु मुस्कराई,मानसी,निखिल और वसुधा तीनों कॉलेज फ्रेंड्स थे, वसु पत्रकारिता की दुनिया में नाम कमा रही थी और वो दोनो एडवरटाइजमेंट कंपनी में थे।

फोन रखकर वो पलटी ही थी कि घंटी फिर बज गई।

अब कौन?आज नहीं रुकने वाले ये फोन,लगता है उठा के रखना पड़ेगा रिसीवर को,

दरअसल, वसु महिलाओं के उत्थान के लिए कॉलम लिखती थी,कल उसका लिखा आर्टिकल “क्या महिलाओं के लिए शादी बहुत जरूरी है जिससे सामाजिक मर्यादाओं को बनाए रखा जाए ?”बहुत विवादित और चर्चित हो रहा था।

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फोन उसके आठ साल के बेटे ध्रुव का था जो मसूरी के प्रतिष्ठित पब्लिक स्कूल से पढ़ाई कर रहा था,उसका चेहरा खिल उठा,

बधाई हो मम्मा!ध्रुव ने कहा तो वसुधा हंस दी,तुझे भी खबर हो गई मेरे आर्टिकल की?

मेरे सारे टीचर्स आपके आर्टिकल की तारीफ कर रहे हैं,ऐसा क्या लिखा आपने मम्मा?वो उत्सुकता से बोला।

अभी बहुत छोटे हो,जब बड़े होगे तो समझ जाओगे तुम भी…वो हंसी,और एग्जाम्स की तैयारी कैसी चल रही है?

एकदम बढ़िया!बस आपकी याद बहुत आती है,ध्रुव ने कहा और वसुधा उदास हो गई,यहां छोटे शहर में कोई अच्छा स्कूल न था,नहीं तो आपको कभी नहीं भेजती वहां।वो बुदबुदाई।

तभी दरवाजे की बैल बजी,ठीक है बेटा!बाद में बात करती हूं,कहकर उसने फोन रख दिया और उधर बढ़ गई।

कोई लड़का था दरवाजे पर जिसने वसुधा के हाथ में फूलों का गुलदस्ता पकड़ा दिया।

किसने भेजे?वसुधा के माथे पर शिकन के बल पड़ गए।

मैम!मुझे नहीं पता,वो परेशान होकर बोला।

ओह!सॉरी !!तुम जाओ..वैसे जिसने तुम्हें ये दिए वो क्या पहने था?

खादी का कुर्ता पायजामा.. पैरो में स्लीपर्स थे शायद।

क्या?? मैं तो ऐसे किसीको नहीं जानती?वसुधा सोच में पड़ गई।

लौट कर आकर वो चेयर पर बैठी अपने अतीत में खो गई।

उसे फूल कितने पसंद थे और वैभव,उसका पति एक बिजनेसमैन था,उसे चिढ़ होती थी वसुधा की पसंद से।क्या हर वक्त पढ़ने पढ़ाने,कविता,कहानियों में घुसी रहती हो,फूल पत्तियां,प्रकृति…. पता नहीं कहां से शायरी सीखी हो?कुछ व्यवहारिक भी बनो या ख्यालों की दुनिया में ही घुसी रहोगी?

दोनो ही पोल्स अपार्ट थे अपनी चॉइसेज में,वो मेकेनिकल तरीके से खाने,कमाने और खर्च करने में विश्वास रखता और वसुधा गीत,संगीत,फूल पत्ती,लेखन और भावुकता में।

तभी निखिल ने आकर उसे चौंका दिया…कहां खोई हो?कितनी देर से तुम्हें जगा रहा हूं पर तुम शून्य में खोई थीं।

ओह सॉरी!तुम कब आए?वसुधा अभी भी होश में कम ही थी।

बधाई हो मैडम!आज तो हर जगह आपके आर्टिकल के चर्चे हैं…क्या बात है!

थैंक्यू…तुमने पढ़ा?

और नहीं तो क्या? मै सबसे पहले तुम्हारे लेख पढ़ता हूं,वो बोला…ओह!ये फूल बड़े खूबसूरत हैं…लिली,व्हाइट रोज़ और कमल की सुंदर कलियां…माय गॉड!किसने भेजे?

