भारत कथा माला
उन अनाम वैरागी-मिरासी व भांड नाम से जाने जाने वाले लोक गायकों, घुमक्कड़ साधुओं और हमारे समाज परिवार के अनेक पुरखों को जिनकी बदौलत ये अनमोल कथाएँ पीढ़ी दर पीढ़ी होती हुई हम तक पहुँची हैं
Lok Kathayen-कजलीवन में बाघा वशिष्ठ तपस्या कर रहे थे। ध्यान में डूबे होने के कारण उनके मूत्र की एक पूरी और एक आधी बूंद टपकती रही और उनको पता नहीं चला। तेरह साल तक मूत्र की बूंदें एक तूंबी में टपकती रही। तपस्या पूरी होने पर बाघा वशिष्ठ ने उस तूंबी में मूत्र त्याग किया तो वह फट गई और उससे एक नागा बैगा पैदा हुआ। उस नागा बैगा के रोने से बाघा वशिष्ठ के ध्यान में बाधा होने लगी तो उसने नागा बैगा को जंगल में फेंक दिया।
काली नागिन ने नागा बैगा को रोता देखकर उठाया, चुपाया और अपना ढाई बूंद दूध पिलाया। नगा बैगा धरती पर पड़ा मिला था इसलिए उसको धरती या वसुमती का बेटा कहा गया। काली नागिन ने इसके बाद नागा बैगा शिशु को दीमक की बांबी में छिपा दिया। कुछ समय बाद काली नागिन ने एक नागा बैगिन को पैदा कर बांबी के दूसरे हिस्से में रख दिया। नागा बैगा और नागा बैगिन जंगल के कंद-मूल-फल खाकर, जंगली पशु-पक्षियों के साथ खेल-कूदकर बड़े होने लगे। ठंड-गर्मी से बचने के लिए वे पेड़ की छाल या पत्ते लपेटते, या मिट्टी पोत लेते। आयु बढ़ने पर उनमें एक-दूसरे के प्रति आकर्षण बढ़ने लगा।
एक दिन नागा बैगा किसी कुंड में नहा रहे थे। तभी नागा बैगिन घूमती-फिरती वहाँ पहुँच गई और नागा बैगा को नहाते देखकर, साथ ही नहाने लगी। दोनों ने सहमति से कुंड के किनारे झाड़ की छाया तले संभोग किया। उन्होंने जहाँ रतिक्रिया संपन्न की उसकी एक ओर साजा वृक्ष, दूसरी ओर चट्टान तथा तीसरी ओर बाँस उगे थे। साजा के वृक्ष में रहनेवाले बड़ा देव [निंगादेव, महादेव] चट्टान पर रह रहे पत्थरराज के पुत्र बाबा करण राय तथा बांस में रह रही बासिन कन्या ने उनको आशीर्वाद दिया।
नागा बैगा और नागा बैगिन से ही बैगा जनजाति का जन्म और विस्तार हुआ। इन्हें बैगा जन अपना आदि पुरुष और मातृका मानते हैं।
भारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा मालाभारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा माला’ का अद्भुत प्रकाशन।’