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नागपंचमी: इस दिन नागों को मिली थी श्राप से मुक्ति

भारत ही एक मात्र ऐसा देश है जहां केवल नर से बने ‘नारायण’ की ही उपासना नहीं होती अपितु उनके जो अन्य सृजन हैं उनकी भी श्रद्धा एवं धार्मिक दृष्टिकोण से पूजा-अर्चना की जाती है। इस देश में जहां गाय की पूजा कृष्ण प्रिय होने पर होती है तो बैल की शंकर वाहन होने के रूप में। इसी तरह नाग को भी शंकर जी का परम श्रृंगार होने के नाते पूजा जाता है। विशेषकर श्रावण मास में जो कि शंकर जी की अराधना का मास है और इसकी धार्मिक, आध्यात्मिक दृष्टि से भी अति महत्ता है। श्रावण मास की ‘शुक्ल पंचमी’ को ‘नाग पंचमी’ कहते हैं इस दिन नागों की पूजा की जाती है।

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साल में सिर्फ एक बार खुलते हैं इस मंदिर के द्वार, देखिए तस्वीरें

धार्मिक नगरी उज्जैन में एक ऐसा अनोखा मंदिर स्थित है जिसके पट साल में केवल एक ही दिन खुलते हैं और वो खास दिन है नागपंचमी। नागचंद्रेश्वर के नाम से प्रसिद्ध इस मंदिर की मान्यता है कि नागदेव स्वयं इस मंदिर में मौजूद रहते हैं और वह सिर्फ नागपंचमी के दिन ही दर्शन देते हैं। यह मंदिर तीन खंडो में विभक्त है। सबसे नीचे खंड में भगवान महाकालेश्वर, दूसरे खंड में ओंकारेश्वर और तीसरे खंड में दुर्लभ भगवान नागचंद्रेश्वर का मंदिर है। मंदिर के पट नागपंचमी की मध्य रात्रि 12.00 बजे पट खुलते हैं और परंपरा अनुसार पंचायती महानिर्वाणी अखाड़े के महंत भगवान नागचंद्रेश्वर महादेव का प्रथम पूजन करते हैं। पूजन के बाद मंदिर के पट सभी श्रद्धालुओं के दर्शन के लिए खोल दिए जाते हैं।

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