पता नहीं, मै भी वही सोच रही हूं बड़ी देर से…वसुधा बोली,ये कौन है जो मेरी तरह फूलों का दीवाना है।

उफ्फ…अब हम कौन हो गए?निखिल नाटकीयता से बोला।

क्या तुमने भेजे ये?तुम कब से कुर्ता पायजामा पहनने लगे?वसुधा आश्चर्य से बोली।

जब से तुम कवित्त करने लगीं,मैंने खुद को बदलना शुरू कर दिया है वसु…वो भावुक होता बोला।

वसुधा ने चौंक के उसे देखा और वो ठहाका लगाकर हंस पड़ा…थोड़ा बहुत नाटक हम भी कर लेते हैं।

मुझे बातों में न लगाओ, आज मानसी एक पार्टी दे रही है,तुम्हें भी चलना है मेरे साथ…वो आदेशात्मक होते बोली।

ओके बॉस!वो बोला,एक कॉफी तो पिला दो,फिर चलेंगे।निखिल ने कहा।

जी नहीं कॉफी आप बनाएंगे, मै तैयार होकर आती हूं,वसुधा फिर अधिकार से बोली।

सॉरी वसु!अब वहीं पी लेंगे,तुम रेडी हो कर आओ, मै इंतजार करता हूं।

थोड़ी देर में वो दोनो वहां पहुंच गए थे।

कितनी वक्त की पाबंद हो तुम वसु!मानसी ने उसे गले लगाते कहा।

वसुधा को लोगों ने घेर लिया था,वो उससे ऑटोग्राफ ले रहे थे,बातचीत कर रहे थे।

मैम!आप इतने बोल्ड टॉपिक्स पर लिख लेती हैं,आपको विरोध भी सहने पड़ते होंगे?किसी ने पूछा।

जर्नलिज्म की दुनिया इतनी आसान कभी नहीं होती,वो मुस्करा के बोली।

वैसे आप व्यक्तिगत रूप से भी यही समझती हैं कि लड़कियों के लिए शादी जरूरी नहीं?

मैंने ऐसे कब कहा लेकिन शादी में लगाई जाने वाली बंदिशों के खिलाफ हूं मै…ऐसा क्यों होता है कि एक औरत के हिस्से में ही सारे कॉम्प्रेमाइज आएं,कोई कर्जा नहीं है शादी जिसे चुकाना होता है उसे अपनी रुचियां, आदते और जिंदगी कुर्बान क्यों करनी पड़ती हैं?बोलते हुए वसुधा का चेहरा लाल पड़ गया।

लेकिन आपके पति पढ़ते हैं ये सारे आर्टिकल?किसी ने हंसते हुए एक प्रश्न उछाला।

आय डोंट नो,वो भी साफ तौर पर बोली।

बताइए,मिस्टर वसुधा!निखिल की तरफ मुखातिब होकर वो पूछने लगी।

निखिल सिटपिटा गया और मानसी ने उसे घूरा,क्या बोल रही हैं रेखा जी,ये वसु के हसबैंड नहीं हैं। शी इज़ सेपरेटेड।

ओह आय एम सॉरी!उसने जीभ काटी।

वसुधा और निखिल फिर ज्यादा नहीं रुके थे वहां।रात घिरने लगी थी,निखिल,वसुधा को छोड़ने उसके घर चल दिए थे।

घर के सामने ही,वसुधा की चाची चाचा मिल गए।

आप कब आई चाची? पहले से सूचित करती तो लेने आ जाती स्टेशन…वसुधा खुशी से बोली।

बस तेरे चाचा मस्तमौला,अचानक मूड बन गया बिटिया से मिलने का।

ठीक है वसु! मै चलता हूं,निखिल जाने लगा लेकिन वसुधा ने उसे रोक लिया,चाचा जी से मिलकर जाना। कॉफी बनाती हूं अभी,तब भी नहीं पिला पाई थी।

निखिल,उसकी चाची के साथ ड्राइंग रूम में जा बैठा।

क्या करते हो बेटा?शादी हो रखी है तुम्हारी? चाची ने बैठते ही पूछा उससे।

निखिल समझ गया था उनके प्रश्न और जिज्ञासा,वो जानना चाहती थीं कि वसुधा से उसका क्या रिश्ता है और वो यहां क्यों है इस वक्त?

