शादी के बाद मैं पहली बार अपने पति के साथ पंजाब गई थी। मेरी छोट ननद का पूरा परिवार वहीं रहता है। मेरे जाने के दो-चार दिन के बाद ही मेरे भांजे का जन्मदिन पड़ा। मैं मेहमानों को खाना परोस रही थी, वहां पर दही-बड़ों को भल्ले कहा जाता है। खाना खाने बैठी तो कुछ पंजाबी महिलाओं ने मुझसे कहा, ‘बहू, जरा भल्ले लाना।’ तो मैं यह समझ नहीं पाई कि वो दही बड़े मांग रही हैं।

मैंने सोचा कि आखिर खाना खाते समय उपलों का क्या काम? फिर भी नई-नवेली दुल्हन होने के कारण मैं संकोचवश कुछ कह न पाई। चुपचाप खाना परोसना छोड़ कर घर के पिछवाड़े गई और दो-चार उपले लाकर उन महिलाओं के सामने फर्श पर रख दिया। वे बेचारी कभी मेरा चेहरा देखतीं, कभी फर्श पर रखे उपलों को। इतने में मेरी नदद वहां आ गई और उपले देखते ही वह सारा माजरा समझ गई। उनका हंसते-हंसते बुरा हाल था। वे महिलाएं और मैं अवाक् थीं कि आखिर हुआ क्या? फिर हंसते हुए उन्होंने बताया कि हमारे गांव में ‘भल्ले’ गोबर के उपलों को कहा जाता है। अब तो हंसने की बारी उन महिलाओं की थी और मैं शर्म से लाल हो गई।

विमला वर्णवाल, दिल्ली

साड़ी बाहर जाते हुए बांधूंगी

यह किस्सा मेरी एक आंटी का है। वह किसी फंक्शन में जाने के लिए तैयार हो रही थी। उन्होंने पेटीकोट ब्लाउज पहन कर सारा मेकअप भी कर लिया। पर्स वगैरह निकालकर उन्होंने सारी ज्वैलरी पहन ली। सैंडल वगैरह पहन कर वह तैयार हो गई। तभी उन्होंने सोचा कि साड़ी बिल्कुल बाहर जाते हुए बांधूंगी। इतने में उनका मोबाइल फोन घनघना उठा। वह फोन पर बातें करने लगी। तभी बाहर घंटी बजी, उन्होंने पर्स उठाया और बाहर बातें करते हुए निकल पड़ी। बाहर रिक्शावाला था, जिसे उन्होंने जाने के लिए बुलाया था। वह अनजाने में ही पर्स और फोन उठाकर रिक्शा में बैठ गई। रिक्शे वाले भैया ने उन्हें कहा कि बहन जी, आप कपड़े तो ठीक कर लो। उनकी नजर खुद पर पड़ी कि वह तो साड़ी बांधे बिना ही बाहर आ गई। रिक्शा से उतरते हुए वह इतनी शॄमदा हुई कि उन्होंने फंक्शन पर उस दिन न जाना ही मुनासिब समझा।

मोनिका हांडा, पंचकूला

हम लोग टॉयलेट गए थे

उन दिनों की बात है जब हम काफी मूवी देखने जाया करते थे। एक दिन हम लोग मूवी देखने गए, मूवी का नाम ‘टॉयलेट’ था। रास्ते में काफी ट्रैफिक था, इस कारण थोड़ी देर हो गई। मूवी देखकर हम घर वापस आए, दूसरे मैं अपने दोस्तों को बता रही थी, हम लोग टॉयलेट गए थे, ट्रैफिक के कारण थोड़े लेट गए तो…. थोड़ी सी निकल गई। इस बात पर सभी हंसने लगे और जब मैंने अपनी बातों पर ध्यान दिया तो मेरी आंखें शर्म से झुक गईं। मैं तो ये बोलना ही भूल गई कि फिल्म का नाम टॉयलेट था।

रेमी श्रीवास्तव, रायपुर (छ.ग.)

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