शुक्रवार व्रत कथा करने से होता है धन लाभ, जानें महत्व: Shukravar Vrat Katha
Shukravar Vrat Katha

Shukravar Vrat Katha: हिंदू धर्म में हर दिन किसी न किसी देवी देवताओं को समर्पित होता है। ठीक वैसे ही शुक्रवार का दिन संतोषी माता को समर्पित होता है। इस दिन संतोषी माता को प्रसन्न करने के लिए भक्तजन तरह-तरह के उपाय करते हैं, विधि-विधान से मां संतोषी की पूजा करते हैं और व्रत रखते हैं। हिंदू धर्म में शुक्रवार व्रत कथा का बेहद महत्व है। सभी तरह के सुखों की प्राप्ति के लिए शुक्रवार के दिन व्रत के साथ कथा भी करना चाहिए।

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शुक्रवार व्रत कथा को लेकर ऐसी मान्यता है कि शुक्रवार का व्रत धन, विवाह, संतान, भौतिक सुखों की प्राप्ति के लिए किया जाता है। कथा के बिना यह व्रत अधूरा माना जाता है इसलिए शुक्रवार के दिन व्रत के दौरान कथा का पाठ भी अवश्य करना चाहिए। माता संतोषी को भगवान श्री गणेश की पुत्री माना जाता है। ऐसी मान्यता है की मां संतोषी के व्रत कथा को विधि विधान से संपन्न किया जाए, तो माता सभी मनोकामनाएं पूरी करती है।

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एक बुढ़िया और उसका बेटा रहता था। कुछ समय बाद बुढ़िया ने बेटे का विवाह कर दिया और विवाह के बाद बुढ़िया अपनी बहू से ही सारा काम करवाती थी और उसे खाना ठीक से नहीं देती थी। यह सब बुढ़िया का बेटा देखता रहता, पर कुछ कह नहीं पाता। एक दिन बेटे ने शहर जाने की इच्छा जताई। शहर जाते समय जब बुढ़िया ने बहु को अपनी निशानी देने को कहा तो वह रोने लगी कि मेरे पास तो कुछ भी नहीं है। फिर बुढ़िया का बेटा शहर चला गया।

एक दिन बुढ़िया की बहू ने देखा कि गांव की सभी स्त्रियां माता संतोषी की पूजा कर रही है, तो उसने भी माता संतोषी की पूजा और व्रत करने की इच्छा जताई और उन स्त्रियों से व्रत पूजा विधि जानी। स्त्रियों ने पूजा विधि बताते हुए कहा, कि एक लौटे में जल और गुड़-चने का प्रसाद लेकर मां की पूजा करनी चाहिए और शुक्रवार के किसी को भी घर में खटाई नहीं खानी चाहिए।

उसने माता संतोषी का विधि विधान से व्रत किया और कुछ ही दिनों में उसके पति की चिट्ठी और पैसे आने लगे। फिर पति के गांव आने के बाद बुढ़िया की बहू ने संतोषी माता व्रत का उद्यापन किया। उसने पड़ोस के बच्चों को घर में भोजन के लिए बुलाया। लेकिन पड़ोस की स्त्री उससे बहुत चिढ़ती थी, तो उसने अपने बच्चों को सिखाया कि तुम वहां जाकर खटाई जरूर खाना। बच्चों ने वहां जाकर ऐसा ही किया। ऐसा करने से माता संतोषी क्रोधित हो गई और उसके पति को सिपाही पकड़ कर ले गए, तब बुढ़िया की बहू ने माता से क्षमा याचना मांगी और पुनः उद्यापन किया। माता की कृपा से उसका पति घर आ गया और कुछ समय बाद उसे पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई।

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