तभी उसके चाचा आए कमरे में और अपनी पत्नी को वहां से चलता किया…जाइए!बिटिया की कुछ मदद कीजिए।

और बरखुरदार,कैसे हैं आप? वसु से आपके बारे में सुनता रहता हूं…जिंदगी में कोई हमसफर हो तो रास्ता आसानी से कट जाता है।कहकर वो हंस दिए।

लगता है आपकी आंटी जी से काफी बनती है…निखिल मुस्करा कर बोला।

अजी शादी एक ऐसा लड्डू है जो खाए वो पछताए ,जो न खाए वो भी,तो हमने खा के पछताने को चुना,बस इतनी ही बनती है आपकी आंटी जी से हमारी।

ये सुनते ही निखिल उन्हीं के साथ ठहाका लगा कर हंस पड़ा।

निखिल समझ गया था कि वसु के चाचा जी क्या चाहते थे उससे।उसने अगले ही हफ्ते वसुधा को मिलने बुलाया।

क्या बात है निखिल?बहुत इंपेशंट लग रहे हो,कोई खास बात?

आओगी तो बताऊंगा,बस टाइम से आ जाना।वहीं जहां हम अक्सर मिलते हैं तुम्हारी पसंदीदा जगह पर।

अगले दिन,वो दोनो,पेड़ों की झुरमुट में बैठे थे,पास में ही नदी बह रही थी,बड़े बड़े चीड़ के पेड़ों की झुरमुट में निखिल के संग घूमना,चिड़ियों की चहचहाट सुनना,फूलों को उनकी खूबसूरती में निहारना, वसु को बहुत अच्छा लगता था।

वसु!निखिल ने अपने घुटनो के बल बैठते उसे लाल गुलाब की एक कली भेंट कर पूछा था,”क्या जिंदगी की राह में मेरी हमसफर बनोगी?”

वसुधा आश्चर्य चकित रह गई…अचानक से ये प्रस्ताव!!वो कुछ न बोल पाई…उसके अधर हिले पर एक भी बोल नहीं निकला,आंखों से आंसू की झड़ी लग गई।

क्या हुआ वसु?मैंने कुछ गलत कहा हो तो सॉरी! मैं अपने शब्द वापिस लेता हूं।

नहीं…उसके हाथो को अपने हाथ में लेती वो बोली,तुम मेरे सबसे अच्छे दोस्त हो और मै तुम्हें खोना नहीं चाहती।मैंने अपनी शादी की जिंदगी में जो देखा है वो बहुत खतरनाक था,शादी का मतलब था सिर्फ बंदिश.. मै हंसू,बोलूं,चलूं, खाऊं सब उसकी मर्जी से…मेरी पसंद,नापसंद की कोई वैल्यू नहीं,लगता था कोई कर्जा चुकाना है आखिरी सांस तक…आज भी रात को सोते आंख खुल जाती है तो चीख के उठ बैठती हूं।

पर अब ऐसा नहीं होगा वसु!! मै तुम्हारी जिंदगी में सब रंग भर दूंगा,तुम्हें पूरी आजादी दूंगा।निखिल बोला।

पर मैं तुम्हारे साथ न्याय नहीं कर पाऊंगी,वैभव भी ये ही सब कहता था शादी से पहले पर उसके बाद उसकी बंदिशें बढ़ती गई,वो रातों रात बदल गया, मै अपना इतना प्यारा दोस्त खोना नहीं चाहती,तुमसे आखिरी सांस तक दोस्ती का रिश्ता रखना मेरा सपना हैं,क्या तुम मेरा ये सपना पूरा करोगे ?तुम्हें खोने की मुझमें अब ताकत नहीं…प्लीज!

निखिल ने उसके चेहरे को अपने हाथ में लिया और उसकी आंखों में झांकता हुआ बोला, मैं तुम्हारे सपने का सम्मान करता हूं वसु, मैं अपनी जिंदगी के आखिरी दिन तक तुम्हारा इंतजार करूंगा।