‘नमोस्तु सर्पेभ्यों ये के च न पृथ्वीमनु। ये अन्तरिक्षे ये दिवि तैभ्यः सर्पेभ्यों, नमः वासुकयादृष्ट कुल नागभ्यों नमः।’

 

नाग पंचमी के आरंभिक इतिहास के संबंध में कहते हैं, नाग ब्रह्मा जी के पास मिलने के लिए श्रावण माह की पंचमी के दिन ही गए थे। उस दिन नागों को श्राप से मुक्ति मिली थी। इसीलिए नागपंचमी का दिन प्रसिद्ध हुआ। भगवान श्री कृष्ण जी ने वृंदावन में निवास करते हुए कालीदाह यानी यमुना नदी में कालिया सांप के फन पर नृत्य किया था। इसलिए श्री कृष्ण जी को नाग नथैया और नाग नचैया के नाम से भी पुकारा जाता है।

देवताओं के भाई हैं नाग

लोकधर्म में नागों का उल्लेख अर्धमानव रूप में हुआ है। वे इच्छानुसार कोई भी रूप धारण कर सकते हैं। भगवान विष्णु ने तो नागराज पर ही अपनी शैय्या बनाकर विश्व कल्याण का पूरा कार्य किया है। भगवान शंकर के गले में अनेक विषधर नाग सदा उनके शरीर की शोभा बढ़ाते रहते हैं। इसलिए वे ‘नागेन्द्रहार’ कहलाते हैं। नागों को देवताओं का भाई होने का स्थान भी प्राप्त है। 

 

कथा

माना जाता है कि एक गांव में एक किसान रहता था, किसाना के दो पुत्र व एक पुत्री थी। एक दिन हल जोतते समय हल से सर्पिणी के तीन बच्चे कुचल कर मर गए। नागिन पहले तो विलाप करती रही फिर उसने अपनी संतान के हत्यारे से बदला लेने का संकल्प किया । रात्रि के अंधेरे में नागिन ने किसान, उसकी पत्नी व दोनों लड़कों को डस लिया। अगले दिन नागिन किसान की पुत्री को डसने के उद्देश्य से फिर आई तो किसान की पुत्री ने उसके सामने दूध का कटोरा रख दिया, हाथ जोड़ क्षमा मांगने लगी। नागिन ने प्रसन्न होकर उसके माता-पिता व दोनों भाइयों को क्षमा कर दिया। उस दिन ‘श्रावण शुक्ल पंचमी’ थी, तब से आज तक नागों के खौफ से बचने के लिए इस दिन सांपों की पूजा की जाती है।

कई जगहों पर इसे ‘पचैंया’ के नाम से भी जाना जाता है। पश्चिमी बंगाल में ‘वागदेवी मनसा’ के पूजन की प्रथा प्रचलित है। पीपल के वृक्ष के नीचे नाग प्रतिमाओं की स्थापना एवं पूजन की परंपरा काफी पहले से रही है।

पूजन विधि-विधान

यह व्रत श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी को रखा जाता है। इस व्रत को करने के लिए एक दिन पूर्व यानी चतुर्थी को एक समय भोजन कर पंचमी को पूरे दिन भर का उपवास रखने का विधान है। ‘गरूड़ पुराण’ के अनुसार व्रती अपने घर के दोनों ओर नागों को चित्रित करके उनकी विधि-विधानानुसार पूजा करें। कुछ स्थानों पर लोग रस्सी से सात गांठें लगाकर उसे सर्प का आकार प्रदान कर पूजते हैं। चूंकि ज्योतिष विद्या के मतानुसार पंचम तिथि का स्वामी नाग को माना जाता है, इसलिए भक्ति भाव के साथ गंध, पुष्प, धूप, कच्चा दूध, खीर, भीगे हुए बाजरे और घी से पूजन करें। इस व्रत के दिन सूर्यास्त के बाद भूमि खोदना वर्जित किया गया है। सर्पों को प्रसन्न करने के लिए दूध, लावा, नैवेद्य आदि चढ़ाने का विधान है।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

नागराजाय नमः मंत्र से इनकी पूजा की जाती है। वेदों एवं पुराणों के अनुसार इनकी उत्पत्ति ‘महर्षि कश्यप’ की पत्नी ‘कद्रू’ से हुई थी। ये अदिति देवी के सौतेले पुत्र हुए तथा आदित्यों के सौतेले भाई। अतः नाग देवता इनकी संज्ञा है। पाताल इनका निवास है। इनके आठ कुल हैं तथा ये नागलोक में रहते हैं। भोगवतीपुरी इनकी राजधानी है।

दोषों का निवारण

नाग देवता भारतीय संस्कृति में देवरूप में स्वीकार किए जाते हैं। इसलिए कर्मकांड पद्धति में नवग्रह के पूजन के समय नागदेवता का पूजन वास्तु देवता के साथ होता है। कालसर्प दोष जरा सा भी ज्योतिष जानने वाले हर जातक को भयभीत करता है, उस दिन नाग का विधिवत पूजन, नाग-नागिन का चांदी का जोड़ा बनाकर उसकी पूजा आराधना से कालसर्प योग का भय दूर होता है। राहु एवं केतु का जन्म कुंडली में कोई दोष अथवा कुपित हो तो भी नाग पंचमी के दिन नाग पूजन से राहु केतु शांत होते हैं। नाग पंचमी पर पितृ दोष, विष योग आदि अनेक ऐसे घातक दोषों की विधिवत शांति करवाकर सौभाग्य के द्वार खोले जाते हैं। जिससे जीवन सुखमय बनता है तथा खुशियों का आगमन होता है। हर इंसान पर नाग देवता की मेहर बनी रहती है और लोग उनकी कृपा पाते हैं। पंजाब के लोग नाग पूजन को ‘गुग्गा पूजा’ भी कहते हैं।

नागपंचमी के दिन इन बातों का रखें ध्यान

नाग-पंचमी को जमीन में हल जोतना अथवा जमीन खोदना मना होता है। कुछ स्थानों पर आग पर तवा, कढ़ाई चढ़ाने का भी परहेज किया जाता है, तो कहीं-कहीं सूईं धागे के प्रयोग की मनाही भी की जाती है। पंजाब में नाग पूजा से पहले नई पहले नई फसल का इस्तेमाल नहीं किया जाता ।

हिन्दु धर्म में नाग का महत्व

हिन्दु यात्रा के समय सर्प दर्शन को शुभ मानते हैं। सर्पों की मनुष्य के साथ मैत्री की अनगिनित लोक कथाएं हिंदु घरों में कही सुनी जाती हैं। हिन्दु किसी भी परिस्थिति में सर्प हत्या नहीं करते तथा हरी भरी धारी वाले सर्प (हरहरबा) को ‘हरहर मामू’ से संबोधित करते हैं।

 